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नगर निगम बनने पर किसका क्या भला होगा..! विपक्ष में आते ही भाजपा नेताओ की नजर नगर निगम बनने पर महापौर की कुर्सी पर है.. या फिर कहीं और..?

 पूर्व मंत्री जयंत मलैया के साथ भाजपा ने सौपा ज्ञापन-
दमोह। विपक्ष में आते ही भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को दमोह को नगर निगम बनाए जाने की जरूरत महसूस होने लगी है। इसके लिए राज्य शासन को ज्ञापन भेजकर ध्यानाकर्षण कराए जाने का दौर भी शुरू हो गया है। इसी के साथ आम जनता के बीच भी इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि आखिर नगर निगम बनने से सबसे अधिक लाभ किन का होगा। और इसको बनवाने के पीछे असली मंशा और मकसद क्या हो सकता है ?

मप्र में लगातार 15 वर्षों तक कैबिनेट मंत्री तथा 28 साल तक विधायक रहे वरिष्ठ नेता श्री जयंत मलैया के साथ भाजपा के अनेक नेता सोमवार को कलेक्ट्रेट कार्यालय पहुंचे। जहा उन्होंने कलेक्टर नीरज कुमार सिंह से मुलाकात कर राज्य शासन के नाम दो ज्ञापन सौंपे। एक ज्ञापन किसानों की समस्याओं को लेकर था जिसमें महीने भर बाद भी उड़द का भुगतान नहीं होने आदि का उल्लेख किया गया था।
वहीं दूसरे ज्ञापन में दमोह शहर की याने नगर पालिका क्षेत्र की सीमाओं का विस्तार करके इसमें उपनगरीय क्षेत्र बन चुकी आधा दर्जन ग्राम पंचायतों को समाहित करते हुए नगर निगम का दर्जा दिए जाने का प्रस्ताव राज्य शासन को भेजे जाने की अपेक्षा की गई। पूर्व मंत्री जयंत मलैया के नेतृत्व में कलेक्टर से ज्ञापन चर्चा के दौरान अनेक भाजपा नेताओं की मौजूदगी रही।इस दौरान पूर्व विधायक लखन पटेल की हाथ बांधकर चुप्पी साधे बैठे रहने की स्थिति उनकी विधायक जाने की खामोशी को बयान करती चर्चा का विषय बनी रही।

सरकार से बेदखल होते ही क्यों आई ननिगम की याद-
 भाजपा कि प्रदेश सरकार के 15 साल के कार्यकाल में दमोह विधायक श्री जयंत मलैया के पास नगरीय निकाय, आवास एवं पर्यावरण, उद्योग, जल संसाधन, वित्त और वाणिज्य कर विभाग जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय रहे। परंतु उन्होंने तथा उनके इर्द-गिर्द डटे रहने वाले चापलूसो ने दमोह को नगर निगम का दर्जा दिलाए जाने की मांग करना तो दूर दमोह के बस स्टैंड की हालत सुधारने तक की चिंता नहीं की। नगर निगम की मांग करने वाले लोग यह भूल रहे हैं वह पिछले 2 साल में दमोह नगर पालिका को एक सीएमओ भी नहीं दिला सके थे। लेकिन  सत्ता से बेदखल होते ही नगर निगम की जरूरत क्यों महसूस होने लगी ? उसके लिए तरह तरह की चर्चाओं का दौर शहर में शुरू हो गया है।  
नगरनिगम का महापौर होता है कैविनेट का दर्जा प्राप्त-
 इस साल नवंबर माह में मप्र में नगरीय निकाय के चुनाव होंगे। यदि उसके पूर्व दमोह को नगर निगम बनाए जाने का प्रस्ताव प्रदेश सरकार ने मंजूर कर दिया तो जनता को नगर पालिका अध्यक्ष के बजाय महापौर चुनने का मौका मिलेगा। महापौर को कैबिनेट मंत्री के दर्जे के साथ लाल बत्ती की गाड़ी मिलने की  बात किसी से छुपी नहीं है। यानी नगर निगम बनते ही दमोह के लिए कैबिनेट मंत्री का दर्जा और लाल बत्ती तो पक्की हो ही जाएगी। सूत्रोंं के अनुसार "भूरा गैंग" ने तो बाकायदा महापौर प्रत्यााशी का नाम और और उसके बाद मिलने वाले काम भी तय कर लिए हैं। इंतजार बस नगर निगम का दर्जा मिलने का है।
उप नगरीय क्षेत्र की जमीन हो जाएगी बेशकीमती-
 नगर निगम के रूप में दमोह शहरी क्षेत्र का विस्तार होते ही आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की जमीन भी शहरी क्षेत्र में समाहित हो जाएगी तथा इसकी कीमत भी बेशकीमती हो जाएगी। सभी को पता है ऐसे में सबसे अधिक लाभ उन लोगों को ही होगा जिन्होंने पूर्व प्लानिंग तथा कॉलोनी आदि डेवलपमेंट के हिसाब से बेहिसाब जमीन बाईपास तथा आसपास के क्षेत्रों में खरीद रखी है या पहले से है।
 भाजपा के चुनाव घोषणा पत्र में शामिल था नगर निगम- इस बार के विधानसभा चुनाव में पूर्व मंत्री पूर्व विधायक जयंत मलैया की ओर से पार्टी का जो घोषणा पत्र जारी हुआ था उसमें दमोह को नगर निगम का दर्जा दिलाए जाने की बात का भी उल्लेख किया गया था। लेकिन संयोगवश इसी बार श्री मलैया चुनाव हार गए और भाजपा से बेदखल हो गई। ऐसे में सागर बाईपास पर बनने वाले नए बस स्टैंड की प्लानिंग भी फिलहाल ठंडे बस्ते में चली गई। जिन लोगों ने इन इलाकों में करोड़ों की जमीन लाखों में खरीद कर रख ली है उनकी जमीन की कीमत अरबों रुपए में तभी तब्दील हो सकती है जब दमोह को नगर निगम का दर्जा मिल जाए और यह इलाके इसमें शामिल हो जाएं और नया बसस्टेंड भी यहां बन जाए।  
 कहने की जरूरत नहीं है कि नगर निगम बनने से सबसे अधिक फायदा किनका होगा तथा महापौर की कुर्सी किन के खाते में जाएगी। हालांकि हम भी चाहते हैं दमोह शहर का विकास हो, दमोह नगर निगम बने लेकिन निगम अध्यक्ष और महापौर कठपुतली नहीं पावरफुल बने। और विकास के नाम पर हाथी की नहीं घोड़े जैसी चाल चले। अटल राजेंद्र जैन की रिपोर्ट

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