गुप्त रूप से पाप किया जाता है दान तथा धर्म नहीं.. मुनि श्री सुधा सागर जी
दमोह।
दान छुप करके नहीं होता। दान खुलकर देना चाहिए। गुप्त रूप से पाप किया
जाता है ,धर्म नहीं। गुप्त रूप से दान देने का धर्म ग्रंथो में कोई उल्लेख
नहीं है। गुप्त रूप से दान देने की परंपरा सरकार के डर से, डाकू के भय से
अथवा परिवार के भय से प्रचलित हो गई है। परिवार से छिपकर दान दिया जाना घोर
निंदनीय है। यह बहुत बड़ा पाप है क्योंकि जिनसे छुप कर दिया जाता है उनका
विनाश निश्चित है वे आगे चलकर दाने-दाने के लिए मोहताज हो जाते हैं।
उपरोक्त
उदगर श्री पारसनाथ दिगंबर जैन मंदिर की धर्मशाला विराजमान आचार्य श्री
विद्यासागर जी आचार्य श्री समय सागर जी के परम प्रभावक शिष्य निर्यापक
मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त
किये। मुनि श्री ने कहा कि जीवन में पाप के कारण अनेक कष्ट आते हैं जुआ
शराब आदि बुराइयों से परिवार बर्बाद हो जाते हैं किंतु आज तक कोई व्यक्ति
दान देने से बर्बाद होते नहीं दिखा। धर्म के कारण यदि जीवन में कष्ट आए तो
इसे सौभाग्य मनाना चाहिए। शासन और प्रशासन को धर्म और धर्मात्मा को निर्भय
बनाना चाहिए।
मुनि श्री ने कहा कि डाकू जैसे
निकृष्ट लोग भी धर्म कार्यों में बाधा नहीं डालते। इस संबंध में उन्होंने
आचार्य श्री के समय का डाकू हरीसिंह का किस्सा सुनाते हुए बताया कि
नैनागिर में जब एक बार आचार्य श्री ने डाकुओं के आतंक को देखते हुए अपने
चातुर्मास की संभावना से इनकार कर दिया तो डाकू हरीसिंह ने यह संदेश
भिजवाया की वह किसी तरह की भी गड़बड़ी चातुर्मास के दौरान नहीं होने देगा
और उसके बाद चातुर्मास आनंद संपन्न हुआ किसी भी तरह की कोई अप्रिय घटना
घटित नहीं हुई। मुनि श्री ने कहा कि एक समय था कि जब
घर के मालिक घर में ताला लगाकर पड़ोसी को चाबी दे जाते थे किंतु आज घर के
ही सदस्य एक दूसरे पर विश्वास नहीं करते और घर में ताला लगाए रहते हैं यह
अत्यंत सोचनीय विषय है घर के लोगों में ही विश्वास नहीं बचा आज बहु अपनी
सास पर और सास बहू पर शक करती है। भाई भाई पर और बाप बेटे पर शक करता है।
विश्वास की कमी आती जा रही है जो की अत्यंत निंदनीय है इतिहास का उदाहरण
सुनाते हुए उन्होंने कहा कि राजा बिंबिसार ने अपनी रानी चेलना को वचन दिया
था कि उसके धर्म कार्यों में वह कभी बाधक नहीं बनेगा इतने से वचन से राजा
श्रेणीक आगे चलकर तीर्थंकर बनेगा।
जुझार वाले सिंघई परिवार को मिला आहारचार्य का सौभाग्य
शनिवार
को मुनि श्री का मुनि श्री के पाद प्रक्षालन का सौभाग्य कमलेश जैन को एवं
शस्त्र भेंट करने का सौभाग्य मानिकचंद जैन परिवार को प्राप्त हुआ।
मुनि श्री का पड़गाहन करके उनको नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य
कुंडलपुर कमेटी के पूर्व अध्यक्ष स्वर्गीय तारा बाबू स्व हुकम चंद
सिंघई परिवार से डॉ सुमेर सिंघाई, सुधीर जैन, पप्पू सिंघई कटनी, अनिल सिंघई
सहित समस्त परिजनों के साथ अनेक भक्तो को प्राप्त हुआ।
व्रति आहारशाला की मुनि पुंगव ने की सराहना .दमोह
जैन धर्मशाला के समीप स्थित आचार्य विद्या सागर व्रति आहार शाला के
कार्यों की अपने जिज्ञासा समाधान कार्यक्रम में सराहना करने के पश्चात आज
प्रातः काल मुनि श्री सुधा सागर जी आहार शाला के निरीक्षण हेतु स्वयं
पहुंचे। वहां पर उन्होंने समिति के पदाधिकारी एवं स्टाफ को अपना मंगल
आशीर्वाद दिया। इसके पूर्व मुनि श्री प्रमाण सागर जी महाराज भी भोजन शाला
का निरीक्षण कर सराहना कर चुके है। मुनि श्री सुधा सागर जी ने कहा की आज के
समय में ऐसी भोजन शालाओं की समाज को आवश्यकता है जिससे समाज में अशुद्ध
भोजन के प्रति लोगों में रुचि विकसित न हो इसके अलावा बूढ़े और असहाय
व्यक्ति अपने अंतिम समय में धर्म ध्यान के साथ संलेखना कर सकें और शुद्ध
भोजन के अभाव में अपने जीवन को ना बिगड़ना दे। उन्होंने कहा क इस तरह के
सेवा कार्यों में हर संभव मदद करने के लिए भक्त जनों को आगे आना चाहिए और
ऐसे उपक्रमों में कभी धन का अभाव नहीं होना चाहिए।
निर्यापक मुनि श्री प्रसाद जी महाराज ससंंघ’ की आगवानी आज.. दमोह। रविवार सुबह पूज्य सुधा सागर जी महाराज के साथ सकल दिगंबर जैन समाज ’पूज्य निर्यापक मुनि श्री प्रसाद जी महाराज ससंंघ’ की मंगल आगवानी करेगा। महासमाधिधारक आचार्य भगवन 108 श्री विद्यासागर जी महामुनिराज एवम आचार्य श्री 108 समयसागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य पूज्य निर्यापक मुनि श्री प्रसाद जी महाराज ससंंघ का मंगल प्रवेश दमोह नगर में 12 मई को प्रातः 6 बजे धरमपुरा नाका से हो रहा है । पूज्य मुनि संघ की मंगल आगवानी में समस्त मंदिर समिती धार्मिक सामाजिक संगठन महिला बालिका मंडल पाठशाला एवम साधमीँजन भव्य आगवानी में सम्मिलित होकर धर्म लाभ प्राप्त कर पुन्यार्जन करेंगे।श्री दिगंबर जैन पंचायत एवंश्री पारस नाथ दिगम्बर जैन नन्हें मंदिर प्रबन्धक समिति ने सकल जैन समाज से अगवानी में सहभागिता की अपील की है।
हथकरघा प्रशिक्षण केंद्र कुंडलपुर के 8 वर्ष पूर्ण.. सुप्रसिद्ध
सिद्ध क्षेत्र,जैन तीर्थ कुंडलपुर में सन् 2016 में परम पूज्य संत
शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के आशीर्वाद एवं मंगल
प्रेरणा से अक्षय तृतीया के दिन प्रारंभ हुए हथकरघा प्रशिक्षण केंद्र
कुण्डलपुर के 8 वर्ष पूर्ण हुए ।
इन 8 वर्षो में लगभग 500 से अधिक लोग
प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके है।जिनमे से 40 गाँव में 300 लोग अपने घर पर
हथकरघा लगाकर अहिंसक, स्वाबलंबी जीवन यापन कर रहे है ।इसी कड़ी में इसबार
अक्षय तृतीया के दिन 6 नए प्रशिक्षार्थियो को घर पर हथकरघा, नवाचार्य
108श्री समयसागर जी महाराज के मंगल सानिध्य में वितरित किये गये।
मातृत्व दिवस पर निर्यापक मुनि श्री संभव सागर जी के प्रवचन.. दमोह
।सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र जैन तीर्थ कुंडलपुर में युग श्रेष्ठ आचार्य
श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य आचार्य श्री समय सागर जी
महाराज के आशीर्वाद से निर्यापक श्रमण मुनि श्री संभव सागर जी महाराज ने
मातृत्व दिवस पर मंगल प्रवचन देते हुए कहा मुझे अचानक यहां मंच पर भेज दिया
गया क्योंकि कहा भी है की सेना को हमेशा तैयार रहना चाहिए हमेशा मुस्तैद
रहना चाहिए। और यह भी नहीं कहूंगा कोई सोता हो तो उसको सुलाओ। क्योंकि
हमारे जेष्ठ श्रेष्ठ निर्यापक मुनि योग सागर जी महाराज इस बारे में एक
प्रसंग सुनाते हैं वह कहते हैं एक बार की बात थी किसी शहर में बहुत बड़ा
किसी विषय पर व्याख्यान होना था और कोई उस विषय का विशिष्ट वक्ता बुलाया
गया ।समय पर सब कुछ संयोजना हो गई। आयोजक बुलाने उसके स्थान पर पहुंचे ।उस
विशेषज्ञ ने कहा यह तो बताओ कितने श्रोता है तब हम सभा में जाएंगे । आयोजक
यहां वहां अगल-बगल झांकने लगे ।वह वक्ता समझ गया कोई ज्यादा श्रोता नहीं है
। उन आयोजकों ने कहा श्रोता तो कम है तब उस वक्ता ने कहा हम इतने लोगों
में नहीं बोलते हैं । वह आयोजन भी बहुत कुशल थे वे बोले क्या गौशाला में एक
ही गाय होगी तो क्या सानी नहीं डालोगे। उनको समझ में आ गया वक्ता महोदय सभा
में पहुंचे गिनती के लोग थे ।उन्होंने अपना भाषण शुरू किया नॉनस्टॉप बोलते
जा रहे थे एक घंटा से ज्यादा बोले। अब आयोजन पहुंचे और बोले क्या इन्हीं
दो-तीन को गौशाला की पूरी सानी खिला दोगे ।कोई बात नहीं अपन आगे चलते हैं
प्रसंग पर आते है देखो वैशाख का महीना चल रहा है कल ही अक्षय तृतीया पर्व
हम सब ने मनाया।
राजा श्रेयांश के माध्यम से दान तीर्थ की शुरुआत हुई ।राजा
श्रेयांश और आहार दान के विषय में कल सुना होगा यहां बैठे हुए सभी लोग
उससे परिचित हैं सभी ने बहुत दान दिया है। अब आगे चलते हैं वैशाख शुक्ल
सप्तमी को गुरुदेव के करकमलों से मुझे निर्ग्रंथ पद की प्राप्ति हुई ।आज वह
प्रसंग नहीं किसी और प्रसंग की बात करते हैं रविवार के दिन मई का दूसरा
रविवार मदर्स डे याने मातृत्व दिवस हमारे सामने उनकी संख्या भी पर्याप्त है
।आज इस विषय पर चलते हैं यहां पर गुरुदेव से दीक्षित पूरा आर्यिका संघ
उपस्थित है मातृत्व दिवस सृष्टि की श्रेष्ठ रचना मां को देखने के बाद कोई
और मुहूर्त निकालने की जरूरत नहीं ।एक आज्ञाकारी पुत्र कहता है की मां के
पैर छुए और उसके सभी कार्य हो गए। मां से बढ़कर कोई मुहूर्त नहीं ।इसी बात
को हम आध्यात्मिक की ओर ले चलते हैं आगम की ओर ले चलते हैं ।क्या माता-पिता
तो संसार के नाते होते हैं इस और कैसे ले चलते हैं यदि आपका आपकी सोच हो
तो हर रिश्ते को अपने आप में डाल सकते हैं ।हमारे पंच परमेष्ठी अरहंत
परमेष्ठी ,सिद्ध परमेष्ठी ,आचार्य परमेष्ठी, उपाध्याय परमेष्ठी ,साधु
परमेष्ठी । अरिहंत परमेष्ठी तो समोशरण में विराजमान है ।सिद्ध परमेष्ठी
सिद्ध लोक में विराजमान रहते ,आचार्य परमेष्ठि जो हमारे बीच माता के समान
है ।मां अपने बच्चे की उंगली पड़कर चलना सिखाती कदम-कदम पर जब शुरुआत होती
कदम रखने की पहले थोड़ा-थोड़ा बैठकर खिसखता है फिर खड़े होने की स्थिति आ
जाती है तो एक-एक कदम चलने लगता मां एक उंगली पकड़े रहती वह धीरे-धीरे चलने
लगता जैसे उसकी स्थिति है वैसे साधु उसका दूसरा रूप होता है। गुरुवर ने
मोक्ष मार्ग पर चलने एक-एक कदम कैसे चलना है यह अपने शिष्य को सिखाते कैसे
सीखते जब पक्षी के अंडे से चूजा बाहर होता उसके पहले मां ऊष्मा प्रदान करती
एक दिन वह अंडे का प्रस्फुटन हो जाता। चूजा बाहर निकलता उसकी मां दाना
चुगाती है कब यह उड़ने लगे इसी प्रयास में रहती एक दिन वह उसे ऊंची चट्टान
पर ले जाती उसे खाई में धकेलती ।उसे सिखाना है कैसे उड़ाना सीखें ।मां हृदय
में कठोरता धारण करती फिर भी उसको उड़ाना सिखाती ।उसकी विकास की यात्रा
कराती ।इस तरह गुरु भी अपने शिष्य को प्रति समय ऐसी शिक्षा देते रहते
तुम्हें स्वयं कल्याण के मार्ग पर चलना है। मेरे अभाव में भी कैसे तुम
मोक्ष मार्ग पर दौड़ते रहोगे।
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