पंचायत उपाध्यक्ष पद पर निर्विरोध निर्वाचन-
दमोह। जिला पंचायत उपाध्यक्ष के चुनाव को लेकर जारी गहमागहमी और सरगर्मियों पर कौशल्या मेमार के निर्विरोध निर्वाचन के साथ विराम लग गया है। वहीं जिला पंचायत अध्यक्ष शिवचरण पटेल के खिलाफ रखे गए अविश्वास के प्रस्ताव को लेकर सरगर्मी बढ़ने के साथ उल्टी गिनती शुरू हो गई है।जिला पंचायत कार्यालय में सोमवार को सुबह 11 बजे से ही उपाध्यक्ष के निर्वाचन को लेकर सरगर्मी शुरू हो गई थी। पंचायत का उपाध्यक्ष बनने के लिए एक से अधिक दावेदार पर्दे के पीछे रहने परंतु जीत के लिए आवश्यक संख्या किसी के पास नहीं होने कि स्थिति के चलते आखिरकार मौजूदा सदस्यों के बीच से कौशल्या मेमार के नाम पर सभी की सहमति बन गई। जिसके बाद श्रीमती कौशल्या मेमार द्वारा नामांकन पत्र दाखिल किया गया।
अन्य किसी का नामांकन नहीं आने पर इनको उपाध्यक्ष पद पर निर्वाचित घोषित कर दिया गया तथा निर्वाचन का प्रमाण पत्र भी प्रदान कर दिया गया इस दौरान जिला पंचायत अध्यक्ष शिवचरण पटेल से लेकर इनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने में महती भूमिका अदा करने वाले राघवेंद्र सिंह ऋषि लगातार सक्रियता दर्ज कराते रहे।
अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास को लेकर सरगर्मी तेज-
तेंदूखेड़ा के इमलीडोल क्षेत्र से जिला पंचायत सदस्य श्रीमती कौशल्या मेमार के निर्विरोध उपाध्यक्ष चुने जाने के साथ ही जिला पंचायत अध्यक्ष के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव की सरगर्मियां तेज हो गई हैं। अध्यक्ष शिवचरण पटेल के खिलाफ कमिश्नर के समक्ष अविश्वास का प्रस्ताव रख कर 8 सदस्य अपनी एकजुटता दर्ज करा चुके हैं।
15 सदस्यों वाली दमोह जिला पंचायत के अध्यक्ष पद के चुनाव में करीब 4 साल पहले भाजपा के शिवचरण पटेल को अध्यक्ष तथा बसपा की राम बाई को उपाध्यक्ष चुना गया था। श्रीमती राम बाई तथा एक अन्य सदस्य राहुल सिंह के विधायक बन जाने, एक अन्य सदस्य परमानंद कुशवाहा का निधन हो जाने से जिला पंचायत सदस्य के 3 पद रिक्त हो चुके है। जिससे मौजूदा सदस्यों की संख्या 12 बची है। जिनमें से 8 सदस्य मौजूदा अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के आवेदन पर कमिश्नर के समक्ष हस्ताक्षर कर प्रस्ताव दे चुके हैं।
जिला पंचायत अविश्वास प्रस्ताव प्रावधान के अनुसार वर्तमान हालात में शिवचरण पटेल को अपना अध्यक्ष पद बचाने के लिए तीन सदस्यों की जरूरत पड़ेगी। इनकी कुर्सी खाली कराने विपक्ष में यानी अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 9 सदस्यों की वोटों की जरूरत पड़ेगी। 8 सदस्यों के विरोध में खुलकर सामने आ जाने के बाद सबसे बड़ा सवाल यही है कि अध्यक्ष अपने खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का बचाव कैसे करते है। आज यदि उपाध्यक्ष पद के लिए चुनाव में मतदान होता तो यह तस्वीर साफ हो जाती कि कौन किसके साथ है। परंतु चुनाव के बजाय निर्विरोध निर्वाचन ने अध्यक्ष अविश्वास प्रस्ताव की तस्वीर पर फिलहाल सस्पेंस बरकरार रखा है।
ऐसे में देखना होगा विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा के लिए भस्मासुर जैसी भूमिका निभाने वाले बड्डा अब अपनी कुर्सी बचने के लिए कौन सा दाव चलते है। सांसद की आड़ में पार्टी नेताओं के बीच लगातार अविश्वास के झाड़ गाड़ने की बजह से अविश्वसनीय हो चुके बड्डा की मदद इस बार ना सांसद जी कर पाएंगे और ना उनके कहने पर पिछली बार वोट करने वाले सदस्य।
इधर बड्डा के चक्कर में भाजपा से बगावत करने वाले राघवेंद्र सिंह ऋषि लोधी अपना हिसाब कैसे चुकता करते हैं इसको लेकर अब अविश्वास प्रस्ताव के दिन यानि 12 फरवरी का लोगो को बेसब्री से इंतजार है। इस पूरे मामले को लेकर ताजा अपडेट के साथ फिर मिलते हैं। अटल राजेन्द्र जैन की रिपोर्ट
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बोये पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होए
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