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मुनि भगवान नहीं है किंतु भक्त उन्हें भगवान मानता है यही उसकी भक्ति है.. निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी के सानिध्य में भक्तांबर की क्लास.. श्रमण संस्कृति संस्कार शिक्षण शिविर का दूसरा दिन.. मुनि श्री दुर्लभ सागर जी का कुंडलपुर से विहार

मुनि श्री सुधा सागर जी के सानिध्य में भक्तांबर की क्लास

दमोह।  महान आत्माएं अपनी दृष्टि में कितनी भी गिर जाएं  किंतु  भक्त की दृष्टि में सदैव महान बनी रहती हैं मुनि भगवान नहीं है किंतु भक्त उन्हें भगवान मानता है यही उसकी भक्ति है जिस तरह बालक पानी में चंद्रमा की परछाई को सही का चंद्रमा मान लेता है इसी तरह भक्त को पाषाण में भी परमात्मा नजर आते हैं जैन दर्शन में मूर्ति की पूजा नहीं किंतु मूर्तिमान की पूजा होती है जैन दर्शन में व्यक्ति की पूजा नहीं वरन  गुण की  पूजा की जाती है भगवान गुण के समूह हैं उनके गुण चंद्रमा की तरह नहीं क्योंकि उसमें दाग है चंद्रमा की चांदनी की तरह है।
उपरोक्त विचार निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज ने दिगंबर जैन धर्मशाला में चल रहे सात दिवसीय श्रमण संस्कृति संस्कार शिक्षण शिविर के दूसरे दिवस भक्तांबर की क्लास में अभिव्यक्त किय इसके पूर्व मुनि श्री का पद प्रक्षालन किया गया एवं शास्त्र भेंट करने का सौभाग्य डॉ आई सी जैन को प्राप्त हुआ शिविर की प्रातः 5:00 बजे से विभिन्न कक्षाओं को मुनिगढ़ बहुत कुशलता से ले रहे हैं जिनमें श्रद्धालुओं की जबरदस्त भीड़ बहुत उत्साह के साथ सम्मिलित हो रही है शिविर में 8 साल से ऊपर के बच्चों के लिए सांगानेर से आमंत्रित युवा विद्वान कक्षाएं ले रहे हैं
मुनिश्री ने अपने प्रवचनों में आगे कहा कि दिगंबर जैन दर्शन पावर थिंकिंग पर आधारित है वह भक्त को इतना मजबूत बना देता है वह किसी से नहीं डरता भक्त के हौसलों को इतना ऊपर उठा देता है कि वह है भगवान तक पहुंचने के लिए मौत से भी नहीं डरता वह मगरमच्छ और खतरनाक जीव जंतुओं से भरे हुए समुद्र को लॉन्ग कर भी भगवान से मिलना चाहता है जिस तरह हिरनी अपनी शक्ति का विचार किए बिना अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए शेर से भी लड़ जाती है जब मौत भी भक्त को ना डरा सके तब भक्तांबर सिद्ध होता है..
इसके पूर्व प्रात काल 6:00 बजे से 7:00 तक निर्यापक मुनि श्री वीर सागर जी महाराज ने जीवन जीने की कला पर आधारित अपनी कक्षा में कहा आज का मानव साधन संपन्न होने के बावजूद भी सुख शांति से नहीं रह पा रहा है उसका जीवन तनावग्रस्त है जीवन को आनंदमय  बनाने के लिए नम्र बनना होगा जीवन की उह पोह को रोकने के लिए उसे स्वयं से पांच प्रश्न करने चाहिए मैं कौन हूं मेरे गुण क्या है कहां से आया हूं मुझे जीवन में क्या पाना है क्यों मुझे पाना है  प्रतिदिन उसको रात्रि में आज मैंने क्या-क्या किया और क्यों किया इस पर विचार करना चाहिए।

आज की आहारचर्या का सौभाग्य.. निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज  को आहार देने का  सौभाग्य ब्रह्मचारी स्वतंत्र भैया के परिवार को प्राप्त हुआ,  निर्यापक मुनि श्री प्रसाद सागर महाराज जी को आहार देने का सौभाग्य राजेश हथना वाले परिवार को प्राप्त हुआ, निर्यापक मुनि श्री वीर सागर जी महाराज को आहार देने का सौभाग्य ब्र.अमित भैया परिवार प्राप्त हुआ..
मुनि श्री प्रयोग सागर जी महाराज को आहार देने का सौभाग्य आनंद लैब परिवार को प्राप्त हुआ, मुनि श्री सुब्रत सागर महाराज जी को आहार देने का सौभाग्य दीपक स्टेशनरी परिवार को प्राप्त हुआ,मुनि श्री पदम सागर जी महाराज के आहार का सौभाग्य रानू खजरी वाले परिवार को प्राप्त हुआ मुनि श्री शीतल सागर जी महाराज को आहार देने का सौभाग्य हर्षित किराना वाले परिवार को प्राप्त हुआ,गंभीर सागर जी महाराज के आहार देने का सौभाग्य सोनम साइकिल वाले परिवार को प्राप्त हुआ। आप सभी के सपरिवार सतिशय पुण्य की बहुत-बहुत अनुमोदना..

मुनि श्री दुर्लभ सागर जी ससंघ का कुंडलपुर से विहार

कुंडलपुर दमोह ।सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर में संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य पूज्य आचार्य श्री समय सागर जी महाराज के मंगल आशीर्वाद से पूज्य मुनि श्री दुर्लभ सागर जी महाराज ,क्षुल्लक श्री निर्धूम सागर जी महाराज ससंघ का मंगल विहार 23 मई को कुंडलपुर से हुआ।
               

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