जीवन में क्षमा का लक्षण छूट जाए तो फिर धर्म भी छूट जाएगा..मुनिश्री सुव्रत सागर जी
दमोह। दिगंबर जैन समाज के दस दिवसीय पर्यूषण पर्व का रविवार 8 सितंबर को उत्तम क्षमा धर्म के साथ शुभारंभ हो गया है। सभी जैन मंदिरों में श्रावकजनों द्वारा भक्ति भाव के साथ श्रीजी के दर्शन अभिषेक करके सामूहिक पूजन के साथ विभिन्न धार्मिक क्रियाएं संपन्न की गई। श्री पारसनाथ दिगंबर जैन नन्हे मंदिर जी में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य और आचार्य श्री समाय सागर जी के आज्ञानुवर्ती मुनि श्री प्रयोगसागर जी एवं मुनि श्री सुव्रतसागर जी महाराज के सान्निध्य में बड़ी धूमधाम से दसलक्षण पर्व के प्रथम दिवस उत्तम क्षमा धर्म मनाया गया। प्रातः 7 बजे श्री जी के अभिषेक शांति धारा उपरांत सामूहिक पूजन संपन्न हुआ।
मुनिश्री सुव्रतसागर जी महाराज ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि आज दसलक्षण पर्व का प्रथम दिवस है। जो उत्तम क्षमा के रूप में मनाया जाता है। वर्ष में तीन बार आने वाले दसलक्षण पर्व भादों के महीने में बड़ी धूमधाम से क्यों मनाया जाते हैं इस पर हर किसी का विचार तो होता है किंतु वास्तव में बात यह कि दसलक्षण पर्व जैन धर्म के शाश्वत पर्व कहलाते हैं और भादों के महीने में मनाए जाने वाले दसलक्षण पर्व महत्वपूर्ण इसलिए माने जाते हैं क्योंकि जब कभी काल का परिवर्तन होता है तो भादों के महीने से ही धर्म की स्थापना होती है। दसलक्षण के प्रथम दिवस से ही धार्मिक वातावरण होने पर लोग बड़े आनंद का एहसास करते हैं इसलिए आज उत्तम क्षमा के रूप में धर्म की शुरुआत की जाती है।
मुनिश्री ने कहा कि धर्म की शुरुआत उत्तम
क्षमा से करना चाहिए क्योंकि जीवन में क्रोध लड़ाई झगड़ा तो होते ही रहते
हैं। इनके साथ हमें अपना धर्म त्याग नहीं करना चाहिए यदि हमने धर्म का
त्याग कर दिया तो धर्म पराजित हो जाएगा और बुरे भाव पाप की विजय हो जाएगी
इसलिए इन सब के साथ में हमें क्षमा धारण करनी चाहिए । मुनिश्री ने अपनी बात
को आगे बढाते हुए कहा धर्म का त्याग करने वाला व्यक्ति कभी भी अपना कल्याण
नहीं कर सकता किंतु क्षमा धारण करके क्रोध आदि कषायों पर विजय प्राप्त
करना यही धर्म और धर्मात्मा का लक्षण है अगर हमारे जीवन में क्षमा का लक्षण
छूट जाए तो फिर धर्म भी छूट जाएगा इसलिए क्षमा धारण करना धर्म की शुरुआत
करना है।
मुनिश्री ने एक
प्रसंग सुनाते हुए कहा कि जो व्यक्ति धर्म को छोड़ देता है उसका साथ सभी
लोग छोड़ देते हैं एक बार की बात है जब वनवास के समय में पांडव वन में पानी
लेने के लिए गए सरोवर की रक्षक देवता ने चारों पांडवों को मूर्छित कर दिया
किंतु युधिष्ठिर को सम्मानित किया क्यों ? क्योंकि चारों पांडव सरोवर के
रक्षक देवी देवता पर क्रोधित हुए थे किंतु युधिष्ठिर ने क्षमा को धारण करते
हुए और उनसे पानी भरने की विनय की थी इससे वह रक्षक देवी देवता प्रसन्न
हुआ और उसने पानी भरने की अनुमति ही नहीं दी अपितु चारों पांडवों को जागृत
भी किया कहने का तात्पर्य सिर्फ इतना है कि क्रोध से क्रोध को नहीं जीता जा
सकता अपितु क्षमा से क्रोध को जीता जा सकता है। वैसे
भी देखा जाए तो दुनिया में जो व्यक्ति क्रोधी होते हैं उनके पास कोई जाना
पसंद ही नहीं करता है जब दुनिया के व्यक्ति ही नहीं जाएंगे तो मुक्ति कैसे
जाएगी धर्म कैसे जाएगा कल्याण कैसे जाएगा सुख शांति समृद्धि कैसी जाएगी
इसलिए यदि आपके जीवन में कुछ करना है तो क्षमा धारण अवश्य कीजिए।
मुनि
श्री ने एक अन्य प्रसंग सुनाते हुए बताया कि रामायण में जब रावण और राम का
युद्ध चल रहा था उस समय में रावण निरंतर अपशब्द बोलते जा रहा था किंतु राम
धीरज से सुनते जा रहे थे बहुत समय बाद लक्ष्मण से जब सहन नहीं हुआ तो
लक्ष्मण जी ने रामचंद्र जी से निवेदन किया कि हे! स्वामी रावण इतनी देर से
लगातार अपशब्द बोल रहा है आप कुछ करते क्यों नहीं इसको मारो। तब रामचंद्र
जी ने कहा कि इसको तो मैं अभी मार सकता हूं किंतु मुर्दों पर हथियार चलाना
क्षत्रियों का कार्य नहीं है। इसको सुनकर लक्ष्मण जी ने कहा भगवन रावण तो
जिंदा है मरा कहां है वह मुर्दा कैसे हो गया? तब रामचंद्र जी ने बड़े धैर्य
से कहा कि लक्ष्मण रावण मुर्दा ही है क्योंकि शास्त्रों में , सिद्धांतों
में एक नीति है कि क्रोधी व्यक्ति मुर्दा ही होता है। इसलिए हम मुर्दों पर
हथियार शस्त्र नहीं चलाते।रामचंद्र जी कि ऐसे विचार सुनकर लक्ष्मण जी
कृतकृत्य हो गए और हम भी अपने आप को धन्य समझते हैं जो ऐसे महापुरुषों की
गाथाओं को सुनकर अपने जीवन को संस्कारवान बनाने में, धार्मिक बनाने में
आगे आते हैं।
वहां राम ने
अपने जीवन में बुराइयों का त्याग करके अच्छाइयों के पथ पर चलने का प्रयास
किया है इसलिए आज भी उन्हें पूज्यता की दृष्टि से देखा जाता है इसलिए हम भी
दसलक्षण पर्व के प्रथम दिवस पर संकल्प करें, भावना बनाएं, साधना करें कि
हम क्रोध आदि कषायों पर विजय प्राप्त करेंगे। यद्यपि
जैसे दीवार में कील ठोक दो फिर निकाल दो वह निकल तो जाएगी किन्तु उसका
निशान शेष रह जाएगा। उसी तरह हम क्षमा मांगकर बीते दिनों को लौटा तो नहीं
सकते किन्तु अपने अपराधों का प्रायश्चित कर अपने आप को निर्मल बना ही सकते
हैं। इसी का नाम है उत्तम क्षमा धर्म।।
हटा में वृहद दशलक्षण धर्म पूजा विधान पुस्तक का विमोचन..
जैन धर्म के पर्वराज पर्यूषण पर्व प्रारंभ हो गये है। दशलक्षण धर्म पर
आधारित इस पर्व के प्रथम दिवस पर हटा नगर के चारों मंदिरों में सूर्योदय के
साथ ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमडना प्रारंभ हो गई थी। श्रीजी का अभिषेक,
शांतिधारा, पूजन, आरती संगीत के साथ हुई।
श्री
पारसनाथ दिगम्बर जैन बड़ा मंदिर में आर्यिका रत्न श्री मृदुमति माता जी
द्वारा एवं श्री पारसनाथ दिगम्बर त्रिमूर्ति मंदिर में आर्यिका निर्णय मति
माता जी के द्वारा शंतिधारा सम्पन्न कराई गई, इस अवसर पर महायज्ञनायक,
श्रेष्ठी श्री के साथ 50 से अधिक युवाओं ने श्री जी का अभिषेक एवं सामूहिक
पूजन किया। आर्यिका
श्री मृदुमति माता द्वारा लिखित वृहद दशलक्षण धर्म पूजा विधान पुस्तक के
द्वितीय संस्कारण का आज विमोचन नवोदय स्कूल के पूर्व प्राचार्य एचके जैन,
विवेक जैन एडवोकेट, यशवंत जैन, प्रदीप बरौदा, सेठ निर्मल, सेठ राहुल के
द्वारा किया गया। पुस्तक में दश धर्म उतम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच,
सत्य, संयम, तप, त्याग, अकिंचन, ब्रम्हचर्य धर्म की पूजन एवं विधान का
विस्तार से उल्लेख है।
आर्यिका
मृदुमति माता जी ने आज अपने मंगल प्रवचन में उत्तम क्षमा पर विस्तार से
बोलते हुए कहा कि क्षमा के भाव अर्न्तमन से जाग्रत होते है, क्षमा से
सम्मान बढता है, क्षमा प्रदान करने वाला सदैव बड़ा होता है। क्रोध के उदय
होने के सदैव हानि ही हाथ लगती है, यदि जीवन में सुखी होना चाहते हो तो
क्रोध को छोडकर क्षमा धर्म को धारण करो।पर्व के प्रथम दिवस मंदिरों में भारी भीड़ रही। हटा में आर्यिका
रत्न श्री मृदुमति माता जी एवं आर्यिका श्री निर्णयमति माता जी का
पावन चातुर्मास चल रहा है दसलक्षण पर्व के दौरान सुबह विकास जैन (शेलु)
संगीत पार्टी उनके सहयोग द्वारा संगीतमय पूजन विधान अभिषेक की क्रियाएं
संपन्न हो रही है और सांगानेर से आई दीदी द्वारा रात्रि में प्रवचन एवं
सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा।
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