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बच्चो को ड्रेस, साइकिल, पुस्तकें, मिड डे मील देने वाली सरकार जूते भी मुहैया कराए.. तिंदोनी स्कूल के विद्यार्थियों में से अधिकांश नंगे पाव.. आयोग मित्र ने किया ध्यानाकर्षण..

तिंदोनी स्कूल के 136 छात्रों में से अधिकांश नंगे पाव-
दमोह। मप्र में प्राथमिक विद्यालयों के क्षेत्र में अनेक कार्य होने के बावजूद धरातलीय स्तर पर आकलन की आवश्यकता है। वर्तमान में प्रदेश में 81 हजार से ज्यादा प्राथमिक विद्यालय है,जहां लाखो बच्चे पढ़ते हैं। शासन स्तर पर सुविधाए तो दी गई पर स्वास्थ्य का ध्यान कम रहा। शिक्षा मूल्य आधारित स्वर्णिम अतीत से भरी है ,पर थपेड़े और उलझ से भरी आगामी राह चुनौतीपूर्ण है। आयोग मित्र धीरज जॉनसन ने कुछ समय पूर्व इस विषय को आयोग के सामने रखते हुए दमोह जिला मुख्यालय से मात्र 5-6 किलोमीटर दूर स्थित प्राथमिक शाला तिंदोनी में अध्ययनरत 136 छात्र-छात्रों में से अधिकांश के पास जूते चप्पल नहीं होने की ओर ध्यान आकर्षित कराया था। 

तिंदोनी स्कूल जैसे प्रदेश में अनेक स्कूल है जहां ठंड गर्मी बरसात की परवाह किए बिना छोटे छोटे बच्चें पथरीले, कंक्रीट, ऊचे नीचे, कीचड़, नमी वाले स्थानों से बिना जूते चप्पल पहने ही विद्यालय आते जाते है। अगर शासन स्तर पर जूते मोजे कि सुविधा मुहैया हो जाए तो सकारात्मक परिणाम हासिल होंगे। मप्र सरकार शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए बच्चो को ड्रेस, साइकिल, पुस्तकें, मिड डे मील, स्कालरशिप देने जैसे अनेक योजनाए चला रही है। ऐसे में यदि गरीब स्कूली बच्चो को जूते भी मुहैया कराए जाने की ओर ध्यान नहीं जाना आश्चर्य की बात है। वर्तमान शिक्षण सत्र प्रारम्भ हो चुका है, पर आज भी देश का भविष्य नंगे पैर स्कूल जा रहा है। जो कहीं न कहीं पिछड़ेपन का संकेत है। 

मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के आयोग मित्र धीरज जॉनसन का कहना है कि प्रदेश में आज भी ग्रामीण आबादी ज्यादा है और इन इलाकों में बच्चो के पास प्राथमिक सुविधाओं की कमी रहती है, नगर और उपनगर के आस पास रहने वाले गरीब परिवारों की आय सीमित होती है,जिससे जीवन स्तर पर प्रभाव पड़ता है, और वे अधिकांश पूर्ति नहीं कर पाते।  जॉनसन का कहना है कि ऐसे दृश्य यहां देखे जा सकते है जहां बच्चे बिना जूते चप्पल पहिन कर स्कूल जाते है जो स्वास्थ्य सेवा पर प्रश्न चिन्ह है। कदम दर कदम प्रयास हुए बुनियादी शिक्षा जैसी बहुत योजनाएं भी नजर आईं, पर  चिंतन करना होगा कि बच्चे बीच में पढ़ाई क्यो छोड़ देते हैं ? सर्व शिक्षा अभियान के लक्ष्य को प्राप्त करना है, स्कूली वातावरण बच्चों को भाना चाहिए, समस्त सुविधा, जिम्मेदारी, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, शिक्षक-छात्र अनुपात, उचित हो । 
गरीब के बच्चे कहीं भी पढ़ाए जा सकते हैं यह नजरिया घातक होगा। आज वर्तमान में विद्यालयों में खेल मैदान नहीं, पेयजल नहीं ,शौचालय नहीं इससे वंचित वर्ग को नुकसान हो रहा है और भेदभाव का शिकार भी हो रहा है। इसी परिप्रक्ष्ये में देखा जा रहा है कि बच्चों को सुविधाए तो मिल रही है पर अगर पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश व अन्य राज्य जैसे कर्नाटक, उड़ीसा, बंगाल द्वारा दी जा रही स्कूली योजनाओं को अगर यहां भी असली जामा शुरू हो जाए तो परिणाम अच्छे होंगे।

 ऐसे बच्चे भी है जो विषम परिस्थितियों में भी बिना जूते चप्पल पहनकर समय बिता रहे है, फिर चाहे उन्हें घाव हो, संक्रमण हो, बीमार हो जाए,उनकी चिंता किसी को नहीं, अगर सामुदायिक प्रयास हो जाए तो बच्चे भी ठंड, बारिश, गर्मी से बच सकते हैं और अच्छे भविष्य के निर्माण में सहायक भी हो सकते है। सामाजिक सरोकार पर प्रबल सोनी की रिपोर्ट

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