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पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के सातवे दिन.. नीलांजना नृत्य देखते हुए महाराज आदि कुमार को हुआ वैराग्य...राजपाट त्यागकर वन की ओर प्रस्थान करके मुनि दीक्षा ली.. आचार्य निर्भय सागर जी ने प्रतिष्ठित हो रही प्रतिमाओं को दीक्षित किया..

  जन्म कल्याणक के अर्ध्य चढ़ाए, तप कल्याणक मनाया

दमोह। जबलपुर नाका जैन मन्दिर मैं पंचमेरू प्रतिष्ठा पंचकल्याणक महोत्सव तहत वैज्ञानिक सन्त आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज के ससंघ सानिध्य में पालीटेक्निक कालेज परिसर में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महा महोत्सव का आयोजन चल रहा है। सातवें दिन मंगलवार को प्रातः बेला में 24 तीर्थंकर के जन्म कल्याणक अर्घ्य चढ़ाने के बाद दोपहर में तप कल्याणक की क्रियाएं संपन्न हुई। आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने प्रतिष्ठित हो रही जिन प्रतिमाओं की दीक्षा की क्रियाओं को संपन्न कराया। महोत्सव के आठवें दिन बुधवार को 24 तीर्थंकर भगवान के तप कल्याणक पूजन होगा। मुनि आदिकुमार की प्रथम आहारचर्या होगी। दोपहर में ज्ञान कल्याणक मनाया जाएगा। समोशरण से दिव्य ध्वनि खिरेगी।

 पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव अवसर पर पालीटेक्निक परिसर में विशाल पंडाल में निर्मित अयोध्या नगरी में मंगलवार को प्रातः बेला में खराब मौसम के बीच श्री जी की अभिषेक शांतिधारा संपन्न हुई। शांति धारा का सौभाग्य राजेश अरुण ओशो एवं बृजेश सुनील क्रॉकरी परिवार को प्राप्त हुआ।

 इस अवसर पर आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने अभिषेक शांतिधारा का महत्व बताते हुए कहा कि इसमें यंत्र तंत्र मंत्र का समावेश होने के साथ नवग्रह की शांति का रहस्य छुपा हुआ है। अभिषेक शांतिधारा करने वाले श्रावक को कभी नवग्रह की पीड़ा नहीं सताती। क्योंकि शांति धारा के मंत्रों में ग्रह शांति मन्त्रो का समावेश हमारे पूर्व आचार्यों द्वारा हजारों वर्ष पूर्व किया जा चुका है। आचार्य श्री ने शरीर और आत्मा के अंतर को बताते हुए कहा कि जिस तरह से वातावरण में वायु नजर नहीं आती, खुशबू नजर नहीं आती लेकिन उसे महसूस किया जा सकता है उसी तरह आत्मा नजर नही आने के बावजूद सम्यक दर्शन ज्ञान के माध्यम से आत्म कल्याण के जरिये मोक्ष मार्ग पर प्रशस्त हुआ जा सकता है।

प्रातः बेला में प्रतिष्ठाचार्य अभिषेक आशीष शास्त्री के निर्देशन में 24 तीर्थंकर के जन्म कल्याणक पूजन के साथ अर्घ समर्पित किए गए। दोपहर में आदि कुमार के राज्य अभिषेक उनके विवाह राज्य संचालन, असी, कृषि, मसी का ज्ञान देने सहित अन्य प्रसंग सामने आए। इस तरह महाराज आदि कुमार को राज्य संचालन करते हुए लाखों वर्ष बीत गए। जिसके बाद सौधर्म इंद्र के साथ देवो को यह चिता सताने लगी की महाराज जी इसी तरह राज रंग में डूबे रहे तो फिर वह लोगों को आत्म कल्याण का मार्ग कैसे दिखाएंगे।

 जिसके बाद स्वर्ग से नीलांजना नाम की देवी को महाराजा आदि के दरबार में नृत्य करने के लिए पहुंचती है और नृत्य करते-करते गिरने के बाद वह दोबारा नहीं उठ पाती है। आंखों के सामने मृत्यु के इस प्रसंग को देखकर महाराज आदि कुमार को वैराग्य हो जाता है तथा वह अपना राजपाट पुत्र भरत बाहुबली को सौंपकर वन की और प्रस्थान करके मुनि दीक्षा ले लेते हैं। 

 इस अवसर पर आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने प्रतिष्ठित हो रही जिन प्रतिमाओं की दीक्षा की क्रियाओं को भी संपन्न कराया। आदिकुमार मुनिराज को पिच्छिका देने का सौभाग्य महेंद्र करूणा सुनील वैजेटेरियन परिवार को प्राप्त हुआ। महोत्सव के आठवें दिन बुधवार को 24 तीर्थंकर भगवान के तप कल्याणक पूजन बाद भगवान का ज्ञान कल्याणक मनाया जाएगा।
आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज के ससंघ सानिध्य में दीक्षा कल्याणक की क्रियाओं को देखने के लिए अयोध्या नगरी में हजारों की भीड़ बढ़ने से विशाल पंडाल जहां छोटा पड़ता नजर आया वहीं मौजूद लोगों की आंखें भी बार-बार नम होती रही। आज कुंडलपुर से आर्यिका रत्न पूर्णमति माता जी का विहार कराते हुए दमोह पहुचे मुकेश जैन ढाना भी पंच कल्याणक स्थल पर पहुचे। जहां उन्होंने आचार्य श्री को श्रीफल भेंट करके आर्शीवाद प्राप्त किया। वहीं आयोजन समिति द्वारा उनका सम्मान किया गया। आयुष जैन की रिपोर्ट

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