ज्ञानमती माताजी को हुई अलौकिक अनुभूति-
नैनागिर, बक्सवाहा। अयोध्या की ओर बिहार कर रही गणनी प्रमुख परम पूज्य ज्ञानमति माताजी इन दिनों बुंदेलखंड क्षेत्र की तीर्थ वंदना कर रही हैं कुंडलपुर से बिहार करते हुए माताजी का संघ मैं सिद्धक्षेत्र नैनागिर पहुंचा जहां पर क्षेत्र प्रबंध कार्यकारिणी के अलावा बड़ी संख्या में सकल जैन समाज द्वारा आगवानी की गई।माताजी ने नैनागिर पर्वत के दर्शन किए तथा भगवान पारसनाथ की समोशरण स्थली को नमन किया।
परमपूज्य ज्ञानमति माता जी ने धर्म सभा को संबोधित करने के उपरांत नैनागिर में बीच नदी किनारे जंगल में शाम 5 बजे जाकर सिद्ध शिला दर्शन किए। इस सिद्ध शिला पर जब माताजी पहुंची तो उन्होंने एक अलग ही अनुभूति प्राप्त की। उन्होंने कहा कि अपनी 85 वर्ष की उम्र मे सिद्ध शिला साधना के चरणों के दर्शन लाभ से जो अनुभूति पाई वह अद्भुत और अलौकिक पल था। यह दृश्य उपस्थित जनों ने देखा और मानो साक्षात ऐसा लग रहा था की देव उपस्थित हो और माता जी बिन बोले ही आंख बंद करके अपनी साधना मई तपस्या में तल्लीन हो गई। वह क्षण शत-शत नैनागिर के साथ बुंदेलखंड वासियों को भी गौरान्वित बीच जो अनुभव हुआ और प्रेरणादायक रहा।
गणनी प्रमुख जिस आयु के पड़ाव पर है उस में लोग एक कदम भी बाहर नहीं निकालते लेकिन ज्ञानमती माताजी बुंदेलखंड के घनघोर जंगलों के बीच अपनी यात्रा को एवं बुंदेलखंड की प्राकृतिक वैभव को ऐतिहासिक धरोहरों को देख कर प्रसन्न हो रही है। और संदेश दे रही हैं कि समाज इन धरोहरों को संरक्षित करें। तोड़कर मरोड़ कर नया रूप देने का कोई प्रयास ना करें। प्रकृति की देन पूर्वजों की देन समाज को एक प्रेरणा देती है। यह संदेश माताजी ने दिया। समाज में एक समरसता का भाव जागृत किया।
नैनागिर, बक्सवाहा। अयोध्या की ओर बिहार कर रही गणनी प्रमुख परम पूज्य ज्ञानमति माताजी इन दिनों बुंदेलखंड क्षेत्र की तीर्थ वंदना कर रही हैं कुंडलपुर से बिहार करते हुए माताजी का संघ मैं सिद्धक्षेत्र नैनागिर पहुंचा जहां पर क्षेत्र प्रबंध कार्यकारिणी के अलावा बड़ी संख्या में सकल जैन समाज द्वारा आगवानी की गई।माताजी ने नैनागिर पर्वत के दर्शन किए तथा भगवान पारसनाथ की समोशरण स्थली को नमन किया।
परमपूज्य ज्ञानमति माता जी ने धर्म सभा को संबोधित करने के उपरांत नैनागिर में बीच नदी किनारे जंगल में शाम 5 बजे जाकर सिद्ध शिला दर्शन किए। इस सिद्ध शिला पर जब माताजी पहुंची तो उन्होंने एक अलग ही अनुभूति प्राप्त की। उन्होंने कहा कि अपनी 85 वर्ष की उम्र मे सिद्ध शिला साधना के चरणों के दर्शन लाभ से जो अनुभूति पाई वह अद्भुत और अलौकिक पल था। यह दृश्य उपस्थित जनों ने देखा और मानो साक्षात ऐसा लग रहा था की देव उपस्थित हो और माता जी बिन बोले ही आंख बंद करके अपनी साधना मई तपस्या में तल्लीन हो गई। वह क्षण शत-शत नैनागिर के साथ बुंदेलखंड वासियों को भी गौरान्वित बीच जो अनुभव हुआ और प्रेरणादायक रहा।
गणनी प्रमुख जिस आयु के पड़ाव पर है उस में लोग एक कदम भी बाहर नहीं निकालते लेकिन ज्ञानमती माताजी बुंदेलखंड के घनघोर जंगलों के बीच अपनी यात्रा को एवं बुंदेलखंड की प्राकृतिक वैभव को ऐतिहासिक धरोहरों को देख कर प्रसन्न हो रही है। और संदेश दे रही हैं कि समाज इन धरोहरों को संरक्षित करें। तोड़कर मरोड़ कर नया रूप देने का कोई प्रयास ना करें। प्रकृति की देन पूर्वजों की देन समाज को एक प्रेरणा देती है। यह संदेश माताजी ने दिया। समाज में एक समरसता का भाव जागृत किया।
पुज्यनीय माताजी वर्तमान में बुन्देलखण्ड तीर्थ यात्रा पर हैं। जो दिगम्बर जैन समाज की सर्वप्राचीन दीक्षित साध्वी एवं सर्वोच्च गुरुमाता के रूप में मान्य भारत गौरव गणिनी प्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती जी के साथ प्रज्ञा श्रमणी आर्यिकारत्न श्री चन्दनामती माताजी सहित सप्त-आर्यिकाओं एवं पीठाधीश श्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी ने अति प्राचीन दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र नैनागिरी में उस सिद्धशिला स्थल का भी दर्शन किया जहाँ जैन मान्यतानुसार प्राचीन काल से जैन मुनियों ने तपस्या करके मोक्ष प्राप्त किया है। ऐसे स्थान के पवित्र परमाणु हमारी आत्मा को शुद्धता देते हैं। यहाँ आकर भक्तों को २ मिनट ही सही लेकिन ध्यान करके उन मुनियों का स्मरण करना चाहिए । पवनघुवारा की रिपोर्ट
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