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कुंडलपुर में बड़े बाबा मंदिर के कलशा रोहण से आचार्य श्री का सपना साकार.. आचार्य श्री समय सागर जी के ससंघ सानिध्य में आयोजन संपंन.. इधर पथरिया में श्रुतपंचमी महापर्व पर मुनि श्री सुधासागर जी के सानिध्य में विविध आयोजन..

बड़े बाबा मंदिर कलशारोहण,आचार्यश्री का सपना साकार

दमोह। सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र, जैन तीर्थ कुंडलपुर में जिन सूर्य संत शिरोमणि युग श्रेष्ठ आचार्य भगवन श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य विद्या शिरोमणि आचार्य श्री समय सागर जी महाराज के चतुर्विध संघ के मंगल सानिध्य में आयोजित बड़े बाबा जिनालय कलशारोहण  एवं स़हस्त्रकूट  जिनालय जिनबिम्ब वेदी प्रतिष्ठा महा महोत्सव के अवसर पर 11 जून को प्रातः अभिषेक ,शांति धारा नित्यमह पूजन हुई।

पूज्य बड़े बाबा जिनालय एवं दाएं बाएं के जिनालय पर कलशारोहण की क्रिया प्रारंभ हुई। स्वर्ण कलश के ऊपरी भाग पर आचार्य श्री समय सागर जी महाराज एवं मुनि संघ के साधुओं ने चंदन से स्वास्तिक बनाया। फिर तो लोगों में स्वास्तिक बनाने की होड़ मच गई। कलश के ऊपरी भाग को एवं कलशारोहण कर्ताओं को क्रेन के द्वारा ऊपर मंदिर के शिखर पर पहुंचाया गया । प्रतिष्ठाचार्य सम्राट ब्रह्मचारी विनय भैया ने कलशारोहण की क्रियाएं संपन्न कराई । आचार्य संघ के सानिध्य में बड़े बाबा मंदिर के शिखर एवं आजू-बाजू बने मंदिरों के शिखर पर प्रात 8:22 पर भव्य कलशारोहण  गाजे बाजे के साथ संपन्न हुआ। 

उपस्थित श्रद्धालु भक्त इस अनुपम दृश्य को अपने नेत्रों से देखकर अपने भाग्य को सराह रहे थे ।प्रचार मंत्री जयकुमार जैन जलज ने बताया कलशारोहण कर्ता सुधीर जी कागदी विपिन जी जैन दिल्ली, नवीन जी गुडगांव सैनिक फार्म हाउस दिल्ली, राजेंद्र कुमार अजय कुमार जी विजय कुमार जी धनगशिया अजमेर, श्री प्रभात जी मुंबई ,एनसी जैन महेंद्र प्रताप करुणा सागर ,पदमचंद मदन कुमार राजेश कुमार सौरभ अक्षतजैन। इस अवसर पर हजारों श्रद्धालु भक्तों ने पूज्य बड़े बाबा का अभिषेक शांतिधारा में अपनी सहभागिता दर्ज कराई । 

इस अवसर पर आचार्य विद्यासागर जी महाराज एवं आचार्य श्री समय सागर जी महाराज की पूजन हुई ।आचार्य श्री का पाद प्रक्षालन हुआ शास्त्र अर्पण किए गए । कुंडलपुर में आचार्य श्री समय सागर जी महाराज का चातुर्मास हो इस भावना के साथ कुंडलपुर क्षेत्र कमेटी के पदाधिकारी सदस्यों ने बड़ी संख्या में श्रीफल अर्पित कर निवेदन किया ।108 गाड़ी बसे लेकर सागर से आए श्रद्धालुओं ने श्रीफल अर्पित कर सागर में चातुर्मास हेतु निवेदन किया। 21 बस लेकर देवरी बीना बारहा से आए श्रद्धालुओं ने चातुर्मास हेतु निवेदन किया । शाहगढ़ ,दलपतपुर ,जबलपुर भोपाल ,अजमेर, नरसिंहपुर गोटेगांव, गढ़ाकोटा ,पथरिया केसली सहित अनेक नगरों से आए श्रावकों ने अपने-अपने नगरों में मुनि संघ के चातुर्मास हेतु निवेदन किया ।दोपहर में श्रुत पंचमी पर्व धूमधाम से मनाया गया आचार्य संघ के सानिध्य में अनेक धार्मिक कार्यक्रम संपन्न हुए ।

इस अवसर पर परम पूज्य आचार्य श्री समय सागर जी महाराज ने मंगल प्रवचन देते हुए कहा साक्षात तीर्थंकरों का दर्शन आज संभव नहीं है किंतु तीर्थंकरों की वाणी को आत्मसात करते हुए आत्म कल्याण करते हुए मोक्षमार्गियों को मार्ग प्रशस्त किए हैं । चतुर्विध संघ के नायक हैं वह उन्होंने जो मार्ग प्रशस्त किया है 50 -55 साल में जो प्रभावना की है उस प्रभावना का कथन करने के लिए हम लोगों के पास शब्द नहीं है। अभूतपूर्व प्रभावना उन्होंने की है। उन्होंने जो कार्य किया है विश्व कल्याण की भावना तीर्थंकरों में हुआ करती है वही भावना गुरुदेव में रही फल स्वरुप विशाल संघ का दर्शन आप लोग कर रहे हैं।

 सन 1976 में आचार्य महाराज संघ सहित कुंडलपुर आए यहां का वातावरण देखा पहाड़ के ऊपर नीचे मिलकर 62 जिनालय उनका दर्शन उनकी वंदना की। उसमें हम भी शामिल थे और उस समय क्षुल्लक अवस्था थी। वातावरण कैसा था उसका वर्णन भी हम नहीं कर पाएंगे किंतु उस समय जो कुंडलपुर का रूप था वर्तमान में जो आप लोग गगन को छूने वाले उत्तंग शिखर के साथ बड़े बाबा जिनालय का दर्शन भारतवर्ष के नहीं देश-विदेश के लोग यहां आकर के बड़े बाबा का दर्शन करते हैं। उनको लगता होगा यह सपना तो मैं नहीं देख रहा हूं ।

ऐसा अभूतपूर्व दृश्य देखने को मिलता ।ऐसा सारा का सारा कार्य यह जो परिकल्पना उनकी रही है अद्भुत परिकल्पना है और उस परिकल्पना को उन्होंने साकार रूप दिया है और उनके हृदय के जो उदगार हैं उन उद्गारों को सुनकर के बुंदेलखंड के जो उनके अनन्य भक्त रहे उनके लिए आशीर्वाद जो उनका मिला है उसके फल स्वरुप ऐसी ऊर्जा प्रस्फुटित हुई है जिसके फल स्वरुप उनकी परिकल्पना को मूर्त रूप दिया है । आचार्य महाराज ने कुंडलपुर सिद्ध क्षेत्र को विशाल बनाने के लिए जो निर्माण उनका मंगलमय आशीर्वाद रहा है उनका पूरा-पूरा मार्ग दर्शन रहा उनका निर्देशन रहा बीच-बीच में संकेत देते गए इतना ही नहीं जिस प्रकार सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर में जिनालय जो निर्मित हुआ है।

 इसी प्रकार से सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र नेमावर में इसी प्रकार भव्य जिनालय का निर्माण उनके आशीर्वाद से संपन्न हुआ ।इसके अलावा अमरकंटक सर्वोदय इसके नाम से जाना जाने लगा है वहां पर भी इसी प्रकार से भव्य पाषाण का जिनालय निर्माण हुआ ।और कहां-कहां रामटेक देख लो डोंगरगढ़ चंद्रगिरी उसका भी निर्माण उनके माध्यम से हुआ है ।इस प्रकार हजारों हजार साल के लिए जो पाषाण के जिनालय का निर्माण हुआ है और उसकेदर्शन के माध्यम से लाखों करोड़ जनता ने सम्यक दर्शन की उपलब्धि की है। सम्यक दर्शन के माध्यम से महत्वपूर्ण कारण आगम में स्वीकार किया है। जिन बिम्ब के माध्यम से भी सम्यक की उत्पत्ति होती है साक्षात प्रभु का दर्शन होता है उसके माध्यम से सम्यक दर्शन को चरित्र के माध्यम से परिवर्तित करते हैं सम्यक की उपलब्धि हुआ करती है ।इस प्रकार जिनालय को लेकर यह विषय आपके सामने रखा ।इसी प्रकार चिकित्सा के क्षेत्र में सामने आदर्श प्रस्तुत किया है ।

सागर में भाग्योदय का निर्माण उनके माध्यम से हुआ है इसी प्रकार जबलपुर में भी पूर्णायु आयुर्वेदिक चिकित्सालय का निर्माण होने जा रहा है चिकित्सा के क्षेत्र में इतना कार्य हुआ। इसी प्रकार शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने जो आदर्श प्रस्तुत किया है शिक्षा के क्षेत्र में प्रतिभास्थली का निर्माण किया है और प्रतिभा मंडल का निर्माण हुआ है ।25 साल पूर्ण हो चुके हैं सारी बहनें बाल ब्रह्मचारी के रूप में है कितनी बहनों ने दो-दो प्रतिमा लेकर निर्दोष पालन कर रही हैं ।

छात्राएं भी हजारों की संख्या में उनको संस्कारित करते हुए प्रतिभास्थली को आगे और बढ़ा रही है ।सोचो आप सांसारिक क्षेत्र में आने वाला ज्ञान बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटी कॉलेज से प्राप्त होने वाला ज्ञान से आत्मा का दर्शन उस ज्ञान से प्राप्त नहीं हो सकता परमार्थ का ज्ञान पवित्र भाव के ज्ञान को ध्यान  रखते हुए आचार्य महाराज का निरंतर आशीर्वाद फलता जा रहा और विशाल रूप लेता जा रहा है।

 सोचो विचार करो प्रतिभास्थली की पांच शाखाएं खुली है डोंगरगढ़ , रामटेक ,ललितपुर इंदौर ,जबलपुर में है हजारों की संख्या में बालिकाएं अध्यनरत हैं। लोकिक ज्ञान के साथ परमार्थ का ज्ञान दिया जा रहा है ।रत्नत्रय की आराधना के लिए चतुर्विध संघ को आशीर्वाद गुरुदेव ने दिया है। दयोदय, हथकरघा ,शांतिधारा आदि प्रकल्प गुरुदेव ने दिए हैं।

श्रुतपंचमी महापर्व पर मुनि श्री सुधासागर जी के सानिध्य में विविध आयोजन.. दमोह। पथरिया नगर के अतिशय क्षेत्र पार्श्वनाथ जैन बड़ा मंदिर में विराजमान निर्यापक मुनि पुंगव श्री सुधासागर जी के ससंघ मंगल सानिध्य में प्रतिदिन भक्तिरस की गंगा बह रही है मंगलवार की प्रातः काल की बेला में श्रीजी का अभिषेक,शांतिधारा और प्रवचन का लाभ भक्तो में मिल रहा है आज मुनिश्री ने अपनी मंगल देशना में पर्व के महत्व को बताते हुए कहा वीर निर्वाण संवत 614 में आचार्य धरसेन काठियावाड स्थित गिरिनगर (गिरनारपर्वत) की चन्द्रगुफा में रहते थे। जब वे बहुत वृद्ध हो गये थे और अपना जीवन अल्प जाना, तब श्रुत की रक्षार्थ उन्होंने महिमानगरी में एकत्रित मुनिसंघ के पास एक पत्र भेजा। तब मुनि संघ ने पत्र पढ कर दो मुनियों को गिरनार भेज दिया। वे मुनि विद्याग्रहण करने में तथा उनका स्मरण रखने में समर्थ, अत्यंत विनयी, शीलवान तथा समस्त कलाओं मे पारंगत थे।
जब वे दोनों मुनि गिरिनगर की ओर जा रहे थे तब धरसेनाचार्य ने एक स्वप्न देखा कि दो वृषभ आकर उन्हें विनयपूर्वक वन्दना कर रहे हैं। उस स्वप्न से उन्होंने जान लिया कि आने वाले दो मुनि विनयवान एवं धर्मधुरा को वहन करने में समर्थ हैं। तब उनके मुख से अनायास ही “जयदु सुय देवदा” अर्थात् श्रुत की जय हो ऐसे आशीर्वादात्मक वचन निकल पडे। । दूसरे दिन दोनों मुनिवर वहाॅ आ पहुॅचे और विनय पूर्वक उन्होंने आचार्य के चरणों में वंदना की। आचार्यश्री को उनकी सुपात्रता पर विश्वास हो गया। अतः उन्हें अपना शिष्य बनाकर उन्हें सैद्धान्तिक देशना दी। यह श्रुत अभ्यास आषाढ़ शुक्ला एकादशी को समाप्त हुआ। आचार्य पुष्पदंत एवं भूतबलि ने 6 हजार श्लोक प्रमाण 6 खण्ड बनाये। 1.जीवस्थान 2.क्षुद्रकबंध 3.बन्धस्वामित्व 4.वेदनाखण्ड 5.वर्गणाखण्ड और 6.महाबन्ध।उन्होंने कथा के संदर्भ में आगे बताया।
आचार्य भूतवलि और आचार्य पुष्पदन्त ने धरसेनाचार्य की सैद्धान्तिक देशना को श्रुतज्ञान द्वारा स्मरण कर उसे षट्खण्डागम नामक महान जैन परमागम के रूप में रचकर ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी के दिन प्रस्तुत किया। इस शुभ अवसर पर अनेक देवी-देवताओं ने तीर्थंकरों की द्वादशांग वाणी के अंतर्गत महामंत्र णमोकार से युक्त जैन परमागम षट्खण्डागम की पूजा की तथा सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि इस दिन से श्रुत परंपरा को लिपिबद्ध परम्परा के रूप में प्रारंभ किया गया। अतः यह दिवस शास्त्र उन्नयन के अंतर्गत श्रुतपंचमी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।पूज्य श्री ने श्रावको को धार्मिक सीख देते हुए कहा श्रुत और ज्ञान की आराधना का यह महान पर्व हमें वीतरागी संतों की वाणी, आराधना और प्रभावना का सन्देश देता है। इस दिन श्री धवल, महाधवलादि ग्रंथों को विराजमान कर महामहोत्सव के साथ उनकी पूजा करना चाहिये। श्रुतपूजा के साथ सिद्धभक्ति का भी इस दिन पाठ करना चाहिये। शास्त्रों की देखभाल, उनकी जिल्द आदि बनवाना, शास्त्र भण्डार की सफाई आदि करना, इस तरह शास्त्रों की विनय करना चाहिये।कार्यक्रम बाल ब्रह्मचारी प्रदीप भैया सुयश के मंगल निर्देशन में संपन्न हुआ।

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