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जीवन में क्रोध का त्याग करते हुए मान का भी त्याग करना उत्तम मार्दव धर्म-मुनि श्री सुव्रत सागर जी.. दशलक्षण महापर्व पर जैन कांच मंदिर में विविध आयोजन.. महेश दिगंबर बने विमान कमेटी के नए अध्यक्ष

 जीवन में क्रोध का त्याग करते हुए और मान का त्याग भी करना उत्तम मार्दव धर्म.. मुनि श्री सुव्रतसागर जी

दमोह। नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन नन्हें मंदिर में दस लक्षण पर्व के द्वितीय दिवस के अवसर पर उत्तम मार्दव धर्म का अनुष्ठान बहुत प्रभावना पूर्ण तरीके से संपन्न किया गया। इस अवसर पर सुबह से शांति धारा अभिषेक का आयोजन हुआ जिसमें प्रमुख पात्रों ने अपने द्रव्य का सदुपयोग करते हुए जिन शासन की प्रभावना में सहयोग किया। उत्तम मार्दव धर्म की पूजा के साथ अनुष्ठान संपन्न किए गए।
 इस अवसर पर मुनि श्री सुव्रतसागर जी महाराज ने उपस्थित धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि आज उत्तम मार्दव धर्म है। क्रोधी व्यक्ति किसी के लिए पसंद नहीं आता। क्रोधी के पास कोई आना नहीं चाहता और मानी  व्यक्ति किसी के पास जाना नहीं चाहता। अब आप स्वयं विचार करें क्रोधी के पास कोई आना नहीं चाहता मानी किसी के पास जाना नहीं चाहता जब दोनों का मिलन होगा नहीं तो कल्याण कैसे होगा? इसलिए अपने जीवन में क्रोध का त्याग करते हुए और मान का त्याग भी करना है। 
मुनिश्री ने कहा कि नरक में उत्पन्न होने वाले जीव क्रोध के साथ उत्पन्न होते हैं उनके पूरे जीवन में क्रोध की अधिकता रहती है और उनका पूरा जीवन लड़ाई झगड़े के साथ ही व्यतीत होता है तिर्यंच जानवर पशु पक्षी मायाचारी के साथ उत्पन्न होते हैं उनका पूरा जीवन मायाचारी में ही निकल जाता है ।देव लोग लोग के साथ उत्पन्न होते हैं उनका पूरा जीवन लोभी प्रवृत्ति में व्यतीत हो जाता है। अब शेष मनुष्य का जीवन कैसे प्रारंभ होता है इस बात पर भी आपको विचार करना है मनुष्य का जीवन मान के द्वारा उत्पन्न होता है मान का पालन पोषण करता हुआ मनुष्य अपना जीवन व्यतीत करता है घमंड अभिमान के द्वारा पालन पोषण करते-करते मनुष्य स्वयं घमंड की मूर्ति बन जाता है और छोटी-छोटी बातों का अभिमान करते हुए मनुष्य अपने बड़े-बड़े कार्यो को भूल जाता है मान का करने वाला व्यक्ति हमेशा परेशान रहता है।
मुनिश्री ने आगे कहा कि दुनिया में बिना सम्मान के कोई काम नहीं चलता। मनुष्य चाहता कि सम्मान मिले किंतु मिलता अपमान है और यह अपमान का घूंट पीकर के वह जलता रहता है और संसार की यात्रा में चलता रहता है लेकिन जिस व्यक्ति ने अपने संकल्प संयम और मर्यादा का पालन करने के लिए अभिमान का त्याग कर दिया है वह व्यक्ति वास्तव में अभिमान का त्यागी माना जाएगा अभिमान का त्याग करने पर ही भगवान की मूर्ति का दर्शन हो सकता है।
मुनि श्री ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि अगर वास्तव में हम अभियमान पर विजय करना चाहते हैं तो दिगंबर साधुओं के दर्शन अवश्य कर लेना चाहिए दिगंबर साधु अपने जीवन में कभी भी अभिमान को, घमंड को स्थान देते ही नहीं है इतिहास में बहुत सारे प्रसंग सुनने में आए पढ़ने में आए किंतु वर्तमान में एक नाम ऐसा है जो अभिमान पर विजय प्राप्त करके और अपने धर्म का पालन करके समाधि मरण को प्राप्त हुए ऐसे उन महापुरुष का नाम है आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज, जिन्होंने अपने शिष्य विद्यासागर जी महाराज को शिक्षा दीक्षा देकर अपना शिष्य स्वीकार किया और जीवन के अंतिम समय में अपना आचार्य पद उन्हें देना चाहा तो उन्होंने लेने से  इनकार कर दिया उनका कहना था कि संसारी प्राणी पद पर लद कर अपना कद बढ़ाने में लगा हुआ है इसलिए अपनी हद तक पार कर जाता है मुझे इन पदों की कोई आवश्यकता नहीं है अंत में आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने जब यह कहा कि तुम मेरे शिष्य हो और तुम्हें गुरु दक्षिणा तो देनी ही पड़ेगी इस बात पर आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज तैयार हुए और गुरु दक्षिणा के रूप में आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने यही मांगा कि तुम मेरा आचार्य पद ले लो और मुझे समाधि के लिए तैयार होने दो अब आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने उनका पद लेना स्वीकार कर लिया।
वह दृश्य क्या दृश्य रहा होगा जब एक गुरु अपने सिंहासन से उठकर के अपने शिष्य को गुरु बनाकर के उनके चरणों में निवेदन करने के लिए बैठे होंगे अभिमान पर विजय का इससे उत्तम दृश्य इतिहास में अभी तक ना सुनने में आया है ना पढ़ने में आया है वास्तव में अगर देखा जाए तो आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने अभिमान पर विजय प्राप्त करके दुनिया के सामने यह प्रस्तुत किया कि आज भी लोग अभिमान पर विजय प्राप्त करने की साधना कर सकते हैं उन्होंने अपने शिष्य को गुरु बनाकर इस बात का प्रमाण इस समाज को इस दुनिया को प्रस्तुत किया वास्तव में अगर देखा जाए तो दिगंबर साधु की पूरी चर्या ही अभिमान पर विजय प्राप्त करने की होती है क्योंकि शहंशाह जैसी प्रवृत्ति का पालन करने वाले साधु लोग जब किसी के यहां भोजन करने के लिए जाते हैं तो हाथ फैला करके खड़े हो जाते हैं अभिमान पर विजय प्राप्त करने की इससे बड़ी मुद्रा और कुछ हो ही नहीं सकती इसलिए अगर हम दिगंबर साधुओं के अनुयाई बनकर के उनके पथ पर चलने का प्रयास करते हैं तो हम अभिमान पर विजय प्राप्त करने की साधना के पथ पर आगे आ सकते हैं।
 मुनिश्री ने उपस्थित जन समुदाय को संबोधित करते हुए अंत में यही कहा कि अगर हमें अपने घर को बिखरने से बचाना है तो अभिमान का त्याग करना ही पड़ेगा। अभिमानी व्यक्ति को कभी कुछ भी प्राप्त नहीं होता मुनि श्री ने एक दृष्टांत के माध्यम से यह बताया कि जैसेघड़े के ऊपर ढकी हुई प्लेट कभी भी जीवन में भर नहीं पाती है क्योंकि वह है झुकना जानती ही नहीं है किंतु कटोरी घड़े के अंदर प्रवेश करके भर जाती है मुनि श्री ने कहा कि यह तो दमोह है दमोह में ट्रेनों का आना-जाना बना रहता है प्राचीन समय में सिग्नल हुआ करते थे जब वह झुकते थे तभी ट्रेन अंदर प्रवेश करती थी इसी तरह से अगर हमें अपनी आत्मा को मोक्ष में प्रवेश कराना है तो अभिमान का सिग्नल डाउन करना ही पड़ेगा।

दशलक्षण महापर्व पर जैन कांच मंदिर में विविध आयोजन

दमोह।
  संयम के महापर्व दसलक्षण पर्व पर श्री आदिनाथ दिगंबर जैन कांच मंदिर दमोह में सुबह से ही भक्तजनों की भीड़भाड़ लग रही है। द्वितीय दिन उत्तम मार्दव धर्म के दिवस पर मंदिर जी की दोनो वेदियों पर क्रमशः श्री जी का अभिषेक किया जा रहा है, साथ ही विश्व शांति की मंगल कामना के साथ वृहत मंत्रोच्चारण के साथ शांतिधारा की जाती है। प्रथम दिवस उत्तम क्षमा के संबंध में विस्तार से पंडित श्री आदीश जी ने बताया कि श्रावक को यथाशक्ति क्षमा भाव धारण करना चाहिए, गाली सुन मन खेद न आनो, गुण को औगुण कहे अयानो, अर्थात अगर आपके समक्ष कोई आकर आपको गाली देने लगे, अच्छाई को भी बुरा प्रदर्शित करने लगे, तब भी आपके मन में क्रोध उत्पन्न नही होना ही सच्चे श्रावक की पहचान होती है। 
श्रावको के लिए छः आवश्यक कर्तव्य बताए जिनमे देव पूजा सर्वोपरि है, इसी प्रकार दस धर्मो में सर्व प्रथम उत्तम क्षमा धर्म धारण करना बताया गया हैं। जिसने अपने परिवार में रहकर क्षमा को धारण कर लिया निश्चित ही वह उत्कृष्ट गति को धारण करता है, क्योंकि सबसे ज्यादा कर्म बंध हमारे साथ रहने वाले लोगो के साथ क्रोध करने पर बंध जाते है। जहां सुमत वहां संपत्ति नाना, अर्थात जहां क्रोध की निम्नता होती है, सब एक साथ मिलकर रहते है, वहां संपत्ति अर्थात लक्ष्मी का वास होता है। क्रोध ही सभी कर्मों के आस्रव का कारण होता है। घमंड करने से अपने भी पराए हो जाते है, मन में कोमलता से जीवन सुखमय हो जाता है। जो मन में हो वही बचनो में होना चाहिए। बचनो में वही होना चाहिए जो हमारे क्रिया में होता है।
मंदिर जी में प्रतिदिन कांच मंदिर पाठशाला के बच्चो के द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम निर्धारित हुए है। बच्चो के द्वारा भजन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमे सभी बच्चो ने भगवान की भक्ति में तन्मय होकर संगीतमय भजनों की प्रस्तुति दी। जैन कांच मंदिर कमेटी ने सकल जैन समाज दमोह से मंदिर जी के सभी आयोजनों में सम्मिलित होकर धर्मलाभ लेने का विनय पूर्वक अनुरोध किया है।

महेश दिगंबर होंगे विमान कमेटी के नए अध्यक्ष
दमोह। पर्यूषण पर्व के समापन पर जैन समाज के द्वारा निकाली जाने वाली शोभायात्रा का संचालन करने वाली 100 साल प्राचीन संस्था श्री दिगंबर जैन विमान कमेटी के नए अध्यक्ष बनने का गौरव महेश दिगंबर को प्राप्त हुआ है। जैन समाज के सबसे बड़े जुलूस का दायित्व संभालने वाली विमान कमेटी में सभी मंदिरों की प्रतिनिधि शामिल होते हैं विमान कमेटी का महामंत्री बनने का सौभाग्य सौरव जैन कोषाध्यक्ष विक्रांत सराफ उपाध्यक्ष अरुण प्रधान राकेश पुजारी सांस्कृतिक मंत्री अमित सिंघई शोभा यात्रा प्रभारी नयनदीप प्रचार मंत्री संचित सेठ प्रशासनिक व्यवस्था अशीष शाह सुनील जैन कलश व्यवस्था सवन सिल्वर आशीष जैन कस्तूरचंद जी साज सज्जा व्यवस्था मनोज खजरी ललित जैन सुनील पुष्पदीप धार्मिक आयोजन मंत्री आशीष सिंघई कार्यकारी सदस्य राजीव प्रांजल बजाज आदि को सम्मिलित किया गया है। विमान कमेटी के पूर्व सदस्य सुनील वेजीटेरियन ने बताया कि विमान कमेटी एक सबसे पुरानी संस्था है जो निरंतर अपने दायित्वों का निर्वहन कुशलतापूर्वक करती है पर्यूषण पर्व के समापन पर संस्था के द्वारा विद्वान तपस्वियों और प्रतिभाशाली विद्यार्थियों का सम्मान कमेटी के द्वारा किया जाता है इस बार मुनि श्री प्रयोग सागर जी महाराज एवं मुनि श्री सुब्रत सागर जी महाराज के मंगल सानिध्य में विशाल शोभायात्रा निकाली जाएगी।

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