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धर्म को सिद्ध करो और धन को साधन बनाओ, धर्म को अपनी इच्छा पूर्ति का साधन बनाना विनाशकारी होता है- निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी.. कुंडलपुर में मुनि श्री निष्पक्षसागर के प्रवचन

धर्म को साधन मत बनाओ साध्य बनाओ.. निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी

दमोह। धर्म को साधन मत बनाओ साध्य बनाओ धर्म को सिद्ध करो और धन को साधन बनाओ धर्म को अपनी इच्छा पूर्ति का साधन नहीं बनाना चाहिए अन्यथा यह विनाशकारी होता है रावण ने अपनी तपस्या के माध्यम से तीन खंड का अधिपति बनने की इच्छा की थी उसके फलस्वरूप वह अधिपति बना किंतु अंत में सर्वस्व विनाश को प्राप्त हो गया रावण के बराबर कोई धर्मात्मा नहीं था किंतु उसने धर्म के द्वारा अपनी इच्छा पूर्ति करने का प्रयास किया और इसका दुष्परिणाम उसको भोगना पड़ा किसी भी धर्म की क्रिया से हमें यह लगे कि हमारी इच्छा पूर्ति होती है तो नियम से उसके परिणाम विनाशकारी होते हैं..

सांसारिक समस्याओं के निदान के लिए धर्म के माध्यम से किए गए उपाय इच्छा पूर्ति नहीं है वरन यह कर्तव्य का परिपालन है यह इच्छाएं नहीं समस्या का समाधान है घर परिवार की समस्याओं का समाधान व्यवस्था और कर्तव्य के अंतर्गत आता है किंतु धर्म के माध्यम से शराब की कामना करना यह अय्याशी है यह इच्छापूर्ति है  इसका परिणाम नरक है धन कमाना पाप नहीं है किंतु पाप में धन लगाना अधर्म है पाप करने की सफलता के लिए देव शास्त्र गुरु का अवलंबन लेना विनाश को आमंत्रण देना है..

उपरोक्त विचार निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज ने दिगंबर जैन धर्मशाला में आयोजित अपने मंगल प्रवचनों में अभिव्यक्त किये। इसके पूर्व प्रात काल 5:00 बजे से निर्यापक मुनि श्री के मंगल सानिध्य में नन्हे मंदिर कमेटी के आसामियों को  द्वारा अभिषेक एवं शांति धारा करने का सौभाग्य मिला। इसके पूर्व निर्यापक मुनि श्री वीर सागर जी महाराज ने अपने मंगल प्रवचनों में कहा कि आचार्य भगवान कहते थे की शिक्षा के साथ चरित्र निर्माण होगा तभी संस्कारवान नागरिक हमारे देश को प्राप्त हो सकते हैं धर्म हमारे जीवन में आचरण के रूप में परिलक्षित होना चाहिए यह हमारे व्यवहारिक जीवन में स्पष्ट रूप से दिखना चाहिए

तभी हम वास्तविक धर्म की नींव से जुड़ सकते हैं आचार्य भगवान जो की एक महान दिव्य आत्मा थे लाखों वर्षों में ऐसी महान आत्माएं जन्म लेती हैं उन्होंने हमारे उपकार के लिए अनेक उपक्रम प्रारंभ कराए उन्होंने हम सब के बारे में सोचा और आत्मा के कल्याण का मार्ग हम सबको बताया उनका उपकार जीवन भर नहीं भूलाया जा सकता।
 आज इन परिवार को मिला आहारदान का पुण्यार्जन.. रविवार को निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज  को आहार देने का सौभाग्य सौभाग्य वीरेश सेठ  के परिवार को प्राप्त हुआ..
 निर्यापक मुनि श्री प्रसाद सागर के आहार बब्बू खजरी परिवार को प्राप्त हुआ निर्यापक मुनि श्री वीर सागर जी महाराज को आहार देने का सौभाग्य अभिषेक भैया मुनि श्री पदम सागर जी महाराज के आहार का सौभाग्य छल्लक आगत सागर परिवार  परिवार मुनि श्री शीतल सागर जी महाराज को आहार देने का संतोष गंगरा परिवार को गंभीर सागर जी महाराज के आहार का सौभाग्य आशीष उस्ताद परिवार को प्राप्त हुआ।

आचार्य श्री के प्रकल्पों को हम सब मिलकर पूर्ण करें.. मुनि श्री निष्पक्षसागर जी 
कुंडलपुर दमोह। सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर में युग श्रेष्ठ संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य पूज्य आचार्य श्री समय सागर जी महाराज के मंगल आशीर्वाद से पूज्य मुनि श्री निष्पक्ष सागर जी महाराज ने मंगल प्रवचन देते हुए कहा कुंडलपुर है बड़े बाबा का दरबार गुरु जी की कृपा है जेष्ठश्रेष्ठ मुनि श्री का आशीर्वाद है। घर होता है परिवार होता है बड़े बुजुर्ग होते हैं उन बड़े बुजुर्गों से हमें बहुत कुछ सीखने, समझने, सुनने मिलता है ।यदि वह बुजुर्ग हमें हमारी संस्कृति से परिचित न कराते हमारी विरासत से परिचित न कराते तो हम शून्य है।

 यह बुजुर्गों का ही पुण्य है हमारे सामने प्रतिफल है बुजुर्गों का पूर्वजों का कि आज आप और हम यहां बैठे हैं ।यदि उन्होंने यह संस्कार न दिए होते यह संस्कृति न दी होती तो हम कहां होते आप कहां होते। यह सब संस्कारों का ही प्रताप है प्रभाव है उन संस्कारों का ही प्रताप आज फलीभूत हो रहा है। आचार्य भगवन विद्यासागर जी महाराज हम सबके बीच में थे उन्होंने हम सबको संस्कारित किया मार्ग दिया दिशा दी हमारी दशा को व्यवस्थित किया ।जो घर में बुजुर्ग होते हैं घर में ग्रहस्थ लोग होते जो दादाजी होते वे नाती के सामने बोलते मैंने बहुत कुछ सोचा था अब शरीर साथ नहीं दे रहा है उम्र का प्रभाव है रोगों ने घेर लिया सक्षम नहीं हूं। मैंने सपना देखा है मैंने परिकल्पना की है मैं परिकल्पना को पूर्ण शायद नहीं कर पाऊंगा लेकिन आप लोग तो हैं जब सामान्य से दादाजी की छोटी सी इच्छा को परिकल्पना को विचार को पूर्ण करने ऐसा बोला दादाजी की ऐसी इच्छा थी तो हमें पूर्ण करना चाहिए। हमारे आध्यात्मिक के पुरोधा गुरुवर आचार्य विद्यासागर जी महाराज एक दादाजी के रूप में उन्होंने हमें बहुत कुछ दिया बहुत कुछ क्या सब कुछ दिया नहीं तो मैं तो शून्य था। आज मुनि श्री योग सागर जी का हाईकू याद आ रहा है सुंदर हाइकु है। मैं तो शून्य था संख्या के पीछे आया मूल्यता आई ।शून्य का कोई मूल्य नहीं होता उसके पीछे एक लिख दो तो उसका मूल्य हो जाता करोड़ों की संख्या हो जाती हम सब शून्य थे आचार्य महाराज ने सब कुछ दे दिया वह जो साधारण ग्रहस्थ हैं वह भी दादाजी के सपने को पूर्ण करने में एड़ी चोटी का जोर लगाते। हमारे पिताजी ,दादाजी ,माता जी सब कुछ वो ही थे ।आजकल एक भजन बहुत सुनने में आ रहा है उसकी एक दो पंक्तियां। उनने हमको सब कुछ दिया हम उनको कुछ ना दे पाए । उनने सब कुछ दिया अब हमारी बारी है हम सब की बारी है उनके प्रति अपनी विनयांजलि अपनी कृतज्ञान्जली हमारे गुरुदेव ने कुछ प्रकल्प प्रारंभ किये जो इस जैन संस्कृति को जीवित रखने वाले है इस जैन संस्कृति का गुणगान और यशगान बढ़ाने वाली है। स्थापत्य कला से निर्मित होने वाले जो पाषाण के जिनालय और उनमें निर्मापित होने वाली अष्टधातु के जिनविम्ब जिनकी उम्र युगों युगों तक हजारों वर्षों तक जैनत्व की गौरव गाथा का गुणगान करेंगी। उनमें से बहुत से प्रकल्प आचार्य भगवान ने पूर्णता को प्राप्त होते देखे हैं और कुछ उनके सपने रह गए। जाते-जाते आचार्य भगवन अमरकंटक पंचकल्याणक के बाद सहस्रकूट जिनालय को जिन्होंने पूर्ण होते देखा। ऐसे 18--20सहस्त्रकूट जिनालय का शिलान्यास उनके माध्यम से हो चुका है ।प्रतिकूलता में उन्होंने कभी हार नहीं मानी रोग ने उनको हरा दिया लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी ।उन्होंने अपने आप को कभी बूढ़ा नहीं माना बुजुर्ग नहीं माना ,उत्साह से भरे होते थे। आचार्य भगवान के सपनों को पूर्ण करने में हम सभी को सहभागी बनना है। आचार्य समय सागर जी महाराज के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सभी संघ को आगे बढ़ाना है। समय के साथ सबको चलना है।

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