दमोह नगर में तीन-तीन निर्यापकों का महामिलन, मुनि श्री वीर सागर संघ की मंगल अगवानी.. महापुरुषों की व्यथा हमारे लिए कथा बन जाती है- मुनि श्री सुधा सागर जी.. कुंडलपुर में मुनि श्री निष्कम्प सागर जी के प्रवचन..
दमोह।
कुंडलपुर में आचार्य पदरोहण समारोह के लिए पधारे सभी मुनिगनों का विभिन्न
क्षेत्रों के लिए प्रस्थान जारी है इसी क्रम में निर्यापक मुनि श्री वीर
सागर जी का आगमन दमोह नगर में हुआ। नगर में पूर्व से विराजमान निर्यापक
मुनि श्री सुधा सागर जी एवं निर्यापक मुनि श्री प्रसाद सागर जी के संघ सहित
महा मिलन देखने का सौभाग्य भक्तगणों को प्राप्त हुआ।
निर्यापक मुनि श्री
वीर सागर जी के नगर आगमन की सूचना पाकर निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी
एवं निर्यापक मुनि श्री प्रसाद सागर जी वरिष्ठ होने के बावजूद निर्यापक
मुनि श्री वीर सागर जी को लेने के लिए 2 किलोमीटर दूर धरम पुरा नाके के
समीप पहुंचे। जहां पर मुनि संघ का महामिलन हुआ। निर्यापक मुनि श्री वीर
सागर जी ने गवासन से सड़क पर बैठ कर निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज
को नमन किया उसके बाद भाव विभोर होकर मुनि संघ ने निर्यापक सुधा सागर जी
की प्रदक्षिणा की। जयकारों के साथ पूरा माहौल धर्ममय हो गया उसके बाद ढोल
नगाड़ों के साथ मुनि संघ जैन धर्मशाला पहुंचा। स्थान स्थान पर मुनि संघ की
आरती उतारी गई एवं पद परीक्षालन किया गया।
अरिहंत
विहार पर कुंडलपुर क्षेत्र कमेटी के पूर्व अध्यक्ष संतोष शंघई के परिवार ने
पद प्रक्षालन का सौभाग्य अर्जित किया इसके बाद हल्दी फार्म हाउस में मुनि
श्री ने गौशाला को देखकर प्रशंसा की और अधिक गाय रखने का सुझाव दिया..
वास्तविक जन्म गुरु के चरणों में होता है मुनि श्री वीर सागर जी..दमोह
। श्री पारसनाथ दिगंबर जैन नन्हे मंदिर धर्मशाला में बुधवार सुबह प्रवचन के पूर्व मुनि संघ के पद प्रक्षालन को सौभाग्य तहसीलदार मोहित जैन
के परिवार को प्राप्त हुआ। आयोजित
धर्म सभा को संबोधित करते हुए निर्यापक मुनि श्री वीर सागर जी महाराज ने
कहा कि मां से तो मनुष्य का औपचारिक जन्म होता है किंतु वास्तविक जन्म तो
गुरु के चरणों में होता है। गुरु ही हमें सिखाते हैं की आत्मा का विकास
कैसे किया जाता है अध्यात्म और आगम की वाणी गुरु मुख से ही सीखने को
प्राप्त होती है।
आचार्य भगवान के पश्चात पूज्य
नवाचार समय सागर जी महाराज ने मुझे सब कुछ समझाया और इस तरह विकास होता
गया। 2015 में राजस्थान में जब पूज्य निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी
महाराज के साथ मुझे दो माह प्रवास का सौभाग्य प्राप्त हुआ तो उसमें मैंने
उनसे बहुत कुछ सीखा। श्रद्धा कैसी होती है, समर्पण कैसा होता है, साधना
कैसी होती है। यह सब कुछ निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज से बेहतर
कोई नहीं समझा सकता शास्त्रों को पढ़ना अलग है और मोक्ष मार्ग में
व्यावहारिक ज्ञान अलग होता है जीवन का उत्थान श्रद्धा और समर्पण के बिना
कुछ भी नहीं इसकी सही परिभाषा निर्यापक सुधा सागर जी महाराज के चरणों में
ही प्राप्त होती है। निश्चिंत्यता एवं निर्भयता उनके चरणों में सीखने को
मिलती है निर्यापक मुनि श्री प्रसाद सागर जी महाराज
ने कहा की जब टीम संगठित होती है तभी हमें विजय प्राप्त होती है गुरु देव
के जाने के बाद हम सबको संगठित होकर ही धर्म प्रभावना के कार्य में संलग्न
रहना चाहिए।
सभा के अंत में निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज ने
कहा कि महापुरुषों की व्यथा हमारे लिए कथा बन जाती है महापुरुषों की अशुभ
कर्मों की लीला व्यथा के रूप में हमारे समक्ष होती है और वह कथा के रूप में
जिनवाणी के रूप में पूज्य हो जाती है तीर्थंकर जब मुनिराज बनते हैं तो
आत्मा के संबंध में कुछ नहीं जानते किंतु श्रद्धा और आस्था के बल पर एक दिन
मोक्ष महल को प्राप्त कर लेते हैं हमारे ऊपर गुरु का बहुत उपकार है किंतु
सिद्धि नहीं हो रही है णमोकार मंत्र प्राप्त होना अलग बात है किंतु उसकी
सिद्धि होना बात अलग है मैना सुंदरी ने सिद्ध चक्र महामंडल विधान को सिद्ध
कर लिया था उसका फल उसको प्राप्त हुआ श्रावक जब मुनिराज को इस उद्देश्य से
आहार देता है की महाराज की सामायएक अच्छी हो स्वाध्याय अच्छा हो तो आहार
की की सिद्धि हो जाती है श्रावक यदि एक मुनिराज को नवधा भक्ति के साथ आहार
कराता है तो वह एक लाख व्यक्तियों को भोजन कराने से ज्यादा पुण्य को
अर्जित करता है।
आज इनको मिला आहार दान का सौभाग्य.. मुनि
श्री सुधा सागर जी को आहार दान का सौभाग्य शैलेंद्र मयूर परिवार को प्राप्त हुआ।
मुनि
श्री प्रसाद सागर जी को आहार दान का सौभाग्य ब्रह्मचारी स्वतंत्र भैया
परिवार, मुनि श्री वीर सागर जी को आहार दान का सौभाग्य वीरेश सेठ परिवार,
मुनि श्री पदम सागर आहार दान का सौभाग्य नवीन निराला परिवार एवं मुनि श्री
शीतल सागर जी को को आहार दान का सौभाग्य शैलेंद्र बजाज परिवार, गंभीर सागर जी को आहार कराने का सौभाग्य नेम चंद्र बजाज परिवार को प्राप्त हुआ।
गुरु के बिना परमात्मा मिलना संभव नहीं मुनिश्री निष्कम्पसागर जी.. सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र, जैन तीर्थ कुंडलपुर में युग श्रेष्ठ संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य पूज्य आचार्य श्री समयसागर जी महाराज के मंगल आशीर्वाद से पूज्य मुनि श्री निष्कम्पसागर जी महाराज ने प्रवचन देते हुए कहा एक घास के तिनके की इच्छा थी सागर में जाकर मिलने की ।यात्रा प्रारंभ करता है हवा का झोंका उसका प्रयास सफल नहीं होने देता। कई बार उसने प्रयास किया मैं सागर से मिलूं जैसे ही वह यात्रा प्रारंभ करता हवा का एक झोका आता उसके प्रयासों को असफल कर देता ।सामने बैठा हुआ एक पथिक बहुत देर से यह दृश्य देख रहा था उसने तिनके से पूछा तुम क्या कर रहे हो तिनके ने कहा मैं सागर से मिलना चाहता हूं पर यात्रा विफल हो जाती है।
मैं इतना पुरुषार्थ कर रहा हूं मेरा पुरुषार्थ कोई काम नहीं आ रहा। उस पथिक ने कहा तुम्हारा यह पुरुषार्थ ठीक नहीं । तुम सागर से मिलना चाहते हो बन्धुओं कभी-कभी मनुष्य पुरुषार्थ तो करता है पर पुरुषार्थ करने के बाद भी सफलता प्राप्त नहीं होती। पुरुषार्थ तो कर रहा है पर पुरुषार्थ सही दिशा में नहीं हो रहा। सही दिशा में करें तो उसे सफलता जरूर प्राप्त होगी। लेकिन हमारा जो पुरुषार्थ है असफल इसलिए होता है कि हमारा पुरुषार्थ सही दिशा में नहीं होता ।कई लोग कहते हम पुरुषार्थ करते पर सफलता प्राप्त नहीं हो रही। एक बार लोगों ने कहा हमारे यहां जल की कमी है हम जिनेंद्र भगवान का अभिषेक नहीं कर पाते कुएं का शुद्ध जल प्राप्त नहीं होता। हम जिनेंद्र भगवान का अभिषेक कैसे करें। जैन दर्शन में कहा है बोरिंग के पानी से अभिषेक नहीं होना चाहिए ।साधुओं का आहार भी बोरिंग के पानी से नहीं होना चाहिए। क्यों नहीं होना चाहिए कुएं का पानी भी नीचे से आ रहा है और बोरिंग का पानी भी नीचे से आ रहा है ।जैन दर्शन में पानी छानने का नहीं बिल्छानी का महत्व है। कुएं के पानी की विल छानी यथा स्थान पहुंचेगी बोरिंग के पानी की नहीं पहुंचेगी। महाराज जी ऐसा आशीर्वाद दो कुएं के जल की व्यवस्था हो जाए। इस स्थान पर जल की प्राप्ति हो सकती है 100 फीट गड्ढा खोदो महाराज ने कहा। हम कल आएंगे देखेंगे। दूसरे दिन महाराज जी के पास वह व्यक्ति उदास बैठा था बोला हमने इतना पुरुषार्थ किया पर पानी की प्राप्ति नहीं हुई ।दिगंबर साधु झूठ नहीं बोलते आपने कहा था पानी की प्राप्ति होगी। हां दिगंबर साधु का वचन झूठ नहीं होता तुमने पुरुषार्थ तो किया एक-एक फीट के सौ गड्ढे खोद दिए तुम्हारा पुरुषार्थ सफल नहीं हो पाया। ऐसा ही उस पथिक ने तिनके से कहा तुम्हें रास्ता बताता हूं तुम सागर से मिल सकोगे ।तुम्हारे बगल से जो गंगा नदी जा रही है तुम इसमें डुबकी लगा लो। तुम्हारी सागर से मिलने की यात्रा पूरी होगी ।उसने पथिक की बात मानी और तिनके ने नदी में डुबकी लगाई और सागर तक की यात्रा कर ली ।इस दृष्टांत के माध्यम से बताना चाहता हूं गुरु रूपी गंगा में डुबकी लगाना पड़ेगी और परमात्मा की प्राप्ति हो सकेगी। जो गुरु की अवहेलना करते उन्हें गुरु के बिना परमात्मा मिलने वाला नहीं है ।गुरु के माध्यम से ही तुम्हें परमात्मा मिल सकते हैं। बिना गुरु के परमात्मा मिलना तीन काल में भी संभव नहीं है।
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