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कचौरा बाजार क्षेत्र बनाम शहर का सबसे बड़ा कचड़ा बाजार.. इधर अमृत योजना तहत बन रहे करोड़ों के नालो में भरी है विष जैसी गंदगी.. मानसून की दस्तक के साथ जगह जगह फिर बनेगे पानी भराव के हालात.. नपा के जिम्मेदार कर रहे सफाई व्यवस्था से खिलवाड़..

कचौरा बाजार क्षेत्र बना सबसे बड़ा कचड़ा बाजार..
दमोह। कोरोना वायरस के संक्रमण काल में भी नगर पालिका प्रशासन द्वारा शहर में नियमित सफाई व्यवस्था के नाम पर मजाक किए जाने जैसे हालात चिंता का विषय है। शहर के कचोरा बाजार क्षेत्र में लगने वाले कचरे के ढेर की नियमित सफाई नहीं होने से नगरपालिका के किराएदार दुकानदारो के साथ यहा पर आने वाले आम नागरिकों को सबसे अधिक परेशानी उठाना पड़ रही है।
 यह हालात नगरपालिका के स्वामित्व वाले सबसे पुराने मार्केट कचौरा बाजार क्षेत्र के है। बसस्टेंड के पिछले हिस्से से लेकर घंटाघर इलाके की मेन रोड से कनेक्ट इस क्षेत्र में नगर पालिका की किरायेदारी वाली दुकाने काफी संख्या में है। वही लोगों की निजी दुकाने, पट्टे तथा कब्जे वाली दुकानें भी चारों तरफ संचालित है। जिनसे नगर पालिका द्वारा किराया वसूली के साथ सफाई प्रकाश आदि Tex भी लिया जाता है। लेकिन यहां नियमित सफाई के नाम पर मजाक किया जा रहा है। जिससे थोक फुटकर दुकानदारों के अलावा यहां आने वाले ग्राहक तथा आम नागरिक भी बदबू तथा गंदगी बड़े हालात से हलकान हैं। अनेक दुकानदारों का तो यहां तक कहना है कि वह कई बार नगर पालिका के जिम्मेदार अमले तथा पार्षद को हालात से अवगत करा चुके हैं लेकिन कचरे के ढेर जस के तस बने रहते हैं। 
उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र में नगर पालिका द्वारा सफाई व्यवस्था के नाम पर सबसे अधिक राशि खर्च की जाती है। वही पूर्व में इस वार्ड में गंदी बस्ती उन्मूलन सहित अन्य मदों से भी क्षेत्र में शौचालय निर्माण साफ सफाई व अन्य कार्यों पर भारी भरकम खर्च की जा चुकी है लेकिन हालात "ढाक के तीन पात" जैसे बने हुए हैं।  जो कहीं ना कहीं जिम्मेदारों की नियत पर सवाल खड़े करते हैं। मानसून की दस्तक के पूर्व यहां सफाई व्यवस्था की अनदेखी होना चिंताजनक है। वही जरा सी बारिश होने पर कचरे में से उठने वाली बदबू की वजह से दुकानदारों का बैठना मुश्किल हो जाता है। इधर आवारा मवेशी भी यहा पड़े कचरे में अपने भोजन की तलाश के साथ उसे चारों तरफ फैलाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते।
अधूरे नाला कार्य बारिश में बनेंगे मुसीबत की वजह..
रेलवे स्टेशन के समीप नाला निर्माण कार्य अधूरा पड़ा रहने के अलावा अमृत योजना के तहत निर्मित कराए जा रहे करोड़ों के नालों की अनेक स्थानों पर गहराई तथा चौड़ाई निर्धारित मापदंड से कम होने, निर्माण कार्य घटिया स्तर का अधूरा होने तथा पुराने नालों की सफाई किए बिना ही उनके ऊपर नए नालो को निर्मित कराए जाने जैसे हालात आने वाले बारिश में ठीक ढंग से पानी निकासी नहीं होने से परेशानी की वजह बन सकते हैं।  पिछले दिनों निसर्ग तूफान की बजह से हुई बारिश के दौरान किल्लाई नाका बालाकोट मार्ग की पुलिया पानी में डूबने के साथ मुसीबत की बजह बन ही चुकी है। फिर भी इस ओर अभी किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। इधर नालों की गंदगी गार्ड लाईन की नालियों में रिवर्स होने तथा पाइपलाईन लीकेज की बजह से नलो से दूषित पानी भी अनेक घरों में पहुच रहा है। जिसकी शिकायतों के बाद भी अनदेखी का दौर जारी रहना आश्चर्य का विषय है। 
नगर पालिका द्वारा शहर के नालों नालियों की इस वर्ष सफाई करा कर फोटो विज्ञप्ति जारी करके पब्लिक सिटी की जा रही है वास्तव में सफाई के हालात वैसे नहीं है। "आगे पाठ पीछे सपाट" जैसे हालात में नाला नालियों में ऊपर तैरती प्लास्टिक की पन्नी, पाउच, पानी बाटल आदि के कचरे को निकाले जाने के बावजूद नीचे जमी गंदगी, कचरे की परतों को पूरी तरह से बाहर नही निकाला जा रहा है। इसके बावजूद नगर पालिका प्रशासन नाला सफाई की फोटो विज्ञप्ति जारी करके यह बताने से नहीं चूक रहा है कि वह सफाई व्यवस्था को लेकर कितना अलर्ट है तथा कितनी राशि खर्च कर रहा है।
फर्जीवाड़े के क्लाईमेक्स पर एक नजर इधर भी..
दमोह नगर पालिका द्वारा शहर के 39 वार्डों में नियमित सफाई कामगारों के अलावा मस्टर तथा ठेके पर संचालित सफाई व्यवस्था के तहत लाखों रुपए की राशि हर माह खर्च की जाती है। इधर कचरा गाड़ियों, ट्रेक्टर व अन्य गाड़ियों के आयल डीजल पेट्रोल तथा मेंटेनेंस के नाम पर भी बड़ी रकम खर्च होती है। लेकिन इन सभी कार्यों के जो बिल नगर पालिका से मंजूर किए जाते हैं तथा वास्तव में पेट्रोल डीजल आयल मेंटेनेंस पर जो खर्च होता है उसमे काफी अंतर की बात जानकर कर रहे है। इसकी जांच कराई जाए तो वर्षों से चले आ रहे फर्जीवाड़े को उजागर होते देर नहीं लगेगी। लेकिन सवाल यही उठता है आखिर फर्जीवाड़े की जांच करेगा कौन और कराएगा कौन ? क्योंकि यहां पर उपयंत्रीओं से लेकर अन्य जिम्मेदार करीब तीन दशक से "अंगद के पैर" की तरह जमे हुए हैं। वही नगर पालिका मैं सूचना का अधिकार ठंडे बस्ते में दफन कर दिए जाने जैसे हालात हैं 
ऐसे में "अपने हाथ और जगन्नाथ" की कहावत चरितार्थ करने में लगे जिम्मेदारों को शहर की सड़कें छोड़कर "मोती बाग" क्षेत्र के विकास व डामरीकरण पर ही सारा ध्यान अटका रहना अब चर्चा का विषय बनने लगा है। कलेक्टर महोदय के प्रशासक कार्यकाल में नाबार्ड योजना सहित कुछ अन्य मदों के बिल भुगतान भी नगर पालिका द्वारा जिस तरह से किए गए हैं उसकी जानकारी भले ही आज जिम्मेदार देने को तैयार नहीं हो लेकिन आज नहीं तो कल इन सब की पोल तो खुलेगी ही, इतना तय है. प्रभारी सीएमओ कपिल खरे का मोबाइल हमेशा की तरह आज भी नहीं लगने की बजह से इस पालिका पुराण में फिल हाल उनके पक्ष का समावेश नहीं हो सका है...पिक्चर अभी बाकी है..

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