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अयोध्या में श्री राम मंदिर भूमिपूजन को लेकर देश में जबरजस्त उत्साह.. श्रेय लेने की राजनीति पर उमा भारती ने कहा अयोध्या और श्रीराम भाजपा की बपौती नही.. इधर समाजवादी चिंतक राजा पटैरया ने निर्माण समारोह को व्यक्तिवाद की पराकाष्ठा बताया.. नेहरू और राजीव गांधी को दिया श्रेय..

 देश भर में दिख रहा उत्सुकता व उत्साह भरा माहौल
अयोध्या में प्रभु श्री राम जन्मभूमि पर निर्मित होने वाले भव्य मंदिर के भूमि पूजन को लेकर देश भर में उत्सुकता के साथ उत्साह भरा माहौल देखने को मिल रहा है। अयोध्या में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में 5 अगस्त को होने वाले भूमि पूजन समारोह की तैयारियों से लेकर ताजी अपडेट को लेकर देश दुनिया के लगभग सभी न्यूज चैनलों पर देशवासी लगातार टकटकी लगाए हुए हैं वही अयोध्या की लगातार कवरेज दिखाने वाले न्यूज़ चैनलों की टीआरपी में हो रही जबरदस्त वृद्धि इस बात का संकेत है कि देश के आम जनमानस को श्री राम मंदिर निर्माण के भूमि पूजन के पलों का इतना बेसब्री से इंतजार है। 
बताया जा रहा है कि श्री राम मंदिर निर्माण के भूमिपूजन के लिए कुल 175 लोगों को आमंत्रित किया गया है, जिसमें देश की कुल 36 आध्यात्मिक परम्पराओं के 135 पूजनीय संत शामिल है। वाकी के 40 लोग जिसमें प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी, यूपी के सीएम श्री आदित्यनाथ योगी, श्री अशोक सिंहल जी के परिवार से महेश भागचन्दका व पवन सिंहल, संघ प्रमुख श्री मोहन भागवत, यूपी की राज्यपाल आदि शामिल हैं। इसके अलावा 34 लोगों में प्रदेश सरकार के प्रमुख मंत्री व कुछ राज्यो के मुख्यमंत्री हो सकते है। 
अयोध्या के कुछ गणमान्य नागरिक होंगे, कुछ बलिदानी कारसेवकों के परिवार वाले आदि भी इसमें शामिल होगे। बावरी मसजिद के एक प्रमुचा पक्षकार को श्री चंपत राय जी पहले ही आमंत्रण भेज चुके है वहीं कुछ अन्य प्रमुखजनों को भी निमंत्रण भेजा गया है। राम मंदिर आंदोलन से जुड़े सभी वरिष्ठजनों में श्री लालकष्ण आडवाणी और श्री मुरली मनोहर जोशी, उमाश्री भारती आदि को भी आमंत्रण दिया गया है, परन्तु कोरोना काल के चलते उनके भूमि पूजन में शामिल होने की संभावना कम बताई जा रही है। 
अयोध्या और श्री राम भाजपा की बपौती नही.. उमा भारती 
सभी वर्गों के बीच निर्मित श्रीराम मय माहौल को ध्यान में रखकर मंदिर निर्माण के पक्ष विपक्ष में बयान देने वाले नेताओं के मुख से भी अब नपे तुले वक्तव्य सामने आ रहे है। कांग्रेस नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री व मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ ने तो मंदिरों में जाकर हनुमान चालीसा पाठ आदि करने का आवाहन कांग्रेस नेताओं से कर दिया है।
 ऐसे में राम मंदिर निर्माण भूमि पूजन का श्रेय लूटने के नाम पर खुशी के मारे फूले नहीं समा रहे भाजपा नेताओं के लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री क मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमाश्री भारती का बड़ा बयान सामने आया है। जिसमें उन्होंने वीडियो से चर्चा के दौरान साफ तौर पर कहा है कि अयोध्या और श्री राम भाजपा की बपौती नहीं है यह सबके हैं। जो लोग यह मान रहे हैं वह भी चले जाएंगे और श्री राम नाम ही रह जाएगा।
 निर्माण समारोह व्यक्तिवाद की पराकाष्ठा.. राजा पटेरिया
श्री राममंदिर निर्माण समारोह को लेकर समाजवादी चिंतक तथा मप्र में दिग्विजयसिंह सरकार में केविनेट मंत्री रहे राजा पटैरिया का भी बड़ा बयान सामने आया है। जिसमें उन्होंने आयोजित समारोह को व्यक्तिवाद की पराकाष्ठा बताते हुए इस महिमा मंडित करके दिखाने वाली मीडिया को भी आड़े हाथों लेते हुए देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू एवं पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी को श्री राम मंदिर निर्माण का सबसे बड़ा पक्षधर निरूपित किया है। श्री राजा पटेरिया का आलेख ज्यों का त्यों यहां प्रकाशित किया जा रहा है..
 5 अगस्त को अयोध्या में राममंदिर के निर्माण के लिए एक भव्य समारोह का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें स्वंय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थिति होंगे। इस आयोजन के पूर्व ही "गोदी मीडिया" ने नरेंद्र मोदी को हिंदुओं के सबसे बड़े मसीहा के रूप में प्रचारित करना शुरू कर दिया। मीडिया की माने तो मोदी जी ही वह व्यक्ति है जो राम को वापस अयोध्या लाए। पिछली सरकारों खासकर कांग्रेस ने तो कैकेयी बनकर प्रभु श्री राम को स्थाई वनवास दे रखा था। मोदी सरकार का प्रचार तंत्र गोबेल्स के उसी सिद्धांत पर चलता है कि एक झूठ को सौ बार बोलो तो जनता उसे ही सच मानने लगती है। लिहाजा यही हो रहा है, यह प्रचारित किया जा रहा है कि मोदी ने ही राम मंदिर बनवाया और अब वही इसका शिलान्यास करवा रहें हैं। 
  श्री पटैरिया का कहना है कि  आज इस मौके पर पहले यह बताना ज़रूरी है कि अब तक इस मामले में पहले क्या कुछ महत्वपूर्ण हुआ जिसके परिणाम स्वरूप अब राम मंदिर बन रहा है। राम मंदिर निर्माण की पहली नींव सन् 1949 में रखी गई जब पंडित जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे और पंडित गोविंद वल्लभ पंत उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब 22-23 दिसंबर 1949 में प्रतिमा को गर्भ गृह में पंहुचाया गया था। इसके बाद सन् 1986 आता है जब डिस्ट्रिक्ट कोर्ट फैजाबाद ने मंदिर का ताला खोलने की अनुमति दी, तब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे और वीरबहादुर सिंह उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री थे..... उसी दिन कोर्ट के आदेश के बाद महज 40 मिनिट में यह ताला खुला था। फिर 1989 आता है , तब भी राजीव गांधी ही प्रधानमंत्री थे। उस समय पहली बार यहां शिलान्यास हुआ था ...... तब राज्य के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी हुआ करते थे ..... जो लोग तब की राजनीति के बारें में जानते हैं उन्हे यह अच्छे से मालूम है कि मंदिर का ताला खुलवाने से लेकर शिलान्यास करवाने तक राजीव गांधी ने व्यक्तिगत् दिलचस्पी लेकर काम करवाया था। 
..... और तो और राजीव गांधी ने 1989 में अपने चुनावी कार्यक्रम की शुरूआत ही अयोध्या (तब फैजाबाद जिला) से की थी , और यहीं उन्होंने राम राज्य का नारा दिया था। हालांकि तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी इस कार्यक्रम के पक्ष में नहीं थे। तब राजीव गांधी ने तत्कालीन गृह मंत्री बूटा सिंह को उत्तरप्रदेश भेजा ताकि वह इस पर आम राय बना सकें। फिर सबने संतो के साथ मिलकर 9 नवम्बर का महूर्त निकाला ..... जिसमें भूमि पूजन स्वंय स्वामि बामदेव ने किया था , वास्तुपूजा पंडित महादेव भट्ट और अयोध्या प्रसाद ने करवाई थी और खुदाई की शुरूआत स्वंय महंत अवैध्यनाथ ने की थी और पहली शिला एक दलित युवा कामेश्वर चौपाल के हाथों से रखवाई गई थी ताकि समाज में समरस्ता का संदेश प्रसारित हो। बाद में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति ने इसका विरोध किया , मार्च निकाला और गिरफ्तारियां दी। गांधी परिवार के कट्टर आलोचक रहे बीजेपी नेता सुब्रमण्यम् स्वामि भी कहतें हैं कि राजीव गांधी यदि दोबारा प्रधानमंत्री बनते तो राम मंदिर बन चुका होता। लेकिन ऐसा हुआ नहीं कांग्रेस चुनाव हार गई फिर 1991 में राजीव गांधी की हत्या हो गई और राम मंदिर निर्माण अधूरा रह गया। 
... अयोध्या में शिलान्यास कार्यक्रम के पश्चात् विश्व हिंदु परिषद् और बीजेपी, इस मामले पर ज़बरदस्त तरीके से सक्रिय हुई और मामले को राजनैतिक रंग दे दिया, राम के नाम पर वोट मांगे गए और उत्तरप्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में सरकार बनाई गई। फिर 1996 1998 1999 में बीजेपी नीत NDA की सरकारें बनीं। इस दौरान लालकृष्ण आडवाणी , मुरलीमनोहर जोशी , उमा भारती , विनय कटियार आदि राममंदिर आंदोलन के प्रमुख नेता हुआ करते थे। लेकिन मामला कोर्ट में जाने के कारण किसी निष्कर्ष पर नहीं पंहुचा। साल दर साल बीतते गए और अंतः अब कहीं जाकर सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया है। 
  इस ऐतिहासिक घटनाक्रम को बताने का उद्देश्य केवल इतना ही था कि आप जान सकें कि मंदिर निर्माण के लिए यदि किन्ही राजनेताओं का नाम लिया जाए तो वह कौन कौन थे और 1949 से लेकर 2020 तक मोदी जी का इस पूरे घटनाक्रम में कोई रोल नहीं था ...... इतिहास बताता है कि मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करने वाले पहले नायक जवाहरलाल नेहरू थे जिन्होंने मूर्ति रखवाई , दूसरे राजीव गांधी जिन्होंने ताले खुलवाए और शिलान्यास करवाया और तीसरे लालकृष्ण आडवाणी और राम मंदिर आंदोलन से जुड़े वह नेता जिन्होंने इस मामले को जिंदा रखा। 
 हर घटना और हर परिस्थिति की अपनी गति अपना Momentum होता है , और वह स्वंय में परिवर्तनशील होती है , घटना की गतिशीलता और परिवर्तनशीलता का सिद्धांत कृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद्भाग्वत् गीता में विस्तार से समझाया है और व्यक्ति को निमित्त मात्र परिभाषित किया है। यह पूरा मामला भी अपनी गति से चला और परिवर्तनशीलता से सिद्धांत पर कोर्ट के द्वारा निष्कर्ष पर पंहुचा है। इस मामले में नरेंद्र मोदी तो केवल और केवल उद्धाटनकर्ता हैं। क्योंकि पूरे घटनाक्रम में तो उनका कोई योगदान था नहीं इसलिए केवल और केवल हल्ला मचाकर इस पूरे काम का श्रेय वह अपने सर लेना चाहते हैं और उनका पालतू मीडिया इस मामले में उनका सहयोग कर रहा है। हालत यह है कि देश का नेशनल नेटवर्क 4 और 5 अगस्त को अयोध्या में होने वाले पूरे कार्यक्रमों का सीधा प्रसारण करेगा। सवाल यह है कि यदि कोर्ट का फैंसला मस्जिद के पक्ष में आता तो भी क्या आज इतना ही बड़ा आयोजन हो रहा होता और प्रधानमंत्री उस कार्यक्रम में हिस्सा लेते तथा देश का नेशनल टेलीवीजन नेटवर्क उसका सीधा प्रसारण कर रहा होता ? जवाब हम सभी जानतें हैं। 
 श्री पटैरिया का कहना है कि  इस पूरे आयोजन को देखकर यह साफ कहा जा सकता है कि मोदी जी प्रभु श्री राम का उपयोग अपना व्यक्तिगत् कद बढ़ाने के लिए कर रहें हैं। आयोजन का प्रचार पूरी तरह मोदी केंद्रित हैं टीवी पर प्रभु श्रीराम का जिक्र नहीं हैं लेकिन मोदी जी का नाम धर्म एवं राष्ट्र रक्षक के रूप में प्रचारित हो रहा है, मानों लंका जाकर रावण वध उन्होंने ही किया हो। नरेंद्र मोदी के पोस्टर प्रभु श्रीराम से बड़े लग रहें हैं और प्रभु श्रीराम तो कहीं नेपथ्य में जा चुके हैं। प्रचार को देखकर तो ऐसा लगता है कि मानो राम मंदिर नहीं “मोदी” मंदिर बन रहा है। मोदी जी के व्यक्तिवादी रवैये की पराकाष्ठा यह है कि मंदिर निर्माण के वास्तविक नायकों को श्रेय देना तो दूर  आज उनकी कोई पूछपरख भी नहीं की जा रही है, नेहरू जी और राजीव जी तो जीवित नहीं हैं लेकिन आडवाणी जी और राम मंदिर आंदोलन के बाकी सदस्य तो जीवित है आज उन्हें क्यों नहीं पूछा जा रहा है। क्या वह लोग केवल विवादित ढांचा गिराए जाने के मामले में कोर्ट केस भुगतने के लिए हैं और इस सागर मंथन से निकले अमृत को पीने का अधिकार केवल मोदी जी का है।
 व्यक्तिवादी पराकाष्ठा का दूसरा उदाहरण शिलान्यास समारोह की तारीख को देखकर लगता है। हिंदू मान्यता के अनुसार इस समय किसी भी प्रकार का कोई मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। मंगलकार्य अब देवउठनी ग्यारस यानी दीवापली के बाद ही हो सकतें हैं। लेकिन इस धार्मिक कार्य में इतने बड़े धार्मिक/सांस्कृतिक/ज्योतिषी तथ्य को भी नज़रअंदाज कर दिया गया। क्योंकि मोदी जी इसे जल्द से जल्द अंजाम देना चाहते थे। एक व्यक्ति हमारी धार्मिक मान्यताओं से उपर कैसे हो सकता है। कांग्रेस ने भी 1989 में शिलान्यास के लिए बाकायदा महूर्त निकलवाया था और संतों ने कार्यक्रम किया था, उसमें प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने हिस्सा नहीं लिया था क्योंकि यह संतों का कार्यक्रम था। राजीव जी ने अयोध्या (तब फैजाबाद) और लखनऊ में अलग से सभाएं की थी जिसमें उन्होंने कहा था कि कुछ मुद्दे ऐसे होते हैं जो विकास से भी ज़रूरी होते हैं और उन्हें हल ना किया जाए तो विकास भी रूक जाता है। यहीं उन्होंने रामराज्य का नारा भी दिया था।
  मोदी जी का रवैया ही कुछ ऐसा है कि वह हर एक वर्तमान समस्या के लिए नेहरू, इंदिरा और राजीव को दोष देते हैं तो फिर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बन रहे राम मंदिर के निर्माण का श्रेय वह उन्हें कैसे दे सकतें हैं। पूरा देश जानता है कि मोदी जी एक अच्छे शो मैन है उनकी कमजोरी है कि वह कुशल प्रशासक नहीं हैं। उनके पास भविष्य की कोई योजना या रोडमैप नहीं हैं और जब व्यक्ति के पास भविष्य का कोई रोडमैप नहीं होता तो वह व्यक्ति हमेशा अतीत की बात करता है। ऐसा करने से वह अपनी विश्वसनियता बनाए रखता है क्योंकि यदि आप भविष्य के लिए वायदें करें और उन्हें पूरा नहीं करते हैं, तो आपकी विश्वसनियता प्रभावित होती है, लेकिन अतीत को कोसने और वर्तमान समस्या के लिए अतीत को उत्तरदायी बताने से आपकी विश्वसनियता पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। 
श्री पटैरिया का कहना है कि मोदी जी इसी नीति को अपनाए हुए हैं। मोदी जी आपसे बस इतना ही अनुरोध है कि दूसरों के कार्यों का श्रेय दूसरों को देना सीखें और आप देश की बदहाल अर्थ व्यवस्था, बढ़ती बेरोजगारी, असुरक्षित सीमा, भ्रमित विदेश नीति, और अनियोजित व्यापार नीति पर तत्काल ध्यान दें और राम मंदिर को संत महात्माओं के लिए छोड़ दें। अयोध्या जी पर पुराने संस्मरणों की पिक्चर अभी बाकी है.. अटलराजेंद्र जैन

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