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बड़े बेआबरु होके तेरे कूचे से हम निकले.. यह अटल आडवाणी की नहीं मोदी शाह वाली भाजपा है ज़नाब.. मुख्यमंत्री पद पर अप्रत्याशित निर्णय के बाद वरिष्ठ नेताओं के कैबिनेट में शामिल होने पर भी संशय के बादल मंडराए..!

बड़े नेताओं तथा समर्थकों के खेमें में सन्नाटा पसरा..

भोपाल। बड़े बेआबरु होके तेरे कूचे से हम निकले.. किसी प्रसिद्ध शायर की यह पुरानी गजल छत्तीसगढ़ के बाद मध्य प्रदेश में आज हुए मुख्यमंत्री चयन के बाद सटीक उतरती नजर आती है। जिस अप्रत्याशित तरीके से छत्तीसगढ़ में कल श्री विष्णु देव साय के बाद आज मप्र में श्री मोहन यादव के नाम पर मुहर लगी है उससे यह साफ लगने लगा है कि कल राजस्थान में भी ऐसी ही कुछ अप्रत्याशित तस्वीर मुख्यमंत्री के तौर पर उभरने वाली है।

कल छत्तीसगढ़ में और आज मध्य प्रदेश में भाजपा विधायक दल की बैठक के पहले तक देश के बड़े-बड़े न्यूज़ चैनलों से लेकर मीडिया हाउस में बैठे बड़े-बड़े धुरंधर कुछ बड़े नेताओं को मुख्यमंत्री पद की रेस में ऐसे दौड़ा रहे थे मानो वह अंतर्यामी हो भविष्य वक्ता हो। यहां तक की कुछ नेताओं के बंगलो पर सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दिए जाने का हवाला देकर अप्रत्यक्ष रूप से उनके मुख्यमंत्री बन जाने के नाम का ऐलान ही कुछ चर्चित न्यूज़ चैनल कर चुके थे। वही कुछ नेताओं के समर्थकों की नारेबाजी और बातचीत का लगातार लाइव प्रसारण करके यह बताने की कोशिश की जा रही थी कि वह जो दिखा रहे हैं इस पर मोहर लगने वाली है। लेकिन मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा के साथ चुनाव नतीजे के बाद से चल रही कुछ चर्चित बड़े चैनलों की चापलूसी भाटगिरी की झकर उतरते देर नहीं लगी।

मध्य प्रदेश में श्री मोहन यादव के मुख्यमंत्री, श्री नरेंद्र सिंह तोमर को विधान सभा अध्यक्ष, श्री जगदीश देवड़ा और राजेंद्र शुक्ला को उपमुख्यमंत्री बनाए जाने के निर्णय के साथ मुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल अन्य नेताओं के समर्थकों के बीच में मातम जैसा माहौल बना हुआ है। राजनीतिक गमगीन हालात का असर महाकौशल बुंदेलखंड मालवा चंबल अंचल में महसूस किया जा रहा है। जहां शिवराज सिंह की जगह प्रहलाद पटेल, गोपाल भार्गव, कैलाश विजयवर्गीय, नरेंद्र सिंह तोमर या ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाए जाने की घोषणा का इंतजार उनके समर्थक बड़ी ही बेसब्री से कर रहे थे। यहां तक की बड़ी संख्या में सभी के समर्थक भी भोपाल पहुंच गए थे। 

 दरअसल दो केंद्रीय मंत्री सहित पांच सांसदो के विधायक बनने के बाद इन्होंने दिल्ली जाकर जिस तरह से भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रधानमंत्री से मुलाकात करने के बाद लोकसभा अध्यक्ष को अपने स्तीफा दिए थे उससे अंदाजा लगाया जा रहा था कि अब इनको मुख्यमंत्री बनाए जाने के साथ संकेत दे दिए गए।  CM नहीं तो उपमुख्यमंत्री पद से जरूर नवाजा जाएगा। लेकिन यह किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि इन को रिटायर हड की श्रेणी में लाकर दूसरे क्रम के नेताओ को आगे कर दिया जाएगा। 
अब जबकि मध्य प्रदेश की तस्वीर छत्तीसगढ़ की तरह साफ हो चुकी है ऐसे में मुख्यमंत्री पद के दावेदार अन्य नेताओं के बंगलो से लेकर समर्थकों के ठिकानों पर खामोशी छाई हुई है। बड़े-बड़े सपने सजोकर भोपाल पहुंचे अनेक समर्थकों को तो यह अभी तक समझ में नहीं आ रहा की उनके इतने बड़े नेता का नाम अचानक कैसे कट गया और जिसका नाम कहीं नहीं था उसके नाम की गूंज मोहन की मुरली की तरह मध्य प्रदेश ही नहीं देश तथा देश के बाहर सुनाई दे रही है।
वरिष्ठ नेताओं को कैविनेट मंत्री पद मिलेगा या नहीं..?
मप्र में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के साथ-साथ विधानसभा अध्यक्ष की तस्वीर साफ हो जाने के बाद अब श्री मोहन यादव के मंत्रिमंडल में किन नेताओं को जगह मिलेगी उसको लेकर पार्टी की वरिष्ठ नेताओं खास कर शिवराज सरकार के मंत्रियों की नींद उड़ी हुई है जो अच्छी खासी वोटों से जीतकर फिर से विधायक बने हैं। 

लोकसभा की सदस्यता छोड़ देने वाले नए विधायकों तथा उनके समर्थकों को भी अब यह आशंका लग रही है कहीं कैबिनेट मंत्री की सूची से भी उनका नाम बाहर न हो जाए। इधर चार-चार बार विधायक बन चुके नेता भी अब यह दावा नही कर पा रहे कि वह मंत्री बनने जा रहे हैं। कांग्रेस में यदि इस तरह के निर्णय आए होते तो शायद अभी तक बगावत के सुर सुनाई देने लगते लेकिन यह मोदी शाह की भाजपा है की केंद्र से विपरीत राजयोग की आस में प्रदेश की राजनीति में आए नेताओं को फिलहाल इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है..
ऐसे ऐसे कैसे हो गए कैसे-कैसे ऐसे वैसे हो गए..
बात शायद 80 के दशक के उस दौर की है जब भाजपा पूरी देश में सिर्फ दो लोकसभा सांसदों पर सिमट गई थी। उस समय के अप्रत्याशित चुनाव नतीजे को लेकर श्री अटल बिहारी वाजपेई का कटाक्ष था कि... ऐसे ऐसे कैसे कैसे हो गए और कैसे-कैसे ऐसे वैसे हो गए.. 
बाद में 90 के दशक में अटल जी आडवाणी जी के नेतृत्व में भाजपा मजबूती से उभरती चली गई। यहां तक की पहले 13 दिन के लिए फिर 13 महीने के लिए और फिर 4 साल के लिए अटल जी की केंद्र में सरकार बनी। लेकिन हर बार सहयोगी दलों के साथ-साथ अपनों को मनाने तथा उनकी नाराजगी का ध्यान रखने में ही वाजपेई सरकार का अधिकांश समय निकल गया। 

लेकिन वर्ष 2014 से भाजपा में शुरू हुए मोदी शाह युग के करीब दस साल में पार्टी ने एक के बाद एक चौंकाने वाले निर्णय लेकर यह साफ कर दिया है कि यह अटल जी की मजबूर भाजपा वाली सरकार नही नही बल्कि मोदी जी की मजबूत भाजपा वाली सरकार है। जिसके फैसलों की गूंज दूर तक सुनाई देने के साथ असर भी दूर तक दिखाई देता है। 

छत्तीसगढ़ के बाद मध्य प्रदेश में चौंकाने वाले नेतृत्व परिवर्तन ने पार्टी के अनेक वरिष्ठ नेताओं को जहा रिटायर हड के संकेत दे दिए हैं वही बरसों से अपनी बारी का इंतजार कर रहे निचले व मध्यक्रम के नेताओं को टॉप ऑर्डर में लाकर अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव की रणनीति रूपी फील्डिंग को अभी से जमाने के संकेत दे दिए हैं। ऐसे में कल राजस्थान में भी ऐसे ही बदलाव और नए चेहरे के संकेत साफ झलकने से दावेदारों की रात जागते हुए काटे तो आश्चर्य नहीं होगा..

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