श्रीसिध्द चक्र विधान के पांचवें दिन 256 अर्घ्य समर्पित
दमोह। श्री पारसनाथ दिगंबर जैन नन्हे मंदिर जी में श्री 1008 सिध्द चक्र महामंडल विधान का आयोजन आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज आचार्य श्री समय सागर जी महाराज के मंगल आशीर्वाद से मुनि श्री सुब्रत सागर जी महाराज के सानिध्य में भक्ति भाव के साथ चल रहा है। विधान के पांचवें दिन 256 अर्घ्य समर्पित किए गए। छठवें दिन मंगलवार को 512 अर्घ्य समर्पित किए जाएंगे।
जैन
धर्मशाला प्रवचन हाल परिसर में श्री सिद्ध चक्र महामंडल विधान के पांचवें
दिन सोमवार को प्रातः वेला में मुनि श्री सुब्रत सागर महाराज के सानिध्य
ब्रह्मचारी स्वतंत्र भैया ने अभिषेक पूजन के साथ विधान की क्रियाएं प्रारंभ
की। सर्वप्रथम सोधर्म इंद्र हर्षित रोहित जैन, कुबेर राजू नायक,
महायज्ञानायक राजेंद्र अटल, यज्ञनायक अशोक जैन, श्रीपाल गिरीश नायक भरत
चक्रवर्ती शिखर जैन ने श्री जी का अभिषेक किया। शांति धारा का सौभाग्य
लगातार तीसरे दिन राजेश जैन लेखनी देखनी परिवार को प्राप्त हुआ। दूसरी तरफ
से शांति धारा का सौभाग्य कमल कुमार ब्रह्मचारी स्वतंत्र भैया परिवार को
प्राप्त।
इस अवसर पर पदम जैन जुझार परिवार, अरविंद इटोरिया परिवार, सुभाष
बमोरिया परिवार के द्वारा विधान के लिए द्रव्य पूजन सामग्री के साथ अन्य
घोषणाएं करके मुनि श्री को शास्त्र भेंट करके आशीर्वाद प्राप्त किया गया।
मंगलवार को प्रातः 7:00 बजे से अभिषेक शांति धारा उपरांत विधान पूजन
प्रारंभ होगा तथा 512 अर्घ्य समर्पित किए जाएंगे। नन्हे मंदिर कमेटी के
अध्यक्ष नवीन निराला ने सभी से विधान में शामिल होकर पुण्यार्जन की अपील की
है। तथा श्री पारसनाथ भगवान की रजत बेदी निर्माण हेतु अपनी चांदी दान की
सहभागिता की अपील की है।
विधान
अवसर पर मुनि श्री सुव्रतसागर जी महाराज ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए
कहा कि जितना सूक्ष्म विज्ञान कर्म सिद्धांत जैन धर्म का है उतना किसी का
नहीं है इसलिए कर्म सिद्धांत से बढ़कर दुनिया में और कोई शिक्षा देने वाला
भी नहीं है कर्म सिद्धांत को समझ लें तो हमें संसार में भले ही रहना पड़े
किंतु दुखों का सामना करने से बच सकते हैं।
सिद्धचक्र महामंडल विधान मात्र
पर्वों में ही नहीं करना चाहिए अपितु हमेशा करते रहने से हमें अपना लक्ष्य
अपने जीवन में याद बना रहता है और हम धर्म से विचलित ना हो जाए ऐसा संकल्प
भी जीवित बना रहता है इसलिए हमेशा अनुष्ठान करते रहना चाहिए अनुष्ठान करते
रहने से हमारे जीवन में आने वाले दुख आदि भी कमजोर पड़ जाते हैं अथवा आते
ही नहीं है।
कोई व्यक्ति
हमें दुखी नहीं कर सकता हमारे अपने भले बुरे कर्म ही हमें सुखी दुखी करते
हैं किंतु संसारी प्राणी कर्मों के सिद्धांत से अपरिचित रहता है इसलिए वह
दूसरों पर ओपन कर देता है दूसरों को दोष देकर अपने आप को निर्दोष बता कर वह
अपने आप को सत्य मानता है किंतु कर्म सिद्धांत में यह बात वास्तव में सत्य
नहीं होती कर्म सिद्धांत कहता है कि दुनिया के सारे कंप्यूटर फेल हो सकते
हैं किंतु कर्म का कंप्यूटर कभी फेल नहीं होता।
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