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आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के समाधि मरण की खबर से संपूर्ण देश का जैन समाज स्तब्ध.. गणधर स्वामी की ज्ञान कल्याणक बेला में ली अंतिम सांस.. बारा राजस्थान में 16 नवम्बर को होगा अंतिम संस्कार..

 बारा में आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज की समाधि 

देहली/वारा (राजस्थान)। देश के दिगंबर जैन समाज के ख्याति प्राप्त सन्तो में से एक तथा बुंदेलखंड से विशेष लगाव रखने वाले मुरैना में जन्में आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज अब इस दुनिया में नहीं रहे। यह खबर रविवार शाम जैसे ही सोशल मीडिया पर वायरल हुई किसी को सहसा विश्वास ही नहीं हुआ। बाद में आचार्य श्री की समाधि मरण की तस्वीर वायरल होने के साथ ही देश का सकल जैन समाज स्तब्ध रह गया।

आचार्य श्री ज्ञान सागर जी महाराज की राजस्थान के वारा नसिया जी में दीपावली के दूसरे दिन गणधर स्वामी की ज्ञान कल्याणक बेला में समाधि हो जाने की जानकारी ने देश भर की सकल दिगंबर जैन समाज के साथ ही देश भर में फैले उनके शिष्यों को हतप्रद कर के रख दिया है। बताया जा रहा है कि पिछले कुछ दिनों से उनका स्वास्थ्य नाजुक चल रहा था तथा उन्होंने अपने मरण को नजदीक से समझ कर समाधि का निश्चय कर लिया था। लेकिन इसके पूर्व ही रविवार शाम आचार्य भक्ति के उपरांत अचानक आए अटैक से बैठे बैठे ही उन्होंने अपनी इस नश्वर काया का त्याग कर दिया।

दीपावली के दूसरे दिन गणधर स्वामी की ज्ञान कल्याणक बेला में जब देश की सकल जैन समाज दीए जलाकर ज्ञान कल्याणक रूप दिवाली मना रही थी तब आचार्य ज्ञानसागर जी ने इस नश्वर काया का शाम 6 बजे आचार्य भक्ति के तुरन्त बाद त्याग कर दिया। आचार्य श्री ने समाधि पूर्व उपस्थित सभी भक्तजनों को आशीर्वाद प्रदान किया। आचार्य श्री की मुनि दीक्षा सोनागिर जी में महावीर जयन्ती 31-03-1988 हुई वही उनकी अंतिम यात्रा डोल सोमवार 16 नवंबर को वारा नसिया जी से निकाली जाएगी। 
परम पुज्य सराकोद्धारक आचार्य ज्ञान सागर जी महाराज

जन्म तिथि बैशाख शुक्ल द्वितीय वि सं. 1 मई 1957, जन्म स्थान मुरैना (मध्यप्रदेश), जन्म नाम श्री उमेश कुमार जी जैन, पिता का नाम श्री शांतिलाल जी जैन,माता का नाम अशर्फी देवी जैन,ब्रह्मचर्य व्रत  सं. 2034, सन् 1974, क्षुल्लक दीक्षा  सोनागिर जी 5-11-1976, क्षु. दीक्षोपरांत नाम  क्षु श्री गुणसागर जी, क्षुल्लक दीक्षा गुरू आचार्य श्री सुमतिसागर जी महाराज, मुनि दीक्षा सोनागिर जी महावीर जयन्ती 31-03-1988, मुनि दीक्षोपरांत नाम  मुनि श्री ज्ञानसागर जी, दीक्षा गुरु आचार्य श्री सुमतिसागर जी महाराज, उपाध्याय पद   सरधना 30-11-1989 मेरठ (उ. प्र.),आचार्य पद  बागपत मई 2013 (उ. प्र.)
ज्ञान की संपदा से समृध्द आचार्य श्री १०८ ज्ञान सागर जी महाराज का व्यक्तित्व एक ऐसे क्रान्तिकारी साधक की अनवरत साधन यात्रा का वह अनेकान्तिक दस्तावेज है जिसने समय के नाटय गृह में अपने सप्तभंगी प्रज्ञान कं अनेको रंग बिखेरे है। चंम्बल कं पारदर्शी नीर और उसकी गहराई ने मुरैना में 1 मई 1957 को इन महान तपस्वी का उदय उमेश के रूप में हुआ । मात्र 17 बर्ष की आयु में ब्रम्हचर्यं व्रत और 19 वर्ष की आयु में ग्यारह प्रतिमा व्रत को धारण कर 12 वर्षो तक अपने जीवन को तप की अग्नि में तपाकर कुंदन बनाया । पूज्य पिता श्री शांतिलाल जी एवं माताश्री अशर्फी देवी जो की प्रथम संतान उमेश जी ने 5 नवम्बर 1976 को सिद्धक्षेत्र सोनरगीर में क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की एवं अपने गुरू समाधि सम्राट आचार्य 108 श्री सुमतिसागर जी के चरणो में स्वयं को सदा सदा के लिए समर्पित कर दिया। उमेश से रूपांतरित हुए क्षुल्लक गुणसागर जी ने कंइं वर्षो तक न्याय व्याकरण एवं सिद्धान्त कं अनेक ग्रंथो का चिंतन मनन एवं अधययन किया। तपश्चरण की कठिन और बहु आयामी साधना अपनी पूर्ण तेजस्विता के साथ अग्रसर रही। अपने उत्कर्ष की तलाश में महावीर जयंती के पावन प्रसंग पर 31 मार्च 1988 को क्षु. श्री ने आचार्य १०८ श्री सुमतिसागर जी महाराज सें सिध्दक्षेत्र सोनरगीर दतिया म. प्र. में निग्रंन्थ मुनि दीक्षा ग्रहण की और तव आविर्भाव हुआ उस युवा कांतिदृष्टा तपस्वी का जिसे मुनि ज्ञानसागर के रूप में युग ने पहचाना । अल्प समय पश्च्यात ही 3० जनवरी 1989 को सरधना जिला-मेरठ उ.प्र. में आचार्य १०८ श्री सुमतिसागर जी ने पूज्य श्री ज्ञान सागर महाराज जी को उपाध्याय पद से सुशोभित किया।
परम पूज्य आचार्य १०८ श्री ज्ञानसागर जी वर्तमान युग कं एक ऐसे युवा दृष्टा क्रांतिकारी विचारक जीवन सर्जक और आचार निष्ठ दिगम्बर संत है जिनके जनकल्याणी विचार जीवन की अनन्त गहराईयो, अनुभूतियो एव साधना की अनंत ऊँचाईयो सें उदभूत हो मानवीय चिंतन के सहज परिष्कार ने सन्नद्ध है । पूज्य गुरुदेव के उपदेश हमेशा जीवन समस्याओं की गहनतम साथियो के मर्म का संस्पर्श करते है। जीवन को उसकी समग्रता में जानने और समझने की कलाओं से परिचित कराते है । उनकें साधनामयी तेजस्वी जीवन को शब्दो की परिधि में बांधना संभव नही है । परम पूज्य आचार्य श्री के संदेश युगो युगो तक सम्पूर्ण मानवता का मार्गदर्शन करें, हमें अंधकार से दूर प्रकाश के बीच जाने का मार्ग बताते रहे। 
बुंदेलखंड के साथ दमोह से भी रहा है गहरा नाता.. 

आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज को बुंदेलखंड से गहरा नाता और यहां की तीर्थ क्षेत्रों की बंदना से गहरा लगाव रहा है। 2008 में उपाध्याय श्री ज्ञानसागर महाराज के रूप में दमोह वासियों को सानिध्य प्राप्त हुआ था वही बाद में बांसा तारखेडा मैं भी उपाध्याय श्री ज्ञानसागर महाराज के सानिध्य में विधान का एक बड़ा आयोजन हुआ था। संभवत उसके बाद उनके चरण दमोह जिले में दोबारा नहीं पढ़े। ऐसे पूज्य आचार्य श्री ज्ञानसागर जी की समाधि मरण की बेला में AtalNews 24 परिवार की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि शत शत नमन..

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