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शास्त्रों में इंद्री सुख को महादुख कहा गया.. निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी.. जिज्ञासा समाधान कार्यक्रम में परमोपकारी संत पुस्तक का विमोचन.. मुनि श्री निर्णय सागर एवं मुनि श्री प्रयोग सागर संघ का कुंडलपुर से विहार

आत्मा का आनंद अरस है- मुनि श्री सुधा सागर जी

दमोह। श्री पारसनाथ दिगंबर जैन नन्हे मंदिर जी में आचार्य भगवान श्री विद्यासागर जी महाराज आचार्य श्री समय सागर जी महाराज के तीन निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी री प्रसाद सागर जी श्री वीर सागर जी महाराज संघ सहित विराजमान है। जिनके दर्शन पूजन अर्चन के लिए प्रतिदिन बड़ी संख्या में देश के कोने.कोने से भक्तजनों का दमोह पहुंचना जारी है। शास्त्र कहते हैं आत्मा अजर अमर और अविनाशी है किंतु सामान्य मनुष्य इस पर सहज विश्वास नहीं कर पाता शास्त्र कहता है उपवास में सुख है किंतु मनुष्य का अनुभव कहता है की रोटी में सुख है शास्त्र कहते हैं कि नीरज भोजन में सुख है किंतु मनुष्य का अनुभव कहता है की रस युक्त भोजन में आनंद है आत्मा का आनंद अरस है। 
उपरोक्त विचार निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज ने दिगंबर जैन नन्हे मन्दिर धर्मशाला में शुक्रवार सुबह अपने मंगल प्रवचनों में अभिव्यक्त किये। मुनि श्री ने कहा कि जिसमें रस नहीं उसमें रस लेना आ आत्मा रूप रहित है अव्यक्त है अगंध है जब मनुष्य समझ नहीं पाता तो वह है नास्तिक हो जाता है शास्त्रों में इंद्री सुख को महादुख कहा गया जबकि अनुभव के आधार पर मनुष्य को इंद्रियों की सुख से ज्यादा आनंद कहीं और प्राप्त नहीं होता मनुष्य अंदर द्वंद में सही निर्णय नहीं ले पता वह सांसारिक दुखों को ही सुख मान लेता है उसे अतिंद्री सुख की प्राप्ति नहीं हो पाती वह मान बैठता है कि मार्ग में इतने दुख हैं तो मंजिल पाने पर कितने दुख होंगे और इसी तरह मिथ्या दृष्टि बना रहता है..
 किंतु सम्यक दृष्टि मुनियों के कस्ट को देखकर सोचता है कि ऐसे साधना में कब करूंगा ताकि अपनी आत्मा के स्वरूप को पा सकूं सोकौशल मुनि को बाहर शेरनी चबा रही है उनके ऊपर दुख का पहाड़ दिख रहा है किंतु वे अंदर से आत्मा का रसपान कर रहे हैं अंदर से आनंद का झरना बह रहा है साधु को बाहर से देखोगे तो गम ही गम नजर आएंगे अंदर देखोगे तो सरगम लहराएंगे मुनि के समक्ष यमराज बाहर खड़ा है किंतु उन्हें अंदर अमरता नजर आती है धर्म की सारी कथाएं अनुभव की विपरीत नजर आती है अंजन चोर अपने विश्वास की दम पर अमरता को प्राप्त हो गया..
जब श्रद्धा और समर्पण होता है तभी  आतिशी घटित होते हैं जिस तरह मनुष्य डॉक्टर के समक्ष ऑपरेशन थिएटर में अपने आप को समर्पित कर देता है श्रद्धा और विश्वास की दम पर भगवान राम की जीवन में कष्ट आए यदि वे पिता की आज्ञा नहीं मानते तो इतने कष्ट नहीं आते किंतु धर्म करने से संकट आते सम्यक दृष्टि जीव मरते हुए अमरता का अनुभव करता है धर्म करने से संकट आएगा यदि धर्मात्मा पर संकट नहीं आता तो वह नकली धर्मात्मा है सम्यक दर्शन के लिए इच्छा रहित हो जाना आवश्यक है। 
आज आहारचर्या का सौभाग्य पाने वाले परिवार. निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज को आहार देने का सौभाग्य नेमचंद बजाज के परिवार को प्राप्त हुआ..
निर्यापक मुनि श्री प्रसाद सागर को आहार देने का सौभाग्य राजेश जैन पालर वाले परिवार को प्राप्त हुआ, निर्यापक मुनि श्री वीर सागर जी महाराज को आहार देने का सौभाग्य ब्रह्मचारी स्वतंत्र भैया परिवार को प्राप्त हुआ, मुनि श्री पदम सागर जी महाराज के आहार का सौभाग्य संतोष गंगरा पदम जुझार परिवार को प्राप्त हुआ, मुनि श्री शीतल सागर जी महाराज को आहार का सौभाग्य चंद्र कुमार खजरी परिवार को प्राप्त हुआ, गंभीर सागर जी महाराज के आहार का सौभाग्य सुषमा अतुल चौधरी रुई वाला परिवार को प्राप्त हुआ।

जिज्ञासा समाधान में परमोपकारी संत पुस्तक का विमोचन.. दमोह। शहर में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य निर्यापक श्रमण मुनि श्री सुधासागर जी महाराज के जिज्ञासा समाधान कार्यक्रम में आचार्य विद्यासागर जी महाराज के स्मरण स्वरूप उपकार दिवस के उपलक्ष्य में श्री दिगंबर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर के तत्त्वाधान में आयोजित शिविर आदि में पढ़ाने हेतु मुनि पुंगव के निर्देशन में डॉक्टर प्रदीप जैन द्वारा रचित "'परमोपकारी संत' : महाकवि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज एवं उनका अवदान एक पुस्तक" का विमोचन सांगानेर एवं श्री दिगंबर जैन पंचायत के पदाधिकारियों द्वारा हुआ।
यह पुस्तक भारत के संपूर्ण शिविरों में आचार्य श्री को याद करते हुए उनके कार्यों व जीवन को याद करते हुए पढ़ाई जाएगी। पुस्तक की खूबियों के बारे में वार्ता करते हुए लोगों ने बताया कि इसे नव शिक्षण विधियों के माध्यम से पाठक की आदतों व जीवन में उत्तरोत्तर स्वभाविक परिवर्तन हेतु निर्मित की गई है। प्रत्येक अध्याय के अंत में दिए गए क्रियाकलाप व 1 अध्याय में लिखित संवाद हृदय को छूने वाले हैं। आचार्य श्री के कुछ ग्रंथों से संकलित कुछ अध्याय उनके जीवन का सार हैं जोकि उनकी याद दिलाते हैं।
मुनि श्री निर्णय सागर एवं मुनि श्री प्रयोग सागर जी संघ का कुंडलपुर से विहार.. दमोह। सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र,जैन तीर्थ कुंडलपुर की पावन धरा से महासमाधिधारी संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य पूज्य आचार्य श्री समय सागर जी महाराज के मंगल
आशीर्वाद से पहला उपसंघ पूज्य मुनि श्री निर्णय सागर जी महाराज, क्षुल्लक श्री अटल सागर जी महाराज दूसरा उपसंघ मुनि श्री प्रयोग सागर जी महाराज, मुनि श्री सुब्रत सागर जी महाराज का मंगल विहार 17 मई को सायंकाल कुंडलपुर से पटेरा की ओर हुआ।

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