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RTI तहत जानकारी देेने में जारी है आनाकानी का दौर.. नगरपालिका द्वारा सूचना अधिकार तहत जानकारी देने के बजाय कर्मचारी को.. सागर भोपाल जबाव पेशी कराने दी जाती है प्राथमिकता.. निर्वाचन कार्यालय में भी जानकारी देने में हीलाहवाली..

आरटीआई की सूचना देने में नहीं है विभागों की रूचि
दमोह। सूचना का अधिकार अधिनियम का उद्देश्य है कि शासकीय कार्यों की निगरानी और संचालन निषपक्ष हो सकें। लेकिन देखने में यह आता है कि लगभग सभी शासकीय कार्यालयों में आरटीआई के अंतर्गत निर्धारित समय में जानकारी उपलब्ध नहीं करायी जाती है, इसी में ताजा मामला जिला निर्वाचन अधिकारी और नगर पालिका दमोह से संबंधित सामने आया है।

युवा समाजसेवी एवं आरटीआई कार्यकर्ता ठाकुर अखिलेश सिंह घोष ने बताया कि उन्होंने आरटीआई के अंतर्गत आवेदन निर्वाचन कार्यालय और नगर पालिका दमोह में लगाये थे, नगर पालिका में दिनाँक 28 दिसंबर 2019 किया, एवं जिला निर्वाचन कार्यालय में 9 जनवरी 2020 में रजिस्टर्ड डाक से आवेदन किया परंतु निर्धारित समय सीमा निकलने के पश्चात भी दोनों विभागों से आवेदनों का जबाब नहीं आया अक्सर आरटीआई आवेदनों में ऐसी लापरवाही व देरी करने की परंपरा हर विभाग ने बना रखी हैं। अब इसमें जिला निर्वाचन कार्यालय भी शामिल हो गया है।

नगर पालिका दमोह में लगाये आवेदनों में मुख्यतः जनवरी 2014 से दिसंबर 2019 तक नगर पालिका दमोह अधिपत्य की आवंटित दुकाने की जानकारी चाही गयी थी, जिसमें केवल दुकान का स्थान, दुकान क्रमांक, तल, आवंटित व्यक्ति का नाम, संबंधी जानकारी चाही गयी थी एवं वर्तमान में आवंटित दुकानों से व्यवसाय संचालित हो रहा हैं अथवा नहीं, ऐसी जानकारी चाही गयी थी। जिला निर्वाचन कार्यालय में विगत नगरीय चुनाव में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष के नामांकन पत्रों की सत्यापित जानकारी चाही गयी, जिसमें उनकी चल अचल संपत्ति एवं आय स्त्रोत की जानकारी, सभी प्रत्याशियों ने नामांकन के समय जमा की हो, ऐसी जानकारी चाही गयी। 
परंतु दोनों विभागों ने वर्तमान तक आवेदनों के स्वीकार या अस्वीकार करने या सूचना उपलब्ध कराने संबंधी किसी भी प्रकार की कार्यवाही से अवगत नहीं कराया गया। नगरपालिका में तो हालात यह है कि सूचना के अधिकार का कार्य देखने वाला कर्मचारी आफिस में कम तथा सागर भोपाल पेशी पर अधिक रहते है। प्रभारी नगरपालिका अधिकारी आवेदकों से व्यक्तिगत संपर्क के दौरान जल्द जानकारी देने का भरोसा दिलाते है वहीं बाद में हालात "डाक के तीन पात" जैसा ही निकलता है। यदि सभी विभाग आरटीआई के आवेदनों पर ऐसा ही व्यवहार और लापरवाही करते रहे तब आरटीआई अधिनियम का औचित्य ही समाप्त हो जायेगा। सूचना अधिकार के नाम पर आवेदकों को भटकाते हुए टालामटोली करके परेशान करने के अन्य मामलों के साथ जल्द मिलते है। पिक्चर अभी बाकी है..

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