सुख-दुख धूप और छांव की तरह है.. निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी
दमोह।
मनुष्य के जीवन में सुख और दुख धूप और छांव की तरह होते कोई संसार में
सर्वथा दुखी नहीं होता और ना ही सुखी होता है यह संसार एक जुआडी के समान है
वह जिंदगी भर सुखी नहीं रह सकता अमीर नहीं रह सकता एक न एक दिन फकीर जरूर
होता है इसी तरह व्यक्ति के जीवन में एक न एक दिन अशुभ कर्म का उदय आता है
लाख उपाय करने के बाद भी उसे रोका नहीं जा सकता हम गलत नहीं करना चाहते
किंतु हो जाता है हम गलत नहीं बोलना चाहते बोल देते हैं। कोई व्यक्ति पूर्णता निर्दोष नहीं रह सकता
संसार काजल की कोठीरी है कालीमा तो लगेगी ही। संसार की कालीमा को हटाना
कोयला की कालीमा को हटाने जैसा ही हैं। कोयला को जितना भी धोदोगे वह उतना ही
गंदा होता जाता है इसी तरह संसार को जितना साफ करो वह उतना ही गंदा होता
जाता है
उपरोक्त
विचार निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज ने दिगंबर जैन धर्मशाला में
चल रही अपनी प्रातः कालीन भक्तांबर की क्लास में अभिव्यक्त किय इस मौके पर
पद प्रक्षालन का सौभाग्य संतोष सिद्धार्थ सौरव सेठ परिवार को तथा शास्त्र
भेंट करने का सौभाग्य ताराचंद सचिन संदीप परिवार को प्राप्त हुआ शिविर
आयोजन समिति के द्वारा तहसीलदार मोहित जैन आरआई अभिषेक जैन सहित अन्य
सहयोगियों का सम्मान किया गया मुनि श्री ने अपने
मंगल प्रवचन में आगे कहा कि एक धर्मात्मा बनाने में अनेक अधर्मी पैदा हो जाते संसार में अच्छे
पेड़ कम है बुरे पेड़ ज्यादा है संसार में रहने वाले अच्छे व्यक्ति बनाना
कठिन है बुरे व्यक्ति बनाए नहीं जाते अपने आप बन जाते हैं हम स्वयं को
अच्छा बनाने की कोशिश करते हैं किंतु बन नहीं पाते यहीं से भक्ति वाद जन्म
लेता है साधना मार्ग से सीधे मोक्ष चले जाते वस्त्र पहनने की जरूरत नहीं
होती।
दिगंबर जन्म लेते और सीधे ही दिगंबर ही मोक्ष चले जाते कुंदकुंद
भगवान ने 11 साल में दीक्षा ली जबकि जिनसेन आचार्य ने 9 साल में दीक्षा
ली उन्होंने जन्म से ही कपड़े नहीं पहने बच्चा जन्म से कपड़ा नहीं पहनता उसे हम जबरदस्ती पहनाते हैं जहां कपड़ा है वह गंदा होगा उसे साफ करने के
लिए साबुन की जरूरत होगी मन गंदा होने पर उसे पूजा पाठ अभिषेक आदि भक्ति की
क्रिया करके साफ करने का प्रयास किया जाता है जहां परिग्रह हुआ वहां पाप
प्रारंभ हो जाता है उसके प्रक्षालन के लिए भक्तिवाद जरूरी है गृहस्थ 24
घंटे में मन वचन काय से गंदा होता है साधु गंदा नहीं होता साधु स्नान करें
तो गलत और यदि गृहस्थ स्नान न करे तो गलत। साधु के लिए साधना है और गृहस्थ
के लिए उपासना है साधु जितनी साधना करेगा उसके लिए मांगलिक है और गृहस्थ
जितनी उपासना करेगा उसके लिए मांगलिक है। गृहस्थ का शुभ देव शास्त्र गुरु से
ही होगा और साधु जितना अपने रत्नत्रय को पवित्र करेगा उतना ही उसका
मांगलिक होगा।
आज के आहार प्रदाता पुण्यार्जक परिवार.. निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज को आहार देने का सौभाग्य बब्बू खजरी वाले परिवार को प्राप्त हुआ निर्यापक मुनि श्री प्रसाद सागर के आहार सवन सिल्वर परिवार को प्राप्त।
मुनि श्री प्रयोग सागर जी को आहार देने का सौभाग्य राजेश जैन पिपरिया परिवार को प्राप्त हुआ। मुनि श्री पदम सागर जी महाराज के आहार का सौभाग्य नीलम जितेंद्र अमित हटा वाले परिवार, मुनि श्री सुब्रत सागर को आहार देने का सौभाग्य स्वपनिल जैन परिवार, मुनि श्री शीतल सागर जी महाराज को आहार देने का सौभाग्य अरविंद इटोरिया के परिवार, गंभीर सागर जी महाराज के आहार का कौशल किराना परिवार को प्राप्त हुआ।
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