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लोकायुक्त द्वारा ट्रैप उपयंत्री पोस्टिंग मामले में कलेक्टर के हस्तक्षेप के बाद जिला सीईओ का यू टर्न.. ट्रैप उपयंत्री आखिरकार आफिस अटैच.. इधर जिला पंचायत में सूचना का अधिकार बना मजाक..

लोकायुक्त द्वारा ट्रैप उपयंत्री आखिरकार आफिस अटैच

दमोह। दमोह के पूर्व सांसद और प्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री श्री प्रहलाद पटेल के प्रिय क्षेत्र दमोह में उनके विभाग से संबंधित विभिन्न संकायो में भ्रष्टाचार चरम पर है। उनके मंत्री कार्यकाल में ही लोकायुक्त संगठन द्वारा एक के बाद विभाग के अधिकारी कर्मचारी को रिश्वत लेते पकड़ा जा चुका है इसके बावजूद विभाग के उच्च अधिकारियो उससे जरा भी फर्क पड़ता नजर नहीं आ रहा। शायद ही वजह है कि रिश्वत लेते पकड़े जाने वालों के कथित परम संरक्षक बनते नजर आए अधिकारियों पर ही अब गंभीर आरोप लगाए जाने लगे हैं।
ताजा मामला दमोह जनपद में पदस्थ उपयंत्री राजन सिंह को पिछले दिनों लोकायुक्त सागर द्वारा रंगे हाथों 20000 रुपये की रिश्वत लेकर पकड़े जाने का सामने आया था। 16 सितंबर 2025 को ही उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 के तहत लोकायुक्त संगठन सागर के द्वारा कार्यवाही दर्ज की गई थी तथा इसकी सूचना जनपद पंचायत दमोह से लेकर अन्य अधिकारियों को भी प्रेषित की गई थी। वही मीडिया की सुर्खियों में भी उपयंत्री राजन सिंह की रिश्वत लेते पकड़े जाने की कार्यवाही छाई रही थी। इसके बावजूद वरिष्ठ अधिकारियों ने उक्त उपयंत्री को अटैच करने तथा 10 दिन बाद बहाल करने के मामले में इस तरह से गोलमोल आदेश जारी किए थे जैसे उनको पुरस्कृत किया जा रहा हो।
 
Atal News 24 एवं जनजन जागरण भोपाल द्वारा के द्वारा उपरोक्त मामले की विस्तृत जानकारी प्रकाशित करने के बाद कलेक्टर सुधीर कोचर के संज्ञान में उपरोक्त उपकृत आदेश आए। जिस पर उन्होंने त्वरित निर्देश देने में देर नहीं की। जिसके बाद 6 अक्टूबर को जिला पंचायत के सीईओ के द्वारा उपयंत्री राजन सिंह को ग्रामीण यांत्रिकी सेवा  संभाग में अटै किए जाने का नया आदेश जारी किया गया है। जिसमे लोकायुक्त संगठन द्वारा की गई ट्रैप कार्रवाई का हवाला भी दिया गया है। 

उल्लेखनीय इसके पूर्व 17 सितंबर को राजन सिंह के अटैचमेंट का जो आदेश जारी किया गया था उसमें कहीं भी लोकायुक्त कार्रवाई का जिक्र नहीं था। उल्टे प्रशासनिक कार्यसुविधा को दृष्टिगत रखते हुए इसको एक अन्य उपयंत्री के आदेश के साथ में संयुक्त रूप से जारी करते हुए कलेक्टर से भी अनुमोदित नहीं कराया गया था। तथा इसके तत्काल प्रभावशील हो जाने का उल्लेख भी आदेश में किया गया था।

वही 26 सितंबर 2025 को एक और आदेश जारी करके राजन सिंह को बटियागढ़ जनपद में पदस्थ करते हुए वहां के समस्त सेक्टर की जिम्मेदारी सौंप दी गई थी जिससे ऐसा प्रतीत होता था कि लोकायुक्त द्वारा की गई कार्रवाई के बाद जैसे इनका प्रमोशन कर दिया गया हो। इसको कलेक्टर व अन्य के सूचनार्थ भेजकर तत्काल प्रभावशील हो जाने का उल्लेख आदेश में किया गया था।

उपरोक्त मामले में Atal News 24 एवं जनजन जागरण भोपाल द्वारा प्रमुखता से खबर का प्रकाशन किया गया था साथ ही इस मामले में जिला पंचायत के सीईओ तथा ग्रामीण यांत्रिकी सेवा संभाग के प्रभारी सीईओ का पक्ष लेने की कोशिश भी की गई थी। लेकिन उपरोक्त दोनों ही अधिकारियों के द्वारा बड़ी ही बेरुखी से जवाब देते हुए उपरोक्त जारी आदेशों को सही ठहरने की कोशिश की गई थी। साथ ही लोकायुक्त द्वारा उनके पास किसी प्रकार की कोई सूचना आज तक नहीं दिए जाने की बात कही गई थी।
इसके बाद यह पूरा मामला कलेक्टर के संज्ञान में लाए जाने पर 6 अक्टूबर को राजन सिंह के अटैचमेंट मामले में नया आदेश जिला पंचायत के सीईओ द्वारा जारी किया गया है जिसे कलेक्टर द्वारा अनुमोदित होना भी बताया गया है। उपरोक्त हालात से यह साफ हो गया है कि दमोह कलेक्टर जिस तरह से फील्ड से लेकर दफ्तरो तक में साफ़ स्वस्थ भ्रष्टाचार मुक्त माहौल देने की कोशिश कर रहे हैं वहीं कुछ अधिकारी कलेक्टर की व्यस्तता का फायदा उठाकर लोकायुक्त मामलों में पकड़े जाने वालों को भी फिर से जिम्मेदारी जाने के मामले में कोई कोर का असर नहीं छोड़ रहे हैं। इस दौरान वह यह भी भूल जाते हैं कि प्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री श्री प्रहलाद पटेल की संज्ञान में जब वह पूरा मामला लाया जाएगा तब उनकी कैसे किरकिरी होगी..? वहीं पूर्व में जारी किए गए दोनों आदेशों को लेकर भी सवाल जवाब किया जा सकता है.. क्योंकि नए आदेश में पुराने का कोई जिक्र नहीं है..

जिला पंचायत में सूचना का अधिकार बना मजाक.. दमोह जिला पंचायत में सूचना के अधिकार मामले में साधारण से लेकर महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करना आसान काम नहीं है निर्धारित समय सीमा भी जाने और इसके बाद अपीललिए आवेदन दिए जाने के बाद भी आवेदकों को चक्कर लगवाने के मामले में संबंधित अधिकारी कर्मचारी कोई और कसर नहीं छोड़ते। और इस संदर्भ में जब जिला पंचायत के सीईओ को भी अवगत कराया जाता है तो वह हल्के में लेते नजर आते हैं।
ऐसा ही एक मामला मनरेगा शाखा मैं अधिकारियों के कार्य विभाजन की जानकारी से संबंधित था। जिसके लिए 29 जुलाई 2025 को आवेदन प्रस्तुत किए जाने के बाद निर्धारित समय सीमा में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई। इसके बाद आवेदक को मजबूरी में अपीलीय आवेदन लगाना पड़ा। जिस पर अपील अधिकारी के द्वारा 6 अक्टूबर 2025 पेशी निर्धारित की गई थी। जिस पर आवेदक जब निर्धारित समय पर जिला पंचायत कार्यालय पहुंचा तो पता लगा अपील अधिकारी स्वयं किसी मामले की पेशी पर जबलपुर गए हुए हैं। जिस पर सीईओ को आवेदन अपील आवेदन एवं पेशी पत्र दिखाकर हालात से अवगत कराया गया। लेकिन वह इस मामले को भी गंभीरता से लेने की बजाय यह कहते नजर आए जानकारी यदि देने की होगी तो भेज दी जाएगी।
यहां उल्लेखनीय की ग्रामीण विकास के मामले में जिला पंचायत से संबध्द मनरेगा शाखा तथा आरईएस में सब कुछ ठीक नही चल रहा है। भ्रष्टाचार की जड़ यहां पर पूरी तरह से पैर पसार चुकी है। कई बार लोकायुक्त कार्रवाई हो चुकी है फिर भी भ्रष्टाचार के मामले में किसी पर कोई फर्क पड़ता नजर नहीं आ रहा। उल्लेखनीय की जिला पंचायत में सूचना का अधिकार के अपील अधिकारी भी पूर्व में तत्कालीन जिला सीईओ के चक्कर में लोकायुक्त के शिकार हो चुके हैं यह बात अलग है कि बाद में वह बच गए थे..

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