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कल्पद्रुम महामंडल विधान के नवमें दिन तीर्थंकर पुण्य पूजन करके चढ़ाए अर्घ.. चक्रवर्ती कि दिग्विजय यात्रा का जगह जगह हुआ स्वागत..

 नवमें दिन तीर्थंकर पुण्य पूजन करके चढ़ाए 100 अर्घः
दमोह।
 पारसनाथ दिगंबर जैन नन्हे मंदिर जी में आचार्य श्री उदार सागर महाराज के सानिध्य में चल रहे श्री 1008 कल्पद्रुम महामंडल विधान के 9 नवमें दिन भी समवशरण के समीप प्रातः बेला में श्री जी के पूजन अभिषेक शांतिधारा के बाद भक्ति भाव के साथ विधान पूजन हुआ। दोपहर में चक्रवर्ती की दिग्विजय यात्रा निकाली गई। शाम को महाआरती तथा रात्रि में भरत बाहुबली के युद्ध का रोचक नजारा देखने को मिला। 

श्री 1008 कदम महामंडल विधान में सोमवार को विधान के महापात्रो ने इंद्र इंद्राणियो के साथ विधान पूजन करते हुए तीर्थंकर पुण्य पूजा करने का सौभाग्य अर्जित किया। इस मौके पर विधान आचार्य आशीष जैन पुण्यांश एवं पंडित सुरेश शास्त्री के निर्देशन में सबसे पहले 24 तीर्थंकरो के पिता को बारी बारी से अर्घ चढ़ाए गए। 
इसके बाद 24 तीर्थंकर की माता को तथा इसके बाद 24 तीर्थंकर के चिन्ह तथा आयु के अर्घ समर्पित किए गए। आज श्रावक श्रेष्ठी बनकर  समवशरण से पूजन का सौभाग्य महामंत्री चक्रेश सराफ परिवार को प्राप्त हुआ। मंगलवार के श्रावक श्रेष्ठी बनने का सौभाग्य लिवास गारमेंट परिवार को मिला।

 इस अवसर पर धर्म सभा को संबोधित करते हुए आचार्य श्रीउदार सागर महाराज ने कहा कि भक्ति में प्रदर्शन का भाव नहीं होना चाहिए भक्ति में छोटा बड़ा नहीं देखा जाता विद्वान अल्पज्ञ नहीं देखे जाते। भक्ति में मात्र भावना का महत्व रहता है। शब्दों के साथ हमारे भाव भी जुड़ना चाहिए। यह भावना निस्पर्ह होना चाहिए। कामना यदि जुड़ रही है तो प्रार्थना में कमी है। जो निष्काम भाव से भगवान की भक्ति करते हैं उनके विशेष प्रकार का पुण्य का आश्रव होता है और कर्मों की निर्जरा होती है। आचार्य श्री में कहां की भक्ति में इतनी सामर्थ होती है की भक्ति भावना से हमारे सारे काम हो जाते हैं। जिनेंद्र भगवान की भक्ति से भक्ति और मुक्ति दोनों ही प्राप्त होती है।

  इसके पूर्व धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री उप शांत सागर महाराज ने कहा कि पूर्व जन्म किए हुए कर्मों का फल हमें भोगना पड़ता है। जिनेंद्र भगवान की पूजा अर्चना करने से सुख संपत्ति मिलती है। पूर्व जन्म किए हुए शुभ कार्यों के कारण ही हम जिनेन्द्र भगवान की पूजा करने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं। अतः देव शास्त्र गुरु की आराधना करते रहने से इच्छाओं की पूर्ति होती रहती है। हमारा जंगल में भी मंगल हो जाया करता है। चारों दिशाओं में जिनेंद्र भगवान का वन्दन करने से पूण्य का आश्रव होता है।
धूमधाम से निकली चक्रवर्ती कि दिग्विजय यात्रा- 
सोमवार दोपहर जैन धर्मशाला से चक्रवर्ती भारत की दिग्विजय यात्रा धूमधाम के साथ निकाली गई। जिसमें अनेक रथों पर महारथी सवार थे। सिटी नल, पुराना थाना, टाकीज, सराफा, घंटाघर, नया बाजार होते हुए धगट चौराहे से दिग्विजय यात्रा जैन धर्मशाला पहुंच कर संपन्न हुई। रास्ते में जगह-जगह चक्रवर्ती की यात्रा का स्वागत करते हुए वंदन अभिनंदन किया गया।

शाम को धूमधाम से निकली महाआरती यात्रा- महामंडलेश्वर चक्रेश सराफ के घर से शाम को महाआरती हेतु यात्रा निकाली गई। जो धूमधाम के साथ विधान स्थल पर पहुंची में समोशरण में विराजमान श्री जी की मंगल आरती की गई। रात्रि में चक्रवर्ती भारत और बाहुबली के बीच युद्ध की रोचक प्रस्तुति देखने को मिली।

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