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आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज के ससंघ सानिध्य में मुनि श्री हर्ष सागर जी का समाधि पूर्वक मरण.. अंतिम यात्रा में शामिल हुए हजारो श्रावक जन.. जटाशंकर के समीप यति बिहार गौशाला परिसर में हुई अंतिम संस्कार की क्रियाएं..

 आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज के ससंघ सानिध्य में मुनि श्री हर्ष सागर जी का समाधि पूर्वक मरण.. 

दमोह। जबलपुर नाका जैन मंदिर में 3 दिन पूर्व आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज से छुल्लक दीक्षा ग्रहण करने वाले उनके गृहस्थ जीवन के पिताश्री को हर्ष सागर महाराज नाम दिया गया था। शुक्रवार सुबह उनकी मुनि दीक्षा के उपरांत को समाधि पूर्वक मरण हो गया। दोपहर बाद उनकी अंतिम यात्रा निकाली गई जो जटाशंकर के समीप यति बिहार गौशाला परिसर पहुंची। जहां हजारों लोगों की मौजूदगी में अंतिम संस्कार की क्रियाएं संपन्न हुई।

वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज के गृहस्थ जीवन के पिता श्री सवाई सिंघई हुकमचंद जी ने 5 जनवरी को आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज से क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की थी। 6 जनवरी को निर्जल उपवास के बाद 7 जनवरी कोआहार ग्रहण किया। शुक्रवार को को प्रातः 9.40 पर इस नश्वर देह का आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज व सात मुनियों के सानिध्य में णमोकार मंत्र सुनते हुए सल्लेखना पूर्वक समाधि मरण हुआ। दोपहर दो  बजे डोला निकाला गया। 


ज्ञात हो कि आचार्य श्री निर्भय सागर जी की शीतकालीन वाचना दमोह के जवलपुर नाका स्थित जैन मंदिर में चल रही है वहीं हुकुम चंद जी की दीक्षा हुई एवं समाधि मरण हुआ। डोली यात्रा गौशाला पहुंची वहां अंतिम संस्कार किया गया। जैन विधि के अनुसार संस्कार की क्रिया मंत्रों सहित की गई। आचार्य संघ भी अंतिम यात्रा में गौशाला तक भक्ति पाठ एवं मंत्र के उच्चारण करने हेतु गौशाला तक गया। अंतिम संस्कार की क्रिया विधि पंडित सुरेश चंद शास्त्री ने कराई।

डॉ मंत्र तंत्र भोजन आदि मौत से नहीं बचा सकते.. आचार्य श्री निर्भय सागर जी ने कहा डॉ मंत्र तंत्र भोजन आदि मौत से नहीं बचा सकते लेकिन अकाल मौत से बचा सकते हैं। यही वजह है कि प्रत्येक व्यक्ति को विचार कर आता है जब उपचार असंभव हो जाता है डॉक्टर भी हाथ खड़े कर देता है और कहता है अब ऊपर वाला ही तुम्हारा मालिक है तब वह किसी दिगंबर मुनि के पास जाकर अपना समाधि मरण करता है। समाधि मरण में भूखा प्यासा नहीं मारा जाता बल्कि संयमित आहार देकर उसके शरीर को शुद्ध किया जाता है। उसके विचारों को मोह माया जाल से हटाकर परमात्मा के ध्यान में और आत्मा के ज्ञान में लगाया जाता है। ऐसा करने से उसका अगला भव सुधर जाता है। सल्लेखना को पंडित मरण भी कहते हैं। पंडित मरण करने वाला कम से कम तीन भव और अधिकतम 8 भव में केवल ज्ञान प्राप्त करके मोक्ष चला जाता है। इस पंचम काल में मोक्ष अर्थात पंडित पंडित मरण नहीं है लेकिन समाधि मरण अवश्य है। 

आचार्य श्री के पूर्व जागृति बालिका मंडल बड़ा मंदिर एवं जबलपुर नाका के बालिका मंडल ने णमोकार मंत्र का सभी को 9 बार उच्चारण कराया। इस अवसर पर मुनि श्री शिवदत्त सागर जी महाराज ने कहा हर्ष दत्त सागर जी महाराज उजाले में आए और उजाले में ही चले गए।अर्थात जैन कुल मे जन्म लिया और जैन धर्म  के अनुसार समाधि मरण किया। होश हवास में प्राण त्यागना ही समाधि मरण है। मुनि सुददत्त सागर जी महाराज ने कहा बैरागी की परीक्षा मौत के सामने आने पर होती है। मुनि श्री हेमदत्त सागर जी ने कहा मौत से डरने वाला समाधि मरण नहीं कर सकता। मुनिश्री गुरूदत्त सागर जी महाराज, छुल्लक चंद्र दत्त सागर जी ने कहा हंसते हंसते जीना और हंसते हंसते मरना हो यही जैन दर्शन सिखाता है। इस अवसर पर जैन समाज के दमोह के श्रेष्ठी श्रावकों भी अपने विचार व्यक्त किए।

 डोली यात्रा में समाधि स्थल हर्ष दत्त सागर जी महाराज के पूर्व परिजन एवं रिश्तेदारो में जबलपुर से अभिषेक कुमार, वीरेंद्र कुमार डीएसपी, रहली से वीरेंद्र कुमार ललितपुर से विवेक कुमार, गढ़ाकोटा से सतीश संजय सुरेश सराफ, पथरिया से प्रवीण फट्टा, संजू, अंकुर, प्रदीप सतीश मेडिकल, शाहपुर से नरेंद्र सराफ, बंडा से सदा दीदी, दीपक, अरविंद, अमित, सागर से संतोष अनंतपुरा सुरेश सिंघई, रमेश सिंघई, सिं शरद कुमार अजय कुमार पवन कुमार राजेंद्र शिक्षक वीरेंद्र वीर गारमेंट सुनील स्टेशनरी, ढाना से डॉ विवेक सानू, नेमीचंद नैनधरा से डॉ सुभाष शील चंद, प्रकाश चंद, मिट्ठू लाल वाराणसी नेमीचंद इसके अलावा नोहटा बनवार बनगांव बांदकपुर कटनी शहडोल दिल्ली भोपाल मुंबई आदि अनेक शहरों से भक्तगण के साथ सकल दिगंबर जैन समाज के युवा बुजुर्ग महिलाओं बच्चों की भी अंतिम यात्रा में मौजूदगी रही। 

 सवाई सिंघई हुकुम चंद धबोली वालों का धर्मयात्रा चक्र..

दमोह। वैज्ञानिक संतआचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज के ग्रस्त जीवन के पिता श्री सवाई सिंघई हुकुम चंद जी धबौली वालो ने  5 जनवरी को क्षुल्लक दीक्षा ली थी। दीक्षा के बाद क्षुल्लक हर्षदत्त सागर जी नामकरण किया गया। क्षुल्लक हर्ष दत्त सागर जी मकरोनिया अंकुर कॉलोनी सागर में निवास करते थे उनके पुत्र शरद कुमार, अजय कुमार, पवन कुमार यहां पर अपने पिताश्री को लेकर आये उनकी स्थिति और दादा हुकुम चंद जी की भावना को देखते हुए आचार्य श्री ने दीक्षा देने का निर्णय किया उन्होंने पहले कई बार दीक्षा का निवेदन किया परिवार जन से स्वीकृति मिलने पर दीक्षा संपन्न हुई
ज्ञात हो लगभग 1 वर्ष पूर्व 10 जनवरी को उन्हें लकवा ब्रेन हेमरेज के कारण लकवा लग गया था। तब भी दीक्षा का प्रसंग सागर में आया था लेकिन निमित्त तो दमोह नगर का था ।आज उनकी छलक दीक्षा संपन्न हुई । दीक्षा के बाद पिच्छी प्रदान करने का सौभाग्य उन्हीं के ग्रस्त जीवन के पुत्र शरद कुमार, अजय कुमार, पवन कुमार बेटी सुधा एवं सविता दीदी के साथ जबलपुर नाका  दमोह के  डॉ आर के जैन ,डॉ जे के जैन, संजय जैन, मनोज जैन आदि को प्राप्त हुआ। कमंडल प्रदान करने का सौभाग्य श्री हर्ष दत्त सागर जी महाराज के ग्रस्त जीवन की पत्नी श्रीमती सुहाग रानी पुत्र वधु अनीता जैन ,मणी जैन एवं महिला मंडल ,बालिका मंडल को सौभाग्य प्राप्त हुआ। जिनवाणी प्रदान करने का सौभाग्य नीता फट्टा पथरिया एवं जैन समाज जबलपुर नाका दमॊह को प्राप्त हुआ ।

 दीक्षार्थी श्री हुकुमचंद जी ग्राम धबोली तहसील बंडा जिला सागर के  मूल निवासी थे । उनके 6 पुत्र एवं दो पुत्रियां हैं हुकुम चंद जी 40 वर्ष तक धबौली जैन समाज के अध्यक्ष रहे ,20 वर्ष तक सरपंच रहे । आपके पिता श्री ने धवैली एवं नैनागिरि में मंदिर बनना कर दो बार पंच कल्याणक प्रतिष्ठा के साथ गजरथ चलवायेऔर जिससे सवाई सिंघई की उपाधि प्राप्त हुई । आश्चर्य की बात यह रही कि पिता ने ही आपने तृतीय पुत्र अभय कुमार जो वर्तमान में आचार्य निर्भय सागर जी हैं उन्हीं के करकमलों से दीक्षा ग्रहण की।  यह एक अनोखा दृश्य था जब एक पुत्र आचार्य बनकर अपने पिता को दीक्षा दे रहा था । जिसे देखकर सारी जनता अभिभूत होकर हर्षित हो रही थी। इसके बाद आज वह दृश्य भी सामने आया जब आचार्य पुत्र की मौजूदगी में मुनि पिता ने समाधिमरण के साथ नश्वर काया का त्याग किया।

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