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भारत की सोशल मीडिया पर हावी होती विदेशी ताकत.. सोशल मीडिया के प्रभावी होते ही उसे चलाने वाला हर व्यक्ति एक स्वतंत्र पत्रकार हो चला है.. लिखने और बोलने की यह स्वतंत्रता कभी-कभी अतिशयोक्ति के चरम पर है..शिशिर बड़कुल

 भारत की सोशल मीडिया पर हावी होती विदेशी ताकत..                                                                                    

सोशल मीडिया के प्रभावी होते ही उसे चलाने वाला हर व्यक्ति एक स्वतंत्र पत्रकार हो चला है । पर लिखने और बोलने की यह स्वतंत्रता कभी-कभी अतिशयोक्ति के चरम पर होती है। भारत के अंदर या बाहर कहीं से भी हम भारत विरोधी बातें सुनते हैं तो यह नई बात नहीं है । हम 200 वर्षों से इस कूटनीति से संघर्ष कर रहे हैं जो बार-बार हमारी संस्कृति पर आघात करती आ रही है । आज भी भारत के प्रति विदेशी मानसिकता और उस विदेशी मानसिकता के भारतीय समर्थकों पर लॉर्ड मैकाले की सोच हावी है ।

18 वीं सदी में कई वर्ष भारत रहने के बाद लॉर्ड मैंकाले जब ब्रिटिश संसद में अपनी बात रखता है, तो बताता है कि मैंने भारत को घूम घूम कर काफी करीब से जाना है । बेशुमार दौलत से भरपूर भारत में ऊंचे चारित्रिक आदर्श और गुणवान मनुष्य रहते हैं , अगर हमें भारत को जीतना है तो हमें इसकी आध्यात्मिक, सांस्कृतिक विरासत, पुरातन शिक्षा व्यवस्था और संस्कृति पर प्रहार करना होगा । भारतीयों के अंदर उनकी संस्कृति के प्रति हीन भावना पैदा करनी होगी । तब से लेकर आज तक यही सिद्धांत सतत जारी है इसी कूटनीति के चलते हम वर्षो तक गुलाम रहे।  सोशल मीडिया के युग में जब पूरी दुनिया एक प्लेटफार्म पर अपनी बात रख सकती है,तब भी अगर एक किसी देश की बात लगातार चलती है तो वह भारत है।  भारत के हर घटनाक्रम पर विदेशी ताकतें अपना नकारात्मक पहलू ना सिर्फ व्यक्त करती हैं बल्कि इसका प्रचार-प्रसार भी करती हैं । हमेशा से हमारे बीच ऐसे लोग मौजूद भी रहे हैं जिन्हें भारत की आस्था पर हो रहे ये कटाक्ष बड़े लुभाते हैं और यहीं हमारा देश कमजोर हो जाता है ।

  सोशल मीडिया चलाते समय अगर यह प्रयोग करते हैं, कि हम अपनी प्रोफाइल से निकलकर उस समय के भारत और विश्व स्तरीय ट्रेंड पता करें और उस पर कार्य करने वालों की प्रोफाइल देखें, तो समझ आएगा कि यह सब होना आम बात नहीं है, इसके पीछे बड़े तंत्र और बड़ी ताकतें योजना बद्ध तरीके से निरंतर लगे हुए है । मैकाले की वह काली सोच आज भी काम कर रही है । हमारी संस्कृति भारत की आत्मा है , जिस पर हमारी अटूट आस्था है । अगर हम उस पर प्रहार सहन करते हैं तो इसका मतलब हम अपना स्वाभिमान अपना आत्म सम्मान खो चुके हैं । ऐसे एक नही कई उदाहरण हैं । भारत एक लोकतांत्रिक देश है, चुनावी मतभेद होना आम और आवश्यक बात है । पर चिंतन करने की बात यह है कि इन आंतरिक गतिविधियों में विदेशी सोच और विदेशी ताकत का क्या काम है  ? जिसे भारत के महान संविधान की जानकारी नहीं, जिसे भारत में मताधिकार नहीं, उसे हमारी संसद हमारी सरकारों के फैसलों के फैसले के विरुद्ध होती प्रतिक्रिया से क्या लेना देना ? लेकिन इसके विपरीत ऐसे नकारात्मक लोगों की पैनी नजरें भारत की सड़क से लेकर संसद तक लगातार बनी हुई है।

 ऐसी कई घटनाएं प्रतिदिन प्रतिफल हो रही हैं । पर जरूरी नहीं कि हर घटना हमारा ध्यान अपनी तरफ खींचे, कुछ प्रतिक्रियाएं प्रत्यक्ष रूप से हमारे सामने होती है और कुछ घटना अप्रत्यक्ष रूप से घटित होती है । सामने से हो रहे युद्ध से कहीं अधिक कठिन वह युद्ध होता है जिसका नेतृत्व धुंधला होता है।  इसी तरह हमारा युद्ध एक अलग तरह की विचारधारा से तो होता है, पर इसके पीछे तंत्र कौन है यह हमें ज्ञात नहीं होता । सोशल मीडिया पर अगर कुछ भारत विरोधी पोस्ट आया है या कोई भारत विरोधी ट्रेंड चल रहा है, तो उसका सही विश्लेषण करेंगे तो एक ही विचारधारा का समूह पाया जाएगा । भारत पर लगातार कुठाराघात कर रही विदेशी ताकत हमेशा से भारत के अंदर से ही उनकी विचारधारा को समर्थन करने वाले लोगों को इस्तेमाल करके भारत के ही विरुद्ध तैयार करती है। फिर पैसे से और अन्य तंत्रों से बेहिसाब मदद भेजी जाती है, फिर यही चंद लोग मैकाले के उस सिद्धांत पर कार्य करने लगते हैं जिसमें देश के साथ देशवासियों के मनोबल ,आत्मसम्मान, आत्मनिर्भरता, दैविक संस्कारों का हनन हो और हमारे हृदय में महान भारत के प्रति हीन भावना का बीज अंकुरित हो ।

   सोशल मीडिया के इस तीव्रता से बढ़ते युग में अति आवश्यक है कि हम प्रखरता और मुखरता से अपनी बात स्पष्ट तरीके से सोशल मीडिया के हर मंच पर रखे । हमारी हर एक बात में राष्ट्रीयता, राष्ट्रप्रेम, देश के प्रति सम्मान की भावना, लोकतंत्र पर गर्व और संविधान का सम्मान स्पष्ट झलके । अगर कहीं कोई पोस्ट या कोई घटना क्रम भारत विरोधी होता नजर आए तो तथ्यात्मक तरीकों से विषय वस्तु की बात कर अपनी सजगता का परिचय दें । जब हमारी वैचारिक लड़ाई पूरी दुनिया से है तो है आवश्यक हो जाता है कि हम सब एक होकर इसका सामना करें । विश्व को हर स्तर पर बताना होगा कि यह नया भारत गांधी को हृदय, में विवेकानंद को मन में और भगत सिंह को रगों में लेकर आगे बढ़ रहा है । आज फिर समय आ गया है कि हम सामाजिक समरसता और सौभाग्य का परिचय विश्व को दें । (लेखक भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश सह मीडिया प्रभारी हैं )

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