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बड़े बाबा मंदिर की अनुपम छटा को देख श्रद्धालु हो रहे मंत्रमुग्ध.. पंच कल्याणक की पावन बेला में बड़े बाबा मंदिर का अद्भुत नजारा..

 दमोह जिले के कुंडलपुर में स्थित बड़े बाबा जिनालय के पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव अवसर पर 16 फरवरी से जहां मेन रोड के साइड में निर्मित अयोध्या नगरी में श्री जी के पूजन अभिषेक विधान से पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव की शुरुआत हो गई है वही पहाड़ी पर बड़े बाबा का जिनालय अत्यंत भव्य स्वरूप में अलग छटा बिखेर रहा है..

 

बड़े बाबा के गर्भ ग्रह के सामने से क्रेन के पाइप हट जाने के बाद अब काफी दूर से ही बड़े बाबा मनभावन प्रतिमा के मनु के दर्शन मनोज्ञ दर्शन भक्तों को अर्जित हो रहे हैं वही यहां पर निर्मित हो चुके त्रिकाल चौबीसी मंदिर की 72 प्रतिमाओं पंच बाल्याती जिनालय की पांच प्रतिमाओं की स्थापना के साथ प्रशस्ति लिखे जाने का कार्य प्रतिष्ठा के पूर्व जारी है।

आचार्य भगवन विद्यासागर जी महाराज के पावन सानिध्य में पंचकल्याणक महोत्सव के दौरान इन सभी प्रतिमाओं को बड़े बाबा मंदिर परिसर में ही सूर्य मंत्र प्रदान किया जाएगा। इधर अनेक वर्षों से निर्माण कार्य के चलतेबड़े बाबा मंदिर परिसर के चारों तरफ फैले मार्बल पत्थरों के समूह, पाइप के जाल, क्रेन जेसीबी आदि को हटाकर चारों तरफ सफाई करा दी गई है।

बड़ेबाबा

जिससे आप यहां पर धूल रहे थे माहौल में भक्तों को सुलभता के साथ बड़े बाबा के दर्शन पूजन अर्चन के साथ छोटे बाबा के बड़े संघ का पावन सानिध्य सौभाग्य भी प्राप्त हो रहा है।बड़े बाबा के नए मंदिर के शिखर की ऊंचाई 189 फीट है। दुनिया में अब तक नागर शैली में इतनी ऊंचाई वाला मंदिर नहीं है।

मन्दिर

मंदिर की ड्राइंग डिजाइन अक्षरधाम मंदिर की डिजाइन बनाने वाले सोमपुरा बंधुओं ने तैयार की है। मंदिर की खासियत है कि इसमें लोहा, सरिया और सीमेंट का उपयोग नहीं किया है। इसे गुजरात व राजस्थान के लाल-पीले पत्थरों से तराशा गया है। पत्थर को दूसरे पत्थर से जोडऩे के लिए भी खास तकनीक का इस्तेमाल किया है।

ढाई हजार साल पहले आया था महावीर का समोशरण

भगवान महावीर के 500 शिष्य हुए जिनमें इंद्रभूति गौतम के भट्टारक ने भ्रमण किया था। भट्टारक सुरेंद्र कीर्ति ने कुंडलगिरी क्षेत्र से भगवान आदिनाथ की प्रतिमा खोजी थी। तब से यह माना जा रहा है कि भगवान महावीर का समवसरण 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व कुंडलपुर आया था। पहाडिय़ां कुंडली आकार में होने के कारण पहले इसका नाम कुंडलगिरी था। बाद में धीरे-धीरे इसका नामकरण कुंडलपुर पड़ गया। जो अब सबसे बड़ा तीर्थ क्षेत्र है। यह क्षेत्र 2500 साल पुराना है।
प्रतिमा के संदर्भ में यह कथा भी प्रचलित
वैसे तो कुंडलपुर में विराजित भगवान आदिनाथ की 15 फीट ऊंची विशाल प्रतिमा की खोज करने वाले के रूप में भट्टारक सुरेंद्र कीर्ति का नाम आता है। लेकिन एक किवदंती यह भी है कि पटेरा गांव में एक व्यापारी प्रतिदिन सामान बेचने के लिए पहाड़ी के दूसरी ओर जाता था। रास्ते में उसे प्रतिदिन एक पत्थर से ठोकर लगती थी। एक दिन उसने मन बनाया कि वह उस पत्थर को हटा देगा। लेकिन उसी रात उसे स्वप्न आया कि वह पत्थर नहीं तीर्थंकर मूर्ति है। स्वप्न में उससे मूर्ति की प्रतिष्ठा कराने के लिए कहा गया, लेकिन शर्त थी कि वह पीछे मुड़कर नहीं देखेगा। उसने दूसरे दिन वैसा ही किया। बैलगाड़ी पर मूर्ति सरलता से आ गई। जैसे ही आगे बढ़ा उसे संगीत और वाद्य, ध्वनियां सुनाई दीं। जिस पर उत्साहित होकर उसने पीछे मुड़कर देख लिया। और मूर्ति वहीं स्थापित हो गई।

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