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विरागोदय पंच कल्याणक महा महोत्सव में उमड़ रहा भक्ति का जनसैलाव, पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रदीप आदित्य भी पहुंचे पथरिया.. आदि कुमार की बारात, राजपाट, नीलांजना के नृत्य देखते हुए वैराग्य.. पूज्य गणाचार्य के साथ अन्य आचार्य तथा मुनि राजो ने ग्यारह सौ प्रतिमाओ में दिए दीक्षा संस्कार..

 पथरिया पंचकल्याणक महोत्सव में दीक्षा संस्कार संपन्न

दमोह। पथरिया विरागोदय में चल रहे पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में प्रतिदिन भक्ति का जनसैलाब उमड़ रहा है बुधवार को आदि कुमार के दीक्षा कल्याणक के जहां हजारों श्रद्धालु जन साक्षी बने वही पूज्य गणाचार्य संघ ने 11 सो प्रतिमाओं मैं दीक्षा के संस्कार प्रदान किए।

 इस अवसर पर श्री108 विराग सागर जी महाराज ने कहा कि प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का जन्म कल्याणक पर्व पूरे विश्व में जितने भी धूमधाम के साथ मनाया जाए कम है। भगवान ऋ षभदेव से ही इस युग में मोक्षमार्ग प्रशस्त हुआ। उन्होंने ही असि, मसि, कृषि आदि शिक्षाएं देकर मानवता को जीवन यापन करना सिखाया।

विरागोदय तीर्थ पर आयोजित पंच कल्याणक महोत्सव के चौथे दिन तप कल्याणक महोत्सव विधि-विधान धूमधाम से आयोजित हुआ। इस दौरान भगवान के नामाकरण संस्कार से लेकर विवाह तदुपरांत वैराग्य, दीक्षावन प्रस्थान आदि का कार्यक्रम संपन्न कराया गया। उपस्थित हजारों की संख्या में श्रद्धालु मंत्रमुग्ध पूरे कार्यक्रम को निहारते रहे। महोत्सव का शुभारंभ मंत्र आराधना से हुआ। उसके बाद नित्यमह पूजा, ज्ञान कल्याणक पूजा फिर हवन का कार्यक्रम संपन्ना कराया गया। प्रतिष्ठाचार्य पंडित श्री हँसमुख जी,भागचंद जी ने बताया कि जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ का जन्म चैत्र कृष्ण नौवीं के दिन सूर्योदय के समय हुआ। 

उन्हें ऋषभनाथ भी कहा जाता है। उन्हें जन्म से ही सम्पूर्ण शास्त्रों का ज्ञान था। वे समस्त कलाओं के ज्ञाता और सरस्वती के स्वामी थे। युवा होने पर कच्छ और महाकच्छ की दो बहनों यशस्वती (या नंदा) और सुनंदा से ऋषभनाथ का विवाह हुआ। नंदा ने भरत को जन्म दिया, जो आगे चल कर चक्रवर्ती सम्राट बने। उसी के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा (जैन धर्मावलंबियों की ऐसी मान्यता है)। 

आदिनाथ ऋषभनाथ सौ पुत्रों और ब्राह्मी तथा सुंदरी नामक दो पुत्रियों के पिता बने। भगवान ऋषभनाथ ने ही विवाह-संस्था की शुरुआत की और प्रजा को पहले-पहले असि (सैनिक कार्य), मसि (लेखन कार्य), कृषि (खेती), विद्या, शिल्प (विविध वस्तुओं का निर्माण) और वाणिज्य-व्यापार के लिए प्रेरित किया। कहा जाता है कि इसके पूर्व तक प्रजा की सभी जरूरतों को कल्पवृक्ष पूरा करते थे। उनका सूत्र वाक्य था- 'कृषि करो या ऋषि बनो।'


ऋषभनाथ ने हजारों वर्षों तक सुखपूर्वक राज्य किया फिर राज्य को अपने पुत्रों में विभाजित करके दिगम्बर तपस्वी बन गए। उनके साथ सैकड़ों लोगों ने भी उनका अनुसरण किया। जब कभी वे आहारचर्या को जाते, लोग उन्हें सोना, चांदी, हीरे, रत्न, आभूषण आदि देते थे, लेकिन भोजन कोई नहीं देता था। इस अवसर पर 
1100 जैन प्रतिमाओं के दीक्षा कल्याणक संपन्न:-तपकल्याणक के पावन अवसर पर आदिकुमार की बारात का आयोजन हुआ। 

जिनमे बड़े जैन मंदिर से बारात प्रारंभ हुई जिसमें 21 रथ ,3 हाँथी ,दिव्यघोष, बैंड पार्टी के साथ हजारों बरातियों के साथ आदिकुमार बने दमोह के प्रमुख रथ पर सवार थे।लोगो ने द्वार द्वार पर स्वागत किया।प्रमुख मार्गों से बारात घूमती हुई विरागोदय कार्यक्रम स्थल पहुँची जहा बर माला पहना विवाह संस्कार सम्प्पन हुए।


उसके उपरांत 1100 जिनप्रतिमाओ की जैनेश्वरी दीक्षा गणाचार्य समेत सभी आचार्यों समेत मुनिराज के कर कमलों से हुई।साथ ही आज भारत सरकार के पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन आदित्य झांसी से एवं सागर की पूर्व विधायक सुधा जैन समेत अनेक भक्त पधारे।

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