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वाटरसेट तथा पंचायतों में पानी रोकने करोड़ों खर्च के बावजूद.. बटियागढ के खिरिया असली में नकली काम.. पटेरा के नयागांव के तालाब में न पिचिंग न पानी.. हटा के करकोई में चट्टानों का सीना चीरकर किया आदिवासियों ने पानी का इंतजाम..

  गांव में पानी के नाम पर बंदरवाट की की तीन तस्वीरें
दमोह। जल ही जीवन है तथा जल है तो कल है के नारे विभिन्न जल योजनाओं पर लाखों करोड़ों की राशि खर्च हो जाने के बाद महज स्लोगनों में ही सुहावने लगते नजर आते है। दमोह जिले में पानी रोकने से लेकर पानी बचाने के नाम पर ग्राम पंचायत स्तर पर जिस तरह से शासकीय राशि को पानी की तरह बहाया गया है उससे अनेक गांवों में योजना के कार्य उद्देश्यों की ही पूर्ति होती नजर नहीं आती। वहीं खेत तालाब से लेकर मवेशियों व निस्तार के लिए तालाब निर्माण तथा वाटर सेट मिशन तहत कराए गए कार्यो में जमकर भ्रष्टाचार के साथ शासकीय धन के बंदरवाट जैसे हालात बने हुए है। यहां हम पानी के नाम पर तीन अलग अलग गांवों के हालात बता रहे है। जिनकों देखकर आप अंदाजा लगा सकते है कि राजा नल और रानी दमयंती के जिले में पानी के नाम पर किस तरह से भ्रष्टाचार की गंगोत्री में डुबकी लगाकर संबंधितों ने बारे न्यारे किए होगे। 
बटियागढ. के खिरिया असली में नकली काम-
बटियागढ़ ब्लाक में पानी बचाने के लिए जनपद पंचायत के बैनर तले विभिन्न गांव में कराए गए कार्यो में जमकर भ्रष्टाचार के हालात सामने आए है। फिलहाल हम खिरिया असली पंचायत में बाटरसेट मिशन तहत कराए गए नकली कार्यो का एक हिस्सा ही दिखा रहे है। यहां पहले से निर्मित नाले को जेसीबी से गहरा करके तथा जंगल के पत्थरों से पिचिंग निर्माण की औपारिकताए पूरी कराइ गई है। फरवरी 2020 में चल रहे इस कार्य के दौरान मौके पर किसी के भी नहीं होने पर जब टीम लीडर पवन शर्मा से मोबाइल पर जानकारी चाही गई उन्होंने अकड़ दिखाते हुए मोबाइल बंद कर लिया। बटियागढ़ जनपद पंचायत के सीईओ आरसी चौबे भी जानकारी देने से बचते रहे। जिला पंचायत में संचालित जल ग्रहण मिशन के अधिकारी अहिरवार ने सूचना अधिकार तहत ही जानकारी दे पाने की बात कहीं।
  एक माह बाद सूचना अधिकारी तहत दी गई जानकारी में यहां पर किसी भी प्रकार कार्य नहीं चलने की जानकारी दी गई। इस सब को लेकर जब जिला पंचायत के सीईओ गिरीश मिश्रा से चर्चा की गई तो उनका कहना था कि आप शिकायत करे तो जांच करा लेंगे। यानि सब कुछ बताने के बाद भी भी अधिकारी स्वतह संज्ञान में लेकर कार्रवाई करना तो दूर पूरी बात सुनने को भी तैयार नहीं दिखे। 
पटेरा के नयागांव के तालाब में न पिचिंग न पानी-
पटेरा ब्लाक के सुदूर ग्राम पंचायत नयागांव में पंचायती राज में भ्रष्टाचार की ऐसी गंगा बहाई है कि यहां कागजों के अलावा धरातल पर कुछ भी नजर नहीं आता। फिलहाल यहां के एक तालाब के हालात दिखा रहे है जिसके निर्माण के नाम पर सरपंच सचिव ने लाखों की राशि डकार ली। लेकिन मौके पर न पिचिग नजर आती है और न मवेशियों के लिए पानी। इतन सब हो जाने के बाद कहां जा रहा है कि वन विभाग द्वारा आपत्ति लगा देने से कार्य अधूरा पड़ा है। लेकिन सवाल यही उठता है कि पहाड़ों की तलहटी में पूर्व से निर्मित तलैया में तालाब निर्माण की मंजूरी देने से लेकर पिचिंग आदि के नाम पर लाखों की राशि डकारने के दौरान यहां पर वन भूमि होने तथा बाद में आपत्ति लगने जैसे हालात की अनदेखी क्यों की गई।
चट्टानों का सीना चीरकर किया पानी का इंतजाम-
दमोह जिले के हटा ब्लाक के करकोई के जंगल मे रहने वाले आदिवासियो ने चट्टानों का सीना चीर अपने स्वयं के लिये पेयजल और सिंचाई सहित अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए मिलजुल कर सामूहिक श्रमदान करके नाले का निर्माण कर लिया। अब खेती को भी भरपूर पानी मिलने लगा। करीब 6 साल से चल रहे श्रमदान और पिछले 2 वर्षों से युद्धस्तर पर अभियान के रूप में किये जा रहे कार्य का नतीजा है कि करकोई गांव के नादिया वाड़ी में अब प्रवाहित जल जरूरतें पूरी कर रहा है। 
लोगों की सालो की मेहनत और चट्टानों को तोड़तोड कर तैयार किया गया जलस्रोत अब जंगली नाले की रूप में बहने लगा है। लोग इस नाले के पानी से अपनी प्यास तो बुझा ही रहे हैं साथ ही मवेशियों और कृषि कार्य के लिए भी यह जल सहायक सिद्ध हो रहा है। आदिवासियों द्वारा एक नाला तैयार करने की खबर पर कलेक्टर तरुण राठी और जिला सीईओ गिरीश मिश्रा ने सरकार की ओर से पूरी मदद और पंचायत स्तर पर कार्य कराने का भरोसा दिया है। अधिकारियों ने पंचायत से प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश दिए हैं। जल्द ही मनरेगा से यहां एक तालाब का निर्माण कराया जाएगा, ताकि इन लोगो की मेहनत बेकार न जाये और लोगो को वर्ष भर पानी मिलता रहेगा।
दअरसल इस अंचल में जलसंकट की स्थिति हमेशा बनी रहती है। खेतो में सिंचाई और लोग अपनी प्यास तक बुझाने के लिए परेशान रहते थे। इस परिस्थिति से निपटने  करकोई तालगांव के आदिवासियों ने एक बैठक बुलाई और जंगल मे नाला खोदने का निर्णय लिया गया। गांव के करीब 25 परिवारों के लोग और महिलाएं जंगली पत्थरों के बीच पानी की बूंदे तलाशने में जुट गए और कुछ सालों के निरंतर संघर्ष का नतीजा यह हुआ कि अब करीब 6 फीट गहरे और 50 फीट लम्बाई वाले नाले में दूधिया जल धारा प्रवाहित हो रही है, जिससे आदिवासी अपनी प्यास तो बुझाते ही है, साथ में मवेशियों और अन्य ग्रामीणों की समस्याओं का समाधान हो गया है। आदिवासियों की इस लगन और मेहनत ने इस खोदे गए नाले के पानी से 20 किसानों की सेकड़ों एकड़ जमीन भी सिंचित हो रही है।
इन मेहनतकश आदिवासियों की बातों को मानें तो शुरुआती दौर में जलसंकट के चलते पँचायत स्तर से लेकर कई अधिकारियों से इन्होंने गुहार लगाई लेकिन कोई सुनवाई नही हुई, फिर सभी लोगों ने नाला खोदने का निर्णय लिया। यहां वारिस के दिनों में जंगल का पानी लबालब भर जाता, वहीं गर्मी के सीजन में भी पानी भरा रहता, जो लोगों के साथ-साथ मवेशियों को भी सहायक सिद्ध हो रहा है।
पिक्चर अभी वाकी है.. पानी के नाम पर करोड़ों के काम के हालात इन तीन गांव तक सीमिति नहीं है। पंचायत या वाटर सेट ही शामिल नहीं बरन जल संसाधन विभाग, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग, ग्रामीण यांत्रिकी विभाग के अलावा नगरीय निकायों ने भी पानी के नाम पर करोड़ों फूंके है। पानी नाम के पर बारे न्यारे करने वालों की करतूत की पिक्चर अभी बाकी है। जल्द अपडेट के साथ मिलते है.. अटल राजेंद्र जैन..

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