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साधु का सारा जीवन परोपकार के लिए होता है वह स्वयं के कल्याण के साथ-साथ जग के कल्याण के लिए प्रयास करता है.. दूसरों की इच्छा पूर्ति में सबसे अधिक पुण्य का बंध होता है.. निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी

दूसरों की इच्छा पूर्ति में सबसे अधिक पुण्य का बंध होता है.. निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी

दमोह। मनुष्य को दूसरों की इच्छा के लिए जीना चाहिए दूसरों की इच्छाओं की पूर्ति में आनंद की अनुभूति होती है साधु का सारा जीवन परोपकार के लिए होता है वह स्वयं के कल्याण के साथ-साथ जग के कल्याण के लिए प्रयास करता है साधु के दो बूंद गंदोधक से यदि श्रावक की बिगड़ी सुधरती है तो इसमें साधु का क्या बिगड़ता है।
 उपरोक्त उद्गार श्री पारसनाथ दिगंबर जैन नन्हे मंदिर की धर्मशाला में शनिवार को भक्तांबर क्लास धर्म सभा को संबोधित करते हुए निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज ने अभिव्यक्त किये। मुनि श्री ने कहा कि साधु सेवा इसलिए कराते हैं ताकि भक्त के हाथ पवित्र हो जाए बड़ों और दुखी लोगों की इच्छाएं पूर्ति करने से  पुण्यबंद ज्यादा होता है जिस मूर्ति से दुखियों के दुख दूर होते हैं उस मूर्ति का अतिशय उतना अधिक होता है। मूल नायक मूर्ति ज्यादा अतिशय कारी होती है भक्त के संकट दूर होने पर वह मूर्ति जगत पूज्य अतिशयकारी हो जाती है। भक्तों की दुआओं से अतिशय बढ़ता है।
भक्तों की दुआओं के कारण ही आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज की वाणी और चरणों में अतिश्य था यद्यपि आचार्य श्री आशीर्वाद देने में बहुत कंजूस थे किंतु जिसको आशीर्वाद मिल जाता था वह अपने जीवन को धन्य मान लेता था। उन्होंने एक संस्मरण सुनाते हुए कहा कि जब अभिनंदन वर्धमान को पाकिस्तान ने अरेस्ट कर लिया तब उसकी एक पुरानी फोटो देखकर जिसमें वह अपने सिर पर भगवान के सिंहासन को लिए था उस फोटो को देखकर मैंने कह दिया था की दुनिया की कोई ताकत इसका मस्तक नहीं काट सकती। जिसके मस्तक पर सिंहासन सहित श्रीजी विराजमान हो उसे कोई नुकसान नहीं हो सकता। वह देश का मस्तक ऊंचा ही करके आएगा। यही हुआ चार दिन बाद वर्धमान की सकुशल रिहाई हुई और पूरी दुनिया में देश का मस्तक उसने ऊपर कर दिया।
आज के पुण्यार्जक परिवारजन-धर्म सभा के प्रारंभ में पूज्य निर्यापक मुनि श्री के पाद प्रच्छलन एवं शास्त्र भेंट करने का सौभाग्य सुरेंद्र कुमार जैन स्वास्तिक रोड लाइंस परिवार वालों को प्राप्त हुआ। 
आज श्री सुधा सागर जी को आहार कराने का सौभाग्य ब्र अमित भैया परिवार को प्राप्त हुआ। निर्यापक मुनि श्री प्रसाद सागर जी के आहार मनोज मलैया, मुनि श्री प्रयोग सागर जी के आहार सुधीर सिंघई, मुनिश्री सुब्रत सागर जी की आहार आनंद जैन लैब, मुनि श्री पदम सागर जी के आहार निक्की कुम्हारी वाले, मुनि श्री शीतल सागर जी के आहार नितिन हटा वाले तथा गंभीर सागर जी के आहार करने का सौभाग्य संतोष इलेक्ट्रिकल परिवार को प्राप्त हुआ।
निर्यापक मुनि श्री वीर सागर जी का विहार-इसके पूर्व प्रात काल निर्यापक मुनि श्री वीर सागर जी महाराज का संघ सहित एकलव्य विश्वविद्यालय के लिए बिहार हो गया..
मुनि श्री को विदाई देने के लिए स्वयं निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज निर्यापक मुनि श्री प्रसाद सागर जी महाराज के साथ सभी मुनि महाराज पलंदी चौराहा तक आए जहां पर भक्ति पूर्वक मिलन हुआ और उसके बाद वीर सागर जी महाराज एकलव्य विश्वविद्यालय के लिए गमन कर गए जहां उनकी आहारचर्य संपन्न हुई।

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