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मनुष्य यदि सुख के दिनों में भी धर्म ध्यान करता रहे तो उसे दुख का सामना नहीं करना पड़ेगा.. निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी.. सात दिवसीय श्रमण संस्कृति संस्कार शिक्षण शिविर में 4 थे दिन भी विविध आयोजन..

दुखी भले रहो लेकिन धर्मात्मा बने रहो.. निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी

दमोह नगर के श्री पारसनाथ दिगंबर जैन नन्हे मंदिर जी में तीन निर्यापक मुनिश्री सुधा सागर जी मुनि श्री प्रसाद सागर जी श्री वीर सागर जी सहित अन्य मुनिराज के सानिध्य में सात दिवसीय श्रमण संस्कृति संस्कार शिक्षण शिविर का आयोजन वृहद्ध स्तर पर किया जा रहा है। शिविर प्रभारी डॉ प्रदीप शास्त्री के निर्देशन में शनिवार को 4 थे दिन भी विविध शैक्षणिक संस्कार आयोजन संपन्न हुए। जिसमे सैकड़ो की संख्या में बच्चों से लेकर महिला, युवा, बुजुर्ग श्रावक जन  शामिल हुए।
दिगंबर जैन धर्मशाला में चल रहे श्रमण संस्कृति संस्कार शिक्षण शिविर में चौथे दिन भक्तांबर क्लास में निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी ने कहा कि मनुष्य सुख के दिनों में धर्म और धर्मात्माओं से दूर होता जाता है दुख के दिनों में वह उनके निकट आता है यदि वह सुख के दिनों में भी धर्म ध्यान करता रहे तो उसे दुख का सामना नहीं करना पड़ेगा सुख में सुमिरन सब करते हैं किंतु दुख में प्रभु का सिमरन करने वाले बहुत कम होते हैं सुख साधन और अधिकार मिलने पर व्यक्ति धर्म से दूर होता जाता है..
यदि अधिकारी बनकर धर्म से दूर हो गए तो एक धर्मात्मा बनकर छोटे पद पर रहना ज्यादा बेहतर है जितना बड़ा अधिकारी उसे उतना ही धर्म ध्यान करना चाहिए धर्म से कभी विमुख नहीं होना चाहिए यदि बेटे को तिजोरी की चाबी देने पर वह नाली में मिले तो ऐसी चाबी देना बेकार है अधिकार दिए जाने पर व्यक्ति धर्म से दूर हो जावे तो उसे अधिकारी बनना बेकार है। दुखी भले रहो किंतु धर्मात्मा बने रहो। इस मौके पर मुनि श्री को शास्त्र भेंट करने का सौभाग्य अरविंद इटोरिया परिवार एवं पद प्रक्षालन का सौभाग्य प्रवीण जैन महावीर ट्रांसपोर्ट परिवार को प्राप्त हुआ।
मुनि श्री ने अपने मंगल प्रवचनों में आगे कहा कि अपने अच्छे दिनों को व्यक्ति को तीर्थ पर अथवा गुरुओं के पास गुजराना चाहिए ना कि बड़े-बड़े होटलों में अथवा पर्यटन स्थल पर व्यर्थ में घूमना फिरना चाहिए। मनुष्य को अपने अच्छे दिनों में अच्छे स्थानों पर होना चाहिए पाप के स्थान पर नहीं धर्म स्थान पर होना चाहिए। मुनि श्री ने कहा कि शगुन उसको बनाओ जो तुम्हारा उपकारी हो। तीर्थंकर हमारे लिए शरण है वे ही हमारे लिए शगुन है क्योंकि तीर्थंकरों ने स्वयं के कल्याण के साथ-साथ संसार के कल्याण की भावना भाई। 
उनकी यह जगत कल्याण की भावना ही उन्हें तीर्थंकर बनाती है। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर चांदखेड़ी वाले आदिनाथ भगवान की प्रतिमा सबसे अधिक शगुनकारी प्रतीत होती है इसी तरह संतों में हमारे गुरुदेव आचार्य श्री की मुस्कान भरी छवि शगुन कारी थी। उनकी मुद्रा मंगलकारी थी संतों का सौम्य मुस्कुराता चेहरा दिखे तो मंगल मंगल  है भक्तांबर का एक-एक श्लोक जीवंत है भगवान कै रक्षक देव सम्यक दृष्टि होते हैं वे अपनी नहीं भगवान की पूजा से प्रसन्न होते हैं रागी द्वेष वाले देवी देवताओं की की पूजा नही करनी चाहिए।

आज आहारचर्या के पुण्यार्जक परिवार..  निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज  को आहार देने का सौभाग्य जितेन्द्र बजाज (गुड्डू भैया ) हुकुम कटपीस एडवोकेट विजय जैन लालू परिवार को परिवार को प्राप्त हुआ। 
 निर्यापक मुनि श्री प्रसाद सागर महाराज जी को आहार देने का सौभाग्य हर्षित किराना परिवार को प्राप्त हुआ। निर्यापक मुनि श्री वीर सागर जी महाराज को आहार देने का सौभाग्य राकेश नायक डॉ.गौरव नायक परिवार को प्राप्त हुआ। मुनि श्री प्रयोग सागर जी महाराज को आहार देने का सौभाग्य राजेश हिनोती वाले परिवार को प्राप्त हुआ। मुनि श्री सुब्रत सागर महाराज जी को आहार देने का सौभाग्य बाबू लाल खजरी वाले परिवार को प्राप्त हुआ। मुनि श्री पदम सागर जी महाराज के आहार का सौभाग्य राजेश पालर वाले परिवार को प्राप्त हुआ। मुनि श्री शीतल सागर जी महाराज को आहार देने का सौभाग्य ब्रं.अमित भैया परिवार को प्राप्त हुआ। गंभीर सागर जी महाराज के आहार देने का सौभाग्य रानू पारस परिवार को प्राप्त हुआ।  

    

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