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दिल्ली के परिवार ने बड़े बाबा को चढ़ाया 200 किलो चांदी का छत्र.. 70 किलो चांदी के भामंडल, 65 किलो चांदी के चंवर भी बड़ेबाबा के दरवार में सुशोभित हुए.. इधर कुण्डलपुर से लगे दो सौ घरों में हथकरघा पहुंचा..

 बड़े बाबा को 200 किलो चांदी का छत्र चढ़ाया गया

दमोह। महाराज छत्रसाल की तरह मनोकामना पूरी होने पर दिल्ली के परिवार ने बड़े बाबा को 200 किलो चांदी का छत्र, 70 किलो चांदी के भामंडल, 65 किलो चांदी के चंवर समर्पित किए है।  महावीर जयंती के पावन अवसर पर बड़ेबाबा के दरवार में विशाल छत्र, भामंडल, चंवर सुशोभित किए गए..
सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र, जैन तीर्थ कुंडलपुर में युग श्रेष्ठ संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के सभी शिष्य मुनि संघ, आर्यिका संघ कुंडलपुर में विराजमान है ।बड़ी संख्या में श्रद्धालु भक्तों का कुंडलपुर आने का क्रम जारी है। श्रद्धालु भक्त पूज्य बड़े बाबा के दर्शन ,अभिषेक ,शांति धारा ,पूजन कर पुणर्याजन कर रहे हैं ।वहीं सभी मुनि संघ आर्यिका संघ के दर्शन वंदन एवं आहार चर्या में भाग लेने का अवसर प्राप्त कर रहे हैं। गर्मी में भी लोगों का उत्साह कम नहीं हो रहा है। प्रातः भक्तांमर महामंडल विधान ,पूज्य बड़े बाबा का अभिषेक, शांति धारा, पूजन, विधान हुआ ।
अभिषेक शांति धारा करने का सौभाग्य पदम जी राजेंद्र जी हुकुम प्रकाश प्रतीक वैभव तक्ष जी हरसोटा परिवार कोटा, श्रीमती सुशीला बाई अशोक राजकुमार ताराचंद विकास जी ठौरा परिवार कोटा, ऋषभ मोहिवाल चांदबाई मनीष सारिका परिवार कोटा, श्यामा जी अजय जैन राहुल वत्सल सपरिवार मेरठ ने प्राप्त किया । इस अवसर पर आचार्य श्री का भक्ति भाव से पूजन किया गया एवं मुनि श्री के मंगल प्रवचन हुए। बड़े बाबा के दरबार में 200 किलो चांदी का छत्र, 70 किलो चांदी का भामंडल, 65 किलो चांदी के चंवर दिल्ली के परिवार द्वारा प्रदत्त किए गए जो बड़े बाबा के दरबार में लगाए गए । सांयकाल  भक्तांमर दीप अर्चना, पूज्य बड़े बाबा की संगीतमय महा आरती हुई।
कुण्डलपुर से लगे दो सौ घरों में हथकरघा पहुंचा.. दमोह। कहने को तो कुण्डलपुर मध्य प्रदेश के दमोह जिले का एक छोटा सा गांव है पर यहां भी अब चंदेरी, महेश्वर और वनारस कि तर्ज पर घर-घर हथकरघा चलाए जाने लगे हैं।  यह सब कुछ संभव हो पाया जैन संत आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की दृष्टि से... दरअसल कुंडलपुर जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान के अत्यंत प्राचीन मंदिर के लिए विश्व विख्यात है यहां पर भारत के कोने-कोने से यात्री आते हैं।
आचार्य श्री के आर्शीवाद से प्रारंभ हुई संस्था श्रमदान में ग्रामीण युवा प्रशिक्षण लेते हैं और थोड़े से अभ्यास के बाद ही ये युवा 400-500 Rs प्रतिदिन का काम करने में सक्षम हो जाते हैं।  इनमें से कई युवाओं ने अपनी गृहणियों को भी हथकरघा सिखा दिया है। परिणाम यह हुआ कि उनके घर दूसरा निःशुल्क हथकरघा भी आ गया। ऐसे कई पति-पत्नियां हैं जो मिलकर 30-40 हजार रुपए हर माह कमा रहे हैं।
वास्तव में ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए इससे अच्छा मॉडल और नहीं हो सकता। लोगों को अपने गांव में ही रोजगार भी मिल गया, प्रकृति को हानि भी नहीं पहुंची और हमारी बहुमूल्य प्राचीन कला का संरक्षण भी हो गया; इसे कहते हैं "एक पंथ बहु काज"
आचार्य श्री के सानिध्य में दिया गया था सौ-वां हथकरघा.. पिछले महीने छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ में विराजमान जैन संत आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के सानिध्य में कुंडलपुर से लगे मढ़िया टिकैत गांव के नवयुवक महेश बर्मन, मोहराई गांव के रामरतन ढीमर, अशोक नगर से लगे कचनार गांव के कपिल सेन एवं गौरव सेन को हथकरघा दिया गया।   
आचार्य श्री के सानिध्य में हथकरघा अनुबंध भेंट करते हुए..आचार्य श्री ने इन नवयुवकों को समझाते हुए कहा कि अपने आसपास और जो फालतू युवा घूम रहे हैं उनको भी हथकरघा सिखाओ अपने घर की महिलाओं को भी हथकरघा सिखाओ किंतु ध्यान रखना कि कमाया हुआ धन व्यसनों में ना चला जाए उसका सदुपयोग करना। गुरु मुख से यह शिक्षा सुन यह सभी लोग धन्य हो गए।
कला बहत्तर पुरुष की, ता मैं दो सरदार । 
एक जीव की जीविका, एक जीव उद्धार ।।
ये वचन हैं एक जैन संत के और इनका अर्थ भी आसान है कि कहने को तो इंसान के सीखने के लिए बहुत सारी कलाएं हैं पर उनमें दो ही प्रमुख हैं एक जिससे वह रोज़ी-रोटी कमा सके और दूसरी जिससे वह संसार से मुक्त हो सके।
वास्तव में देखा जाए तो आज दुनिया भर की सरकारों के समक्ष यह चुनौती है कि हर हाथ को काम कैसे मिले और इसके लिए वह हजारों करोड रुपए खर्च कर कर भी सभी लोगों को आजीविका के योग्य कौशल नहीं सिखा पा रहे हैं। 
इस गंभीर समस्या का आसान सा समाधान एक जैन संत आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के द्वारा दिया गया। उन्होंने कुछ उच्च शिक्षित युवाओं को प्रेरणा दी कि ग्रामीण इलाकों में वसी युवा पीढ़ी को हाथ से कपड़ा बनाने की कला सिखाई जाए। इससे उन्हें अपने घर में ही खेती के साथ एक रोजगार मिल जाएगी। उनकी रोजगार को सुनिश्चित करने के लिए श्रमदान नामक एक संस्था की स्थापना की गई। इस संस्था में ग्रामीण युवक प्रशिक्षण लेने के लिए आते हैं और कुछ ही महीनों में वे वस्त्र निर्माण कि विविध कलाओं में निपुण हो जाते हैं। और उन्हें घर पर कपड़ा बुनाई करने के लिए एक हथकरघा दे दिया जाता है, वो भी नि:शुल्क
एक बार आकर अवश्य इस पावन कार्य को देखें क्योंकि 150 करोड़ की आबादी वाले और 6 लाख गांवों वाले हमारे इस भारत की सारी समस्याओं का हल आखिरकार कुटीर उद्योग से ही निकल कर आएगा जिससे किसी ग्रामवासी को रोजी रोटी के लिए शहरों में संघर्ष नहीं करना पड़ेगा और हमारा देश पुनः सोने की चिड़िया बन जायेगा स्मार्ट सिटी तो हमने बना लीं अब बारी है स्मार्ट विलेज की..
 

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