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बाबाजी को कांग्रेस टिकिट की भनक लगते ही भाजपा में भी कुर्मी नेता सक्रिय.. कुसमरिया और प्रहलाद पटेल में मुकावले की संभवानाओं के बीच भाजपा में टिकिट परिवर्तन की अटकले भी तेज..

बाबाजी और प्रहलाद पटेल में मुकावले की चर्चा तेज-
दमोह। लोकसभा चुनाव की घोषणा के साथ दमोह संसदीय क्षेत्र से भाजपा से टिकिट परिवर्तन को लेकर भी सुगबुगाहट तेज हो गई है। करीब 50 साल तक जनसंघ और भाजपा की विचारधारा से जुड़े रहे पूर्व मंत्री राम कृष्ण कुसमरिया के कांग्रेस में शामिल होने के बाद अब कांग्रेस उन्हें दमोह लोक सभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनाने जा रही है। जिससें भाजपा सांसद प्रहलाद पटेल से उनके मुकावले की अटकले लगाई जाने लगी है।
  इधर पिछले विधानसभा चुनाव में संसदीय क्षेत्र की आठों सीटों पर भाजपा की जीत का कुल अंतर 15 हजार तक सिमट कर रह जाने से भाजपा अपनी परंपरागत सीट को बचाने के लिए कुसमरिया के मुकाबले कुर्मी समाज के कद्दावर नेता की तलाश में है। इसी के साथ दमोह क्षेत्र से सांसद पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल की टिकट पर संशय के बादल मंडराने लगे है।
पिछले महीने कांग्रेस में शामिल हुए भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे पूर्व सांसद, पूर्व मंत्री और विधानसभा चुनाव में भाजपा सरकार को गुल खिलाने वाले डॉ रामकृष्ण कुसमरिया के जरिए कांग्रेस की नजर पूरे प्रदेश में कुर्मी वोट बैंक पर लगी हुई है। शायद यही वजह है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ आज 12 मार्च को श्री कुसमरिया की नातिन की शादी में सम्मिलित होने वायुयान से जबलपुर तथा वहां से दमोह होते हुए सकोर पहुंच रहे हैं। पूर्व मंत्री कुसमरिया को मुख्यमंत्री कमलनाथ से लेकर कांग्रेस में जबरदस्त महत्त्व मिलने से उनके सजातीय बंधुगण भी इन दिनों कांग्रेस और कमलनाथ की तारीफ के पुल बांधते नजर आ रहे हैं।
4 महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में दमोह संसदीय क्षेत्र से लोधी समाज के 4 लोगों को प्रत्यासी बना कर 3 सीटों पर फतेह हासिल करने वाली कांग्रेस की नजर अब लोकसभा चुनाव में भाजपा के वोट बैंक कहे जाने वाले कुर्मी समाज में सेंध लगाने की है। जिसको लेकर वह जबरदस्त तैयारी कर चुकी है। बाबाजी की कांग्रेस में एंट्री के बाद कुर्मी समाज के एक अन्य नेता पूर्व मंत्री और भाजपा से निष्कासित गंगाराम पटेल तथा बसपा के नेताओ पर भी कांग्रेस की नजर है। 
इधर सांसद प्रहलाद पटेल की वजह से जबेरा क्षेत्र से भाजपा की टिकट से वंचित हुए भाजपा के पूर्व प्रदेश मंत्री और बगावत कर के चुनाव लड़ते हुए पार्टी से निष्कासित हो चुके लोधी समाज के युवा नेता जिला पंचायत सदस्य राघवेंद्र सिंह ऋषि लोधी पर भी कांग्रेस की नजरें जमी हुई है। ऋषि लोधी ने हालांकि अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं लेकिन वह इस बात को स्पष्ट कर चुके हैं की जहा भी सांसद प्रहलाद पटेल और जिला पंचायत के अध्यक्ष शिवचरण पटेल होंगे वहां वो उनका विरोध करने से नही चूकेंगे। 
बंडा तथा मलहरा क्षेत्र से कांग्रेस के लोधी विधायकों की जीत के साथ ही स्थानीय भाजपा नेता भी दबी जुबान से सांसद समर्थकों पर जातिवादी रणनीति के आरोप लगाते रहे हैं। वहीं हटा से भाजपा की दो बार की विधायिका रही उमा देवी खटीक अपनी टिकट कटने के बाद पार्टी में लगातार उपेक्षा और पिछले दिनों हटा में सेंट्रल स्कूल के शिलान्यास कार्यक्रम मैं उपेक्षा के बाद सांसद पटेल पर खुलकर आरोप लगाकर अपनी मंशा साफ कर चुकी है। दमोह से पूर्व मंत्री जयंत मलैया तथा पथरिया से पूर्व विधायक लखन पटेल के समर्थक भी विधानसभा चुनाव में हार के बाद सांसद प्रहलाद पटेल से खार खाए नजर आ रहे हैं। 
रहली से भाजपा विधायक पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव के बेटे दीपू भार्गव द्वारा टिकिट के लिए की जा रही लाविंग को देख कर यह अंदाजा लगाया जा रहा है की रहली क्षेत्र में भी इस बार श्री पटेल की राह पहले की तरह आसान नहीं होगी। हालांकि कुर्मी समाज के दावेदारों की तुलना में नेता प्रतिपक्ष पुत्र दीपू भार्गव लगातार दमोह संसदीय क्षेत्र से भाजपा टिकट के लिए भागदौड़ कर रहे हैं। लेकिन उनके पिता को नेता प्रतिपक्ष के पद से नवाजे दिए जाने के बाद इस बात की संभावना बहुत कम है कि भाजपा अभिषेक दीपू भार्गव को प्रत्याशी बनाएगी। 
पिछले दिनों भाजपा के धिक्कार आंदोलन से सांसद प्रहलाद पटेल की अनुपस्थिति ने भी उनके क्षेत्र बदलने की चर्चाओ को बल देना शुरू कर दिया है। इधर छतरपुर जिले के कुर्मी समाज के भाजपा नेता घासीराम पटेल को अचानक धिक्कार आंदोलन का प्रभारी बनाकर दमोह भेजा जाना तथा पूर्व विधायक लखन पटेल की भी आंदोलन में जबरदस्त सक्रियता ने यह संकेत मिलने लगे हैं कि कांग्रेस से कुसमरिया बाबा को टिकट मिलने पर भाजपा भी दमोह संसदीय क्षेत्र से किसी कुर्मी चेहरे को प्रत्याशी बना सकती है। 
कुल मिलाकर आज के हालात में सांसद श्री प्रहलाद पटेल के लिए दमोह संसदीय क्षेत्र से भाजपा टिकट पर जीत की राह पिछली बार की तरह आसान नहीं होगी। विधानसभा में  चुनाव मुकाबले में रही बसपा के वोटऔर सपोर्ट भी कांग्रेस के साथ होने का असर पड़ेगा। इधर रेल सुविधाओं में वृद्धि से लेकर अन्य मामलों में संसदीय क्षेत्र को सांसद के कद अर्थात मोदी सरकार में राजनीतिक पहुंच के हिसाब से एक भी ऐसी सौगात नहीं मिल सकी जिसे क्षेत्रवासी याद रख सकें। 
हालांकि यह सभी चुनावी संभावनाओं का विशलेषण है कोई भविष्यवाणी नही। वैसे भी सांसद पहलाद पटेल केंद्रीय स्तर के बड़े नेता हैं, वह जहां खड़े होते हैं लाइन वहीं से शुरू हो जाती है तथा उनके लिए क्षेत्र बदल कर लड़ना उतना ही आसान है जितना की किसी प्रत्याशी को पहले चुनाव में जनता के बीच जाकर वोट मांगना और जीतना आसान होता है। बदले हुए हालात में बाबाजी के मुकाबले में आने से प्रहलादजी की मुश्किलें बढ़ने की संभावना के चलते भाजपा ऐन मौके पर दमोह से किसी कुर्मी चेहरे पर दांव लगाती है तो आश्चर्य नहीं होगा।  अटल राजेंद्र जैन की रिपोर्ट 

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