एक बाइक पर पांच सवारी के साथ गृहस्थी की दुकानदारी
तीन बाइकों पर सवार यह तीन परिवार जिनमे बच्चे और महिलाएं भी शामिल है, छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से दमोह तक का सफर बिना किसी रोक-टोक के तय करते हुए आए हैं। करीब 10 साल पूर्व दमोह से छत्तीसगढ़ गये पारदी जाति के यह खानाबदोश किस्म के लोग चूड़ी कंगन बेचने का काम करके मौज मस्ती से अपना जीवन बिता रहे थे। अचानक कोरोना के कहर का दौर शुरू हुआ और फिर जान बचाने के लिए कर्मभूमि को छोड़ जन्मभूमि की याद आई।
लेकिन तब तक बसों के पहिए थम चुके थे,रेलों की छुक छुक बंद हो चुकी थी। लेकिन पेट्रोल पंप खुले हुए थे और इनके पास घर गृहस्ती के सामान के साथ चूड़ी कंगन बेचने के काम में आने वाली मिनी बाइक हौसला अफजाई कर रही थी। आनन-फानन में निर्णय लेते हुए महिलाओं बच्चों के साथ घर गृहस्ती के सामान को बाइक पर ही एडजस्ट करके करीब 500 किलोमीटर का सफर तय करके दमोह पहुंचकर इन सभी ने राहत की सांस ली है।
दमोह। देश दुनिया में कोरोना के कहर के बीच "जान है तो जहान" की कहावत चारों तरफ चरितार्थ होती नजर आ रही है लाक डाउन के चलते ट्रेन बसों सहित अन्य सवारी वाहनों के चलने से नहीं चलने से गरीब मजदूर वर्ग के लोग सैकड़ों किलोमीटर का सफर पैदल ही तय करके कर्मभूमि से अपनी जन्मभूमि तक पहुंचते "हिम्मते मर्दे..मर्दे खुदा" की कहावत को चरितार्थ करते नजर आ रहे हैं। लेकिन यहां हम "हद कर दी आपने" की तर्ज पर "जान जोखिम में" डालकर छोटी बाइक से बच्चो सहित चार पांच लोगों के परिवार और गृहस्थी का सामान लेकर करीब 500 किमी का सफर तय करने वालों की दास्तान बता रहे है।
लेकिन तब तक बसों के पहिए थम चुके थे,रेलों की छुक छुक बंद हो चुकी थी। लेकिन पेट्रोल पंप खुले हुए थे और इनके पास घर गृहस्ती के सामान के साथ चूड़ी कंगन बेचने के काम में आने वाली मिनी बाइक हौसला अफजाई कर रही थी। आनन-फानन में निर्णय लेते हुए महिलाओं बच्चों के साथ घर गृहस्ती के सामान को बाइक पर ही एडजस्ट करके करीब 500 किलोमीटर का सफर तय करके दमोह पहुंचकर इन सभी ने राहत की सांस ली है।
इनका कहना है जब तक कोरोना का कहर पूरी तरह से समाप्त नहीं हो जाता तब तक यह परिवार अपनी जन्म भूमि में ही रहेगा। ऐसे में देखना होगा इनकी स्क्रीनिंग सहित विभिन्न जांच के मामले में जिम्मेदार कितनी जागरूकता दिखाते हैं । अभिजीत जैन की रिपोर्ट
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